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हमसफर एक्सप्रेस की तरह शताब्दी भी क्यों हुई ग्रीन, रेलवे को क्या होगा फायदा

ट्रेनों में आए दिन एसी फेल होने की घटनाओं से परेशान रेलवे प्रबंधन को नई तकनीक के प्रयोग से काफी फायदा मिला है। जल्द ही अन्य ट्रेनों में प्रणाली को उपयोग में लाने की तैयारी है।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 11:51 AM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 12:01 PM (IST)
हमसफर एक्सप्रेस की तरह शताब्दी भी क्यों हुई ग्रीन, रेलवे को क्या होगा फायदा
हमसफर एक्सप्रेस की तरह शताब्दी भी क्यों हुई ग्रीन, रेलवे को क्या होगा फायदा
कानपुर (जागरण संवाददाता) । इलाहाबाद हमसफर एक्सप्रेस के बाद अब कानपुर शताब्दी एक्सप्रेस भी ग्रीन हो गई है। उत्तर मध्य रेलवे में अब ये दूसरी ट्रेन हो गई है। इसमें प्रयोग हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी) तकनीक का काफी फायदा मिल रहा है, जिसकी वजह से रेलवे प्रशासन ने शताब्दी को भी ग्रीन कर दिया है। अन्य ट्रेनों में इस तकनीक का प्रयोग करने की तैयारी भी की जा रही है।
क्यों पड़ी जरूरत
पिछले दिनों ट्रेनों में एसी फेल होने की कई घटनाएं हुईं। इसके पीछे प्रमुख कारण बैटरी चार्ज न होना माना गया। प्रीमियम ट्रेनों के कोचों में विद्युत उत्पादन उत्पन्न करने के सबसे आम तरीके को एंड ऑन जेनरेशन (ईओजी) कहा जाता है, जिसमें कोच में प्रकाश और एयर कंडीशनिंग के लिए विद्युत की आपूर्ति ट्रेन के दोनों सिरों पर लगाए गए डीजल जेनरेटर सेट से की जाती है। उत्तर मध्य रेलवे में 28 जुलाई को इलाहाबाद हमसफर एक्सप्रेस में ये प्रणाली शुरू की थी।
पर्यावरण संरक्षण में मददगार, रेलवे को देगी आर्थिक फायदा
स्टेशन डायरेक्टर डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया कि अब इस प्रौद्योगिकी को कानपुर शताब्दी में भी प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग से ट्रेन के कोचों को अब जेनरेटर यान नहीं बल्कि सीधे ओएचई से बिजली मिलेगी। यह कवायद न केवल रेलवे को आर्थिक फायदा देगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार होगी। कानपुर शताब्दी में इससे डेढ़ करोड़ करोड़ की वार्षिक बचत होगी।
इसलिए है ग्रीन, क्या है एचओजी प्रणाली
परंपरागत ईओजी प्रणाली में बिजली की लागत-डीजल जेनरेटर सेट का उपयोग होने के कारण प्रति यूनिट 22 रुपये आती है। एचओजी प्रणाली में आपूर्ति सीधे ओएचई के माध्यम से थ्री फेज इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव द्वारा ली जाती है, जिसमें बिजली की दर केवल सात रुपये है। एचओजी प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लेने के परिणामस्वरूप सोलह रुपये प्रति यूनिट की बचत होती है। एचओजी प्रौद्योगिकी के उपयोग से प्रति वर्ष 800 टन प्रतिवर्ष कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आती है।
ट्रेन संचालन ये भी मिलेगा लाभ
एचओजी प्रौद्योगिकी को अपनाने का एक और फायदा यह है कि यह ट्रेन को विद्युत आपूर्ति के दो विकल्प उपलब्ध कराती है। पहला, ओएचई के माध्यम से और दूसरा विद्युत कारों में जेनरेटर सेट के द्वारा। दो जेनरेटर कार में से एक को हटाकर ट्रेन में यात्रियों की संख्या का भी इजाफा किया जा सकेगा।

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