UP Board का स्कूलवार डाटाबेस लीक मामले में सामने आया चौंकाने वाला तथ्य
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को साल भर पहले ही धांधली का पता था लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। परीक्षा के समय परीक्षार्थियों के पास भी नंबर बढ़वाने के लिए फोन आने शुरू हो गए थे। पुलिस आरोपित कंपनी की जांच कर रही है।
कानपुर, जेएनएन। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) के 10वीं व 12वीं कक्षाओं के छात्रों के डाटाबेस लीक होने के मामले में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। पता चला है, आरोपित कंपनी के पास जो डाटा है, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के छात्रों का है। बोर्ड को इसकी भनक साल भर पहले से थी, मगर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने सोमवार को शिकायती पत्र एसएसपी के नाम भेजा था, जिसमें कहा था कि कानपुर के रायपुरवा क्षेत्र स्थित कंपनी के पास यूपी बोर्ड के लाखों परीक्षार्थियों का डाटाबेस है, उसमें परीक्षार्थी का नाम, पिता का नाम, मोबाइल नंबर के साथ ईमेल नंबर भी है। कंपनी एक पिनकोड का डाटा बेस एक हजार रुपये, शहर का डाटा बेस 3500 रुपये और पूरा डाटा बेस 6500 रुपये में बेच रही है। उन्होंने इसे आपराधिक कृत्य मानते हुए मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी।
ऐसे खुला खेल
यूपी बोर्ड के परीक्षार्थियों के डाटा बेस लीक होने का खेल मथुरा की एक कोचिंग संस्थान की पकड़ में आया था। कोचिंग संस्थान ने जब रायपुरवा स्थित कंपनी से बच्चों का डाटा मांगा तो उधर से यूपी बोर्ड के छात्रों की स्कूलवार जानकारी होने का दावा किया गया। कोचिंग संस्थान को प्रमाण के लिए कई स्कूलों की लिस्ट भी भेजी गई। उन्होंने अपना रेट भी बताया। कोचिंग संस्थान को मामला छात्र हितों के विपरीत लगा तो कंपनी के वाट्सएप के जरिए हुई चैटिंग के प्रमाण एकत्र करते हुए आइपीएस अमिताभ ठाकुर के पास भेज दिए।
सबसे बड़ा सवाल, कैसे लीक हुआ डेटा
इस प्रकरण में अभी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर यह डाटा बोर्ड से बाहर कैसे आया। सूत्रों के मुताबिक परीक्षार्थियों का डाटा सीधे यूपी बोर्ड की वेबसाइट पर खुद स्कूल अपलोड करते हैं। इसके लिए हर स्कूल को आइडी व पासवर्ड जारी होता है। माना जा रहा है कि कंपनी ने स्कूलों से स्वयं संपर्क करके डाटा खरीदे या बोर्ड की वेबसाइट में सेंधमारी की गई।
अनजान बना रहा यूपी बोर्ड
डाटा लीक की जानकारी यूपी बोर्ड को साल भर पहले से थी। जनवरी में कुछ परीक्षार्थियों ने डीआइओएस से शिकायत की थी कि उनको फोन कर नंबर बढ़वाने के प्रलोभन दिए जा रहे। इसके एवज में मोटी रकम मांगी जा रही। डीआइओएस सतीश तिवारी की ओर से एडवाइजरी जारी हुई थी कि परीक्षार्थी ऐसे प्रलोभन में न फंसें। तब यह बात भी सामने आई थी कि फोन करने वालों को परीक्षार्थियों के मोबाइल नंबर कहां से मिले, लेकिन बोर्ड ने कार्रवाई की जरूरत नहीं समझी। डीआइओएस ने स्वीकार किया कि परीक्षाओं से पहले नंबर बढ़ाने के लिए फोन परीक्षार्थियों के पास आए थे।
डाटा का दुरुपयोग होने की भी आशंका
परीक्षार्थियों को फोन करके नंबर बढ़ाने का प्रलोभन देने की घटना से साबित होता है कि यह बड़ा खेल है। नकल माफिया से लेकर फर्जी दस्तावेज तैयार करने वाले गिरोह के लिए डाटा बेहद महत्वपूर्ण है। कहीं डाटा का दुरुपयोग तो नहीं किया गया, यह आशंका है और बड़ा सवाल भी।
पुलिस का छापा, तीन महीने पहले बंद हो गई थी कंपनी
रायपुरवा पुलिस ने मंगलवार को आरोपित कंपनी के पते पर छापेमारी की। इंस्पेक्टर रायपुरवा ने बताया कि पते पर दूसरी कंपनी संचालित होते मिली। कंपनी संचालक ने बताया कि जिस कंपनी पर आरोप लगा है, उसके दो लोग उनकी कंपनी में ब्रोकर की तरह काम करते थे जिन्होंने तीन महीने पहले काम-काज यहां से समेट लिया है। पुलिस के मुताबिक एक आरोपित कानपुर तो दूसरा कानपुर देहात का रहने वाला है।