जब मंच पर आए शबाना-जावेद तो शुरू हुई पुर-सुकूं बहते दरिया की अल्हड़ रवानी एक कहानी...
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के ऑडीटोरियम में मोहब्बत और जद्दोजहद की इस कहानी में लोग हंसे-खिलखिलाए तो आंखें नम कर गए।लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
कानपुर (जागरण संवाददाता)। जब भी चूम लेता हूँ इन हसीन आँखों को, सौ चिराग अंधेरे में झिलमिलाने लगते हैं... यह नज्म गंूजते ही किरदार जी उठे। पुर-सुकूं बहते दरिया की अल्हड़ रवानी सी बहती कहानी 'कैफी और मैं' के अक्स में हर उस व्यक्ति के जज्बात नुमाया हुए जिसने कभी हसीं ख्वाब देखा और उसकी तामीर में जमीन आसमां एक कर दिया।
छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के ऑडीटोरियम में सजी इस खूबसूरत शाम का मुख्य आकर्षण शबाना आजमी और जावेद अख्तर थे, जिन्होंने अपने संवादों से प्रेम के रोमांच को पहले सपनों की हकीकत से रूबरू कराया और फिर सुखद अंत तक पहुंचाया। मोहब्बत और जद्दोजहद की इस कहानी में कई पल ऐसे आए जिनमें लोग हंसे-खिलखिलाए तो कई लम्हें ऐसे भी रहे, जो आंखें नम कर गए।
एक मंच पर आमने-सामने आए
बेहद सादगी भरे मंच पर एक ओर सजी दो कुर्सियों में से एक पर बैठकर शबाना आजमी अपनी मां शौकत कैफी के किरदार को जी रही थीं तो दूसरी पर जावेद अख्तर साहब कैफी आजमी के रोल में थे। दूसरी ओर जसविंदर सिंह साज और आवाज से संवादों में जान भर रहे थे। शायरी, संगीत, मोहब्बत, रोमांच और लाइव म्यूजिक से सजी ये कहानी मोहब्बत के साथ उस दुनिया की कहानी थी, जहां ये दोनों इंसान जन्मे हैं, जहां बंधन हैं बंदिशें हैं। ये उन तमाम इंसानों की कहानी है, जिन्होंने ऐसी खूबसूरत दुनिया होने की उम्मीद की थी, जहां जुल्म नहीं, मोहब्बत और दोस्ती सरमाया होंगे।
'कैफी और मैं' सें बांधा समां
कहानी में शौकत की किताब याद की रहगुजर, कैफी आजमी के अलग-अलग इंटरव्यू और एक-दूसरे को लिखे गए पत्रों से लिए गए संवाद थे, जिनमें कभी वे एक-दूसरे से रूबरू हैं तो कभी चिट्ठियों से बातें कर रहे हैं। बीच-बीच में कैफी साहब की शायरियां भी गंूजी। 'कैफी और मैंÓ का विराम 'खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं... नज्म के साथ हुआ।
खुद शबाना आजमी भी अपने आंसू रोक न सकीं। जावेद अख्तर ने सभी का आभार जताया। इससे पहले मध्यांतर में आयोजक नाइन मूवमेंट के शरद खेमका और अमर तुलसियान ने आयुक्त एवं निदेशक उद्योग के रविंद्र नायक और आइजी जोन आलोक सिंह एवं उनकी धर्मपत्नी का अभिनंदन किया। दीपक खेमका, राजकुमार खेमका व नाइन सेनेटरी नैपकिन परिवार के सभी सदस्य मौजूद रहे।
प्रस्तुति में लाइव म्यूजिक ने लगाए चार चांद
'कैफी और मैंÓ की प्रस्तुति के दौरान जसविंदर सिंह ने लाइव म्यूजिक से समां बांध दिया। उन्होंने कैफी साहब की गजलों और गीतों को संगीतबद्ध कर प्रस्तुत किया। वो चांद जिसकी तमन्ना थी मेरी रातों को... झ़ुकी-झुकी की सी नजर, तेरे शहर में... तुम जो मिल गए हो... गाकर लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।