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अाइअाइटी कानपुर की खोजः ऑटिज्म पीड़ित बच्चे भी समझ सकेंगे गम और खुशी

आइआइटी का ह्यूमेनिटी एंड सोशल साइंस (एचएसएस) विभाग ऐसी तकनीक विकसित करने जा रहा है, जिससे बच्चे के लिए भावों को समझना और प्रतिक्रिया देना आसान हो जाएगा।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 10:48 AM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2018 08:16 AM (IST)
अाइअाइटी कानपुर की खोजः ऑटिज्म पीड़ित बच्चे भी समझ सकेंगे गम और खुशी
अाइअाइटी कानपुर की खोजः ऑटिज्म पीड़ित बच्चे भी समझ सकेंगे गम और खुशी

कानपुर [शशांक शेखर भारद्वाज]। अपनी ही दुनिया में मगन रहने वाले ऑटिज्म पीडि़त नन्हे-मुन्ने भी सामान्य बच्चों की तरह भावों को समझ सकेंगे। उन्हें खेल-खेल में हंसी, खुशी, गम और गुस्से के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी। आइआइटी का ह्यूमेनिटी एंड सोशल साइंस (एचएसएस) विभाग ऐसी तकनीक विकसित करने जा रहा है, जिससे बच्चे के लिए भावों को समझना और प्रतिक्रिया देना आसान हो जाएगा।

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यह तकनीक जियॉन पर आधारित है, जिससे चेहरे और आंखों के हावभाव को विभिन्न कोण से दर्शाया जाएगा। सबसे खास बात इसमें यह रहेगी कि बच्चा सब कुछ मोबाइल, कंप्यूटर या टीवी स्क्रीन पर गेम की तरह खेलकर सीख सकेगा। आइआइटी के वैज्ञानिकों ने अब तक पांच हजार से अधिक चित्रों को कंप्यूटर पर अपलोड कर लिया है।

क्या है ऑटिज्म

ऑटिज्म बच्चों में होने वाली मानसिक बीमारी है। यह बच्चों के सामाजिक व्यवहार व संचार पर प्रभाव डालता है। इसे स्वलीनता (खुद में लीन रहना) कहते हैं। बच्चा इसमें बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है।

क्या है जियॉन

आइआइटी विशेषज्ञों के मुताबिक, जियॉन किसी भी वस्तु की विशेष बनावट को कहते हैं जिससे वह टू डायमेंशनल (दोआयामी) या थ्री डायमेंशनल (त्रिआयामी) आकार का नजर आता है। सामान्य दिमाग हर वस्तु को आसानी से समझ लेता है, उसमें फर्क महसूस कर सकता है वहीं ऑटिज्म में वस्तुओं में अंतर करने में कठिनाई होती है। बच्चे के सामने अगर वस्तु के भौतिक आकार में हलका परिवर्तन कर दिया जाए, तो उसे पहचानना आसान नहीं होता है।

पहले चरण में देखा, कहां आ रही दिक्कत

प्रो. बृजभूषण की देखरेख में सबा हैदर और उज्ज्वल शर्मा ने साल भर पहले ऑटिज्म बच्चों पर शोध किया। उन्होंने देखा कि उन्हें कहां-कहां दिक्कत आती है। वह माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों से कैसा व्यवहार करते हैं। हर बात पर उनकी क्या प्रतिक्रिया रहती है। उन्हें क्या करना पसंद है, किसके साथ खेलते हैं।

पहले शोध के नतीजे

- ऑटिज्म बच्चे अधिकतर निर्जीव चीजों के साथ खेलते हैं।

- बात करते समय वह फोकस नहीं कर पाते हैं।

- नजर से नजर न मिलाना उनकी आदत होती है।

- वीडियो गेम खेलना पहली पसंद रहता है।

- खिलौनों की बजाए जूते, चप्पल, झाड़ू से खेलते हैं।

उम्र के हिसाब से सीखेंगे

बच्चों को भावों की जानकारी उनकी उम्र के हिसाब से दी जाएगी। यह पांच साल से आरंभ होगी और ऊपर तक जारी रहेगी। जियॉन तकनीक को सॉफ्वेयर में तैयार किया जाएगा।

'ऑटिज्म की समस्या से जूझ रहे बच्चों के लिए भावों को समझाने की सरल तकनीक विकसित की जा रही है। इससे वह माता, पिता और घर के अन्य सदस्यों से मेलमिलाप कर सकेंगे। उन्हें सब कुछ समझाया जा सकेगा। 

- प्रो. बृजभूषण, एचएसएस विभाग, आइआइटी कानपुर  


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