चित्रकूट की रामलीला है बिल्कुल अलग, रामचरित मानस नहीं राजा के लिखे संवादों पर होती लीला
भैसौंधा स्टेट के राजा दरियाव सिंह जूदेव ने रामलीला के संवाद को लिखा था प्रत्येक लीला मंचन की अलग किताब और हर पात्र के लिए संवाद हैं।
चित्रकूट, [हेमराज कश्यप]। रामचरित मानस की चौपाइयों पर रामलीला का मंचन विजयदशमी पर देश-दुनिया के हर कोने में होता है। लेकिन, जहां भगवान राम ने वनवास काल के 11 साल छह माह और 18 दिन बिताए थे, उसी कामदगिरि से चंद कदम दूर राम शैया के पास बिहारा गांव में रामलीला का मंचन ही बिल्कुल अलग है। यहां माशदार (राजा साब) के लिखे संवाद पर लीला का मंचन गांव के कलाकार सौ साल से कर रहे हैं। शुरुआत आचार्य कवि रहे भैसौंधा स्टेट के माशदार दिल दरियाव सिंह जूदेव ने स्वरचित काव्य रचनाओं से किया था। उन्होंने गांव के कलाकारों को रामलीला में मौका दिया, जो परंपरा अब तक बरकरार है। राजा के छोटे भाइयों को दिए क्षेत्रों पर उनको माशदार की उपाधि दी जाती थी।
लीलाओं की अलग-अलग किताबें
दरियाव सिंह जूदेव ने नारद मोह, मनु-शतरूपा, राम जन्म, ताड़का वध, नगर दर्शन, पुष्प वाटिका और सीता स्वयंवर की अलग-अलग किताबें लिखी हैं। इसमें स्थानीय भाषा में संवाद तैयार किए गए हैं। इससे गांव के पात्र आसानी से समझ कर जीवंत अभिनय करते हैं। हालांकि अब लीला में नृत्य के लिए डांसर बाहर से बुलाए जाते हैं ताकि ऊबाऊपन नहीं रहे।
एक दिन में सभी राक्षसों का वध
चित्रकूट के कर्वी ब्लॉक अंतर्गत स्थित बिहारा गांव की रामलीला में दशहरा के दिन ही मेघनाद, कुंभकरण और रावण का वध होता है। इसके बाद राम शैया के पास सभी का पुतला दहन होता है। राजा साहब के लिखे संवादों पर रामलीला मंचन देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
यह निभाते हैं लीला में भूमिकाएं
महंत प्रेमचंद्र पांडेय, राजेंद्र प्रसाद द्विवेदी, अशोक मिश्रा, गोपू द्विवेदी, हरदेव, शिव प्रसाद द्विवेदी, स्वामी दीन, राम सुफल, कल्लू गुर्दवान, मुसवल यादव, भैरों प्रसाद, मोती लाल साहू, राजाराम करवरिया, राम स्वयंवर मिश्र, दिनेश त्रिपाठी, देशराज कुशवाहा, मुकेश कुमार वर्मा आदि। श्रीरामलीला समाज बिहारा चित्रकूट के प्रबंधक वंशी बिहारी चौबे बताते हैं कि राजा साहब के लिखे संवादों पर रामलीला मंचन देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से दर्शक पहुंचते हैं। लीला के संवाद इतने सरल व लुभावने होते हैं कि लोग रात तक डटे रहते हैं।