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फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी को जनसंख्या नियंत्रण शब्द से है एतराज

जीएसवीएम मेडिकल कालेज में आयोजित फाग्सी के अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन के महिला सशक्तिकरण फोरम में फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने रखी अपनी राय। सत्र के एजेंडे पर ही जता दिया एतराज।

By AbhishekEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 04:34 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 10:43 AM (IST)
फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी को जनसंख्या नियंत्रण शब्द से है एतराज
फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी को जनसंख्या नियंत्रण शब्द से है एतराज

कानपुर(जागरण संवाददाता)। आज देश की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या का बढऩा है और इसपर नियंत्रण के लिए तरह-तरह के प्रयास हो रहे है। यदि ऐसे में कोई सेलेब्रेटी जनसंख्या नियंत्रण शब्द पर ही आपत्ति जताए तो बात हैरत में डालने वाली हो जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ जीएसवीएम मेडिकल कालेज में आयोजित फाग्सी के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, जब मंच पर फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी ने जनसंख्या नियंत्रण शब्द पर आपत्ति जताई और सत्र के एजेंडे पर एतराज जता दिया। उनकी इस बात पर एक बारगी तो वहां मौजूद चिकित्सा जगत के दिग्गज और अन्य श्रोता भी हैरत में पड़ गए। हालांकि बाद में जब उन्होंने अपनी बात स्पष्ट की तो लोग सहमत भी नजर आए। 

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जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में फाग्सी के अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यूकान के तहत रविवार को महिला सशक्तिकरण फोरम का आयोजन हुआ। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने कहा कि बेटियों के प्रति समाज की सोच बदलने की जरूर है। एक तरह हम बेटी बचाओ और पढ़ाओ की बात करते हैं, दूसरी तरफ समाज में आज भी बेटियां गर्भ में मारी जा रही हैं। कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए डॉक्टरों को आगे आना होगा। चोरी-छिपे हो रहे लिंग निर्धारण करने वालों पर कार्रवाई कराएं, जिससे कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगे।

टोकाटोकी से शबाना हुईं नाराज 

फिल्म अभिनेत्री शबाना जैसे ही मातृ मृत्युदर पर संबोधन शुरू किया और आंकड़े पेश करने लगीं तो उन्हें टोक दिया गया। दोबारा एजेंडे पर आपत्ति दर्ज की तो भी उन्हें बोलने से रोकने की कोशिश की गई। इस पर उन्होंने कहा कि मुझे बोलने तो दीजिए, फिर अपनी बात रख सकीं।

सिर्फ महिला ही जिम्मेदार

उन्होंने अपने संबोधन में फॉग्सी के चौथे एजेंडे पर एतराज जताया। कहा कि जनसंख्या नियंत्रण (पापुलेशन कंट्रोल) शब्द पर मुझे आपत्ति है। इसके लिए सिर्फ महिला जिम्मेदार है, महिला को बास्केट समझकर गर्भनिरोधक गोलियां (कंट्रासेप्टिक पिल्स) खिलाकर रोकने की बात की जाती है। इसके लिए जनसंख्या स्थिरीकरण (पापुलेशन स्टेबलाइजेशन) शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। महिलाओं को शिक्षित एवं स्वावलंबी बनाने की जरूरत है, जिससे वर्ष 2050 तक प्रत्येक परिवार एक बच्चे का संकल्प लिया जा सके।

शिक्षा व्यवस्था पर भी जताई आपत्ति

शबाना आजमी ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक जगह कक्षा तीन की बच्ची पढ़ाई कर रही थी। उसकी किताब देखी तो पुरुष प्रधान समाज का एहसास हुआ। सवाल था-मां कहां है और पिताजी कहां हैं। किताब में जवाब था कि मां रसोई घर और पिता दफ्तर में हैं। उन्हें जैसा पढ़ाएं और दिखाएंगे, वैसी मनोस्थिति होगी। मां दफ्तर और पिता रसोईघर क्यों नहीं संभाल सकते हैं। ऐसी शिक्षा पर आपत्ति है। इसको लेकर संसद में सवाल भी उठाया था। बेटियों को शिक्षित करना जरूरी है, लेकिन कैसी शिक्षा दे रहे, इसपर भी चिंतन की जरूरत है।

महिलाओं को ध्यान में रखकर बनें योजनाएं

शबाना आज़मी ने कहा कुंआरी लड़कियों और महिलाओं को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाई जाएं। नारी सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन शिक्षा और सेहत पर ध्यान नहीं दिया जाता है। संचालन मुंबई के एमबीटी मेडिकल कॉलेज की रीना जे वानी ने किया। फोरम की पैनलिस्ट सूबे की महिला एवं बाल विकास मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी, अपर मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी, एडीजे विनोद कुमार सिंह, फाग्सी की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जयदीप मेहरोत्रा, डॉ. मंदाकिनी मेघ, पीएसआइ के एस शंकर नारायण, डीजी कॉलेज की प्राचार्य डॉ. साधना सिंह, डॉ. रचना दुबे एवं नाइन मूवमेंट के संस्थापक अमर तुलस्यान थे।


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