साहब! रुपये हो गए खत्म तो रिक्शा से ही चल दिए गांव
साहब! लॉकडाउन में तो काम के साथ जेब में रुपया भी खत्म हो गया। वहां रहकर क्या करते मजबूरी में बिहार अपने गांव निकलना पड़ा।
जागरण संवाददाता, कानपुर : साहब! लॉकडाउन में तो काम के साथ जेब में रुपया भी खत्म हो गया। वहां रहकर क्या करते, मजबूरी में बिहार अपने गांव निकलना पड़ा। सवारी वाहन नहीं मिला तो ट्राली रिक्शा से चल दिए.। दिल्ली से 450 किमी सफर तय कर साथियों विद्यानंद यादव और टुनटुन माथुर संग रामादेवी पहुंचे ट्रॉली रिक्शा चालक दिलीप चौधरी ने बताया कि वे तीनों मिलकर दिल्ली में रिक्शे से सामान ढोते हैं। दिल्ली में लाखों लोग हैं, जो बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल जाने के लिए निकले हैं। रामादेवी चौराहे पर खाना खाने के लिए रुके दिलीप ने बताया कि तीनों लोगों की जेब में सिर्फ 500-500 रुपये हैं। बस चालक प्रति व्यक्ति एक हजार रुपये किराया मांग रहा था, इसलिए रिक्शे से चले। उनके पीछे राम कुमार, सुंदर, राजगी, चंदन, परमानंद भी रिक्शे से बिहार जा रहे हैं। साथी जयराम साइकिल से आ रहे हैं। इधर, पनकी सरायमीता से सिर पर बोझ रखकर लेदर फैक्ट्री के कर्मचारी 72 वर्षीय राम मान प्रयागराज चल दिए हैं। उन्होंने बताया कि शहर में कोई रिश्तेदार भी नहीं है। जो जमा रकम थी, खर्च हो गई, इसलिए घर जाने का फैसला लिया। 12 साल घर से दूर रहे, अब कुछ समय परिवार के साथ बिताएंगे।
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मथुरा में बाइक हुई खराब, टोचिग कर चले बनारस
गुरुग्राम से अजय मौर्य पत्नी कविता व दो साल के बेटे संग अपनी बाइक से और उनके दोस्त रवींद्र व अजीत दूसरी बाइक से बनारस चले थे। मथुरा में रवींद्र की बाइक खराब हो गई। एक घर से रस्सी मांगकर अजय ने अपनी बाइक से रवींद्र की बाइक बांधी और टोचिग करके चल दिए। नौबस्ता फ्लाइओवर पर पहुंचे अजय ने बताया कि दोस्तों की बाइक खींचने में वह हादसे से भी बचे, लेकिन उन्हें मुसीबत में नहीं छोड़ा।
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कन्नौज से पैदल पहुंचा जीजा-साले का परिवार
नोएडा सेक्टर 83 में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले विनोद व उनके साले विजयराम ने लॉकडाउन का एक सप्ताह तो काट लिया। हालात ठीक न लगने पर गांव जाने का फैसला किया। शनिवार दोपहर एक बजे ट्रक पर सवार होकर चले थे। अलीगढ़ में उतरे और वहां से लोडर के जरिए कन्नौज आए। वहां से रात 12 बजे पैदल चले तो रविवार दोपहर तीन बजे झकरकटी पहुंचे। बोले, नोएडा में सीमित राशन था, लेकिन गांव में खेती है। खाने की दिक्कत नहीं रहेगी।
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जो कुछ होना है अपने गांव में हो
झारखंड के संतोष कुमार पनकी में डाई बनाने की फैक्ट्री में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि जोड़ी गई आधी रकम एक सप्ताह में खर्च हो गई। बीमारी का डर अलग सता रहा था। बोले-मौत तो सबको आनी है लेकिन, चाहते हैं कि जो कुछ भी हो, अपने गांव में हो। बसें चलने की जानकारी पर गांव चल पड़े।
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घाटमपुर पावर प्लांट से मजदूर रवाना
घाटमपुर पावर प्लांट में काम कर रहे अशोक शुक्ला, सिद्धनाथ दुबे आदि 350 मजदूर भी रविवार को थर्मल स्क्रीनिग के बाद सात बसों से गोरखपुर, आजमगढ़ व मऊ रवाना हुए। पुलिस ने फ्लाइओवर पर नोएडा, गाजियाबाद, हरियाणा से आए यात्रियों को ट्रक व अन्य वाहनों से भेजा। पनकी की प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने वाले मीरजापुर के चंदेश राशन खत्म होने के कारण वापस जा रहे थे।
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बस न मिलने पर पैदल चल दिए
बसें न मिलने से हरदोई के लालाराम, जानकी व माधव भी रविवार दोपहर झकरकटी स्टैंड से पैदल चल दिए। हैदराबाद के सुनील ने बताया कि सिद्धार्थनगर से कानपुर तक बस से आ गए। दो दिन से साधन न मिलने के कारण भटक रहे हैं।
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दो दिन से बस का इंतजार कर रहे श्रीराम
मध्य प्रदेश के इंदौर निवासी श्रीराम पत्नी सुमित्रा के साथ बस का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि जरूरी काम से आए थे। लॉकडाउन हुआ तो रुक गए। पैसों की कमी के चलते वापस जा रहे हैं। शनिवार रात बसों में राहगीरों को भूसे की तरह भरा देखा तो हिम्मत नहीं हुई। बोले, इंदौर नहीं जा पाए तो स्वजन के घर उरई चले जाएंगे।