कानपुर, जासं। नेपाल में लगातार भूकंप आना किसी बड़ी आपदा का संकेत है। ऐसा प्रतीत हो रहा कि पृथ्वी के गर्भ में भारतीय प्लेट व यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव व दबाव तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में सभी को पहले से अलर्ट रहकर तैयारी करने की जरूरत है। खास तौर गंगा के मैदानी क्षेत्रों में रहने वालों को सतर्कता बरतनी होगी, क्योंकि इन क्षेत्रों की मिट्टी ढीली होती है और इसमें भूकंप का प्रभाव तेज गति से होता है।
भूकंप की तीव्रता का असर उत्तर भारत में दिखा
आइआइटी के भूकंप विज्ञानी प्रो. जावेद एन मलिक ने मंगलवार को नेपाल में आए भूकंप के बाद यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नवंबर में नेपाल के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में जिस स्थान पर भूकंप आया था, इस बार भूकंप का केंद्र उससे करीब 70 किमी दूर है, लेकिन उसकी तीव्रता का असर उत्तर भारत में दिखा है। कई स्थानों पर तेज तो कहीं हल्के झटके महसूस किए गए।
नवंबर में आए भूकंप से हुआ था नेपाल में भारी नुकसान
नवंबर में भी इसी तरह का भूकंप था, जिससे नेपाल में काफी नुकसान हुआ। लोगों को अब अलर्ट होने की जरूरत है, क्योंकि यह झटके बड़े भूकंप के आने का संकेत हो सकते हैं। जिस स्थान पर भूकंप आया है, उसके आसपास नेपाल व कुमाऊं के क्षेत्र में इससे पहले भी कई बार भूकंप आ चुके हैं। वर्ष 1344, 1505, 1803 व 1833 में भी भूकंप आए थे, लेकिन उनकी तीव्रता ज्यादा नहीं थी। नेपाल में वर्ष 2015 में आया भूकंप सबसे बड़ा था, जो पूर्वी क्षेत्र में था।
2001 में भुज में आया था सबसे बड़ा भूकंप
भारत में 2001 में भुज में आया भूकंप सबसे बड़ा था, जिसमें काफी नुकसान हुआ था। इसके बाद गुजरात में भवनों का निर्माण भूकंपरोधी तकनीक से किया जाना अनिवार्य कर दिया गया था। दिल्ली, नोएडा समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी भूकंपरोधी तकनीक पर भवन निर्माण हो रहा है, लेकिन पहले से बन चुके जिन भवनों को भूकंपरोधी मानकों पर नहीं बनाया गया, उनकी सुरक्षा कैसे हो। इसकी फिक्र करनी होगी। यह भी अध्ययन करना होगा कि आखिर इसी क्षेत्र में भूकंप आना क्यों शुरू हुए हैं।