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Sawan 2022: खुले आसमान के नीचे है शिवलिंग, जानें कानपुर के भोलेनाथ धाम को क्यों कहते हैं भोली देवी मंदिर

Sawan 2022 सावन के पावन पर्व पर हम आपके पास रोज कानपुर और आस-पास के शिवालय के बारे में रोचक जानकारियां और इतिहास लेकर आते हैं। आज हम आपको कानपुर के भीतरगांव ब्लाक के परौली गांव से परिचित कराएंगे।

By Abhishek VermaEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 04:07 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 04:07 PM (IST)
Sawan 2022: खुले आसमान के नीचे है शिवलिंग, जानें कानपुर के भोलेनाथ धाम को क्यों कहते हैं भोली देवी मंदिर
कानपुर के भीतरगांव स्थित भोलानाथ धाम व भोली देवी मंदिर।

कानपुर। भीतरगांव ब्लाक के परौली गांव में रिंद नदी के किनारे भोलानाथ धाम उर्फ भोली देवी का मंदिर स्थित है। प्राचीन मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहता है। शहर व ग्रामीण क्षेत्रों से श्रावण मास में बड़ी संख्या में शिवभक्त महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में शिवलिंग के साथ कई देवियों की प्रतिमाएं स्थापित है। इसलिए इस मंदिर को भोली देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

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मंदिर का इतिहास

मान्यता है कि जिस जगह पर मंदिर स्थित है वहां काफी समय पहले जंगल था। चरवाहे यहां अपनी गायों को चराने के लिए लाते थे। एक गाय मंदिर वाले स्थान पर अपना दूध गिरा देती थी। जब इस जगह खोदाई हुई तो यहां एक शिवलिंग निकला। इसके बाद यहां मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर में गुंबद नहीं है, यहां स्थापित शिवलिंग खुले आसमान के नीचे है।

मंदिर की विशेषता

प्राचीन शिव मंदिर के ऊपर कई बार छत डलवाने की कोशिश की गई, लेकिन कभी आंधी तो कभी दूसरे कारणों से छत नहीं पड़ पाई। पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को अपने संरक्षण में लिया है। श्रावण मास में महादेव के शृंगार और देवियों के दर्शन को बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। महादेव का जलाभिषेक करने के बाद देवी मां के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

-मंदिर में भगवान भोलेनाथ और देवियों के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। मंदिर में भगवान शिव पर एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से भक्तों को उनका आशीष प्राप्त होता है। - रिषभ गुप्ता, परौली। 

-महादेव अपनी चौखट पर आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। श्रावण मास में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। सोमवार के दिन पूजा का विशेष महत्व होता है। - गुड्डू सिंह, परौली।


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