सिर्फ टेनरियों पर दोष मढ़ने वाले जल निगम की खुली पोल
आंखें मूंदे हैं जिम्मेदार सिर्फ दिखावा है नाला टेपिंग चोरी-छिपे बहाए जा रहे सीवेज के वेग से बह गई बोरियां
जागरण संवाददाता, कानपुर : गंगा प्रदूषण का दोष सिर्फ टेनरियों पर मढ़कर जल निगम ने शहर के सबसे मजबूत कारोबार को बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया। वास्तविकता में जल निगम की खामियों की वजह से सीवेज किस तरह गंगा में जहर घोल रहा है, यह उसके ही प्लांट से नजर आ रहा है। नाला टेपिंग का महज दिखावा भर है। वाजिदपुर नाले से अभी भी गंगा में सीवरेज जा रहा है।
गंगा में नालों की गंदगी न जाए, इसके लिए जल निगम ने नाले टेप किए हैं। अब जरा इनकी तकनीक देखिए। नालों के मुहानों पर बोरियां लगा दी गई हैं, ताकि गंगा में गंदगी न जाए। वाजिदपुर नाले को भी इसी तरह टेप किया गया था। फिलहाल ये बोरियां हटी हुई हैं और नाले की गंदगी गंगा में जा रही है। यहां आसपास रहने वाले ग्रामीण राकेश निषाद, अजय कुमार, रजनू आदि ने बताया कि जल निगम चोरी-छिपे पंपिंग स्टेशन से सीवरेज नाले में बहाता है। उसके वेग के कारण ही बोरियां हट गई हैं।
जल निगम के परियोजना प्रबंधक घनश्याम द्विवेदी का कहना है कि नाला टेपिंग की वजह से ग्रामीणों को बदबू से परेशानी होती है। वे ही बोरियां हटा देते हैं। टेनरी वाले नाले में सीवरेज छोड़ देते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहकर कार्रवाई कराई जाएगी।
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गलती किसी की भी हो, दोष केवल टेनरी का
बंदी की मार झेल रहे टेनरी संचालक अब पूरी तरह मुखर होते जा रहे हैं। उनका दो टूक कहना है कि गलती किसी की भी हो लेकिन, दोष सिर्फ टेनरियों का बताया जाता है। उनका आरोप है कि मरम्मत के नाम पर जल निगम ने करीब 18 करोड़ रुपये का खेल किया है, क्योंकि मरम्मत के बाद भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में व्यवस्था खराब है। कई नाले प्लांट में डायवर्ट किए गए, जिसके चलते ओवरफ्लो होता है। बंदी के पहले टेनरी का डिस्चार्ज नौ एमएलडी था तो अब यह दोगुना कैसे हो सकता है। जल निगम व उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं और इन सबके चक्कर में हम पिस रहे हैं। लेदर इंडस्ट्रीज वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि हम सोच रहे हैं कि टेनरी बंद कर गेस्ट हाउस खोल लें या फिर कोई और धंधा करेंगे।
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टेनरी संचालकों की व्यथा
- दादानगर में डाइंग फैक्ट्रियां हैं। वह भी गंगा को पांडु नदी के माध्यम से गंदा करती हैं लेकिन, उनका कोई कुछ नहीं करता। हम अपनी टेनरियों का डिस्चार्ज जल निगम के प्लांट में भेजते हैं और यूजर चार्ज देते हैं। इसके बाद भी हम ही बदनाम हैं। अभी तक एक भी टेनरी सीधे गंगा में डिस्चार्ज छोड़ने की दोषी नहीं मिली है।
- कौशलेंद्र दीक्षित,
अध्यक्ष, लेदर इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन - नवंबर में मरम्मत के नाम पर हमें नोटिस देकर 20 दिन टेनरियों को बंद रखा गया। मरम्मत के बाद फिर से नोटिस देकर मरम्मत की गई। फिर बंदी कर दी गई। सीधे-सीधे हम लोगों को बता दिया जाए कि हम उद्योग बंद कर दें।
- मो. अर्शी
सचिव, लेदर इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन - सीसामऊ व दूसरे नाले जाजमऊ में डायवर्ट किए गए। उनके शोधन के लिए किए गए इंतजामों की डीपीआर बैठकों में मांगी गई लेकिन, कभी भी दी नहीं गई। नालों का पानी आ रहा है तो प्लांट ओवरफ्लो होगा ही। ऐसा लगता है कि हम लोग टेनरी चलाकर कोई बड़ा अपराध कर रहे हैं, जो अभी तक खोलने का आदेश नहीं हो रहा।
- महफूज अख्तर - हमने तो पिताजी का चमड़ा कारोबार किसी तरह से संभाला लेकिन, अब कमाने के लाले पड़ रहे हैं। मुझ जैसे बहुत से लोग हैं, जो अब इस कारोबार में रुचि नहीं दिखा रहे और बच्चों तक को नौकरी व दूसरे व्यवसाय में जाने के लिए बोल रहे हैं। हम लोगों का सबकुछ बर्बाद हो गया है।
- तनवीर अहमद, चमड़ा कारोबारी