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हर शाख पे उल्लू बैठा है

शहर के यशोदा नगर से मुंबई पहुंचे राजीव निगम आज स्टैडिंग कॉमेडी के क्षेत्र में जाना-पहचाना न

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Feb 2018 02:58 PM (IST)Updated: Fri, 23 Feb 2018 02:58 PM (IST)
हर शाख पे उल्लू बैठा है
हर शाख पे उल्लू बैठा है

शहर के यशोदा नगर से मुंबई पहुंचे राजीव निगम आज स्टैडिंग कॉमेडी के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम हैं। स्टार प्लस के कॉमेडी शो 'हर शाख पे उल्लू बैठा है' में वे निभा रहे हैं मुख्यमंत्री चैतूलाल का किरदार। शो के प्रमोशन के सिलसिले में कानपुर आए राजीव से बात की सैय्यद अबू साद ने..

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नए शो के बारे में बताएं?

ये मेरा ड्रीम शो है। मैं दो दशक से ज्यादा समय से काम कर रहा हूं और इस तरह का शो करना चाहता था। ये सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों को हाइलाइट करता हुआ शो है। यहां पर हम समाज की समस्याओं को मुद्दा बनाकर पेश कर रहे हैं। मैं इसमें मुख्यमंत्री की भूमिका निभा रहा हूं। देश विदेश में ट्रैवल के दौरान मैं देखता हूं कि सब जगह इसी तरह की परेशानियां हैं।

नाम के चयन के पीछे क्या सोच रही?

तमाम सरकारें, नेता और माहौल बदलते रहते हैं लेकिन जनता से जो वादे किए जाते हैं वो कोई पूरे नहीं करता है। नेता, सरकार, शासन, प्रशासन जैसी तमाम शाखों में बैठे लोग जनता को सिर्फ उल्लू बना रहे हैं। उसी पर आधारित है नाम हर शाख पर उल्लू बैठा है।

इस पूरे शो में आपकी भूमिका सिर्फ अभिनय तक सीमित है?

अभिनय के साथ लेखन में भी सहयोग कर रहा हूं। इस तरह के शो के लिए लिखने वाले लेाग कम मिलते हैं। इसे कानपुर के ही अश्विनी धीर जी लिख रहे हैं, तो उसमें सहयोग कर रहा हूं।

आपने टीवी पर बहुत सारा काम किया है लेकिन इस शो को करने में कितना मजा आ रहा है?

कॉमेडी सर्कस, लाफ्टर शो जैसे कॉमेडी शो किए हैं मैंने, लेकिन ये बिल्कुल अलग है। वहां हम हंसाते थे, लोग हंसकर भूल जाते थे। ये एक मीनिंगफुल शो है इसमें गहराई थी। हम लोगों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर रहे हैं।

कॉमेडी के मसाले आप कहां से लाते हैं?

समाज में इतना सारा मसाला खुद ही बिखरा पड़ा है। बस उसे समेटने के लिए नजरिए की जरूरत होती है। हर रोज अखबार, टीवी और रियल लाइफ में होने वाली घटनाओं पर गौर करके उसमें से ही हंसाने का मसाला निकाल लेता हूं। इस शो के इश्यूज देखकर लगेगा कि हां यार ऐसा तो हम सबके साथ भी होता है।

रियलिटी शो, सोशल मीडिया, यूट्यूब के कारण क्या अब टीवी पर पहुंच आसान हो गई है?

हां, इन चीजों ने लोगों की पर्दे तक पहुंच आसान तो कर दी है लेकिन वहां अपनी जगह बनाना आसान नहीं है। ये शॉर्टकट है, पर इससे सफलता प्राप्त कर वहां टिकना आसान नहीं है। लोग खुद को रिपीट करने लगते हैं।

आपकी किताब कहां तक पहुंची?

मेरी किताब 'चुल्ली भर पंक्तियां' पूरी हो गई है। बीच में उसमें थोड़े बदलाव करने पड़े इसकी वजह से थोड़ी देर हो गई। इसमें मैंने बीस साल के अपने अनुभवों को पिरोया है। शो की वजह से उसे टाइम नहीं दे पा रहा हूं।

शो के अलावा और क्या चल रहा है?

अभी फिलहाल पूरा फोकस शो पर ही है। शूटिंग, प्रमोशन, राइटिंग के बीच दूसरे काम के लिए टाइम ही नहीं मिल पाता है। हां मैंने एक लाइव शो बनाया है, जिसे मुझे व‌र्ल्ड टूर पर लेकर जाना है। उसके कुछ शो यूरोप में किए थे। अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। अब उसी को अपडेट करके व‌र्ल्ड टूर करना है।

इस भागमभाग भरी जिंदगी में इंसान खुश रहने के लिए क्या करें?

खुश रहने का कोई फिक्स फॉर्मूला नहीं है। खुशी इंसान के अंदर होती है। खुश रहने वाला इंसान हर परिस्थिति में खुश रह लेता है। खुद को मस्त रखना चाहिए। अपने काम को भी खुशी-खुशी करें और टेंशनमुक्त रहें।

कानपुर की कितनी याद सताती है?

जब से ये शो कर रहा हूं मुझे कानपुर की बहुत याद सताती है क्यांकि इसमे बहुत सारी चीजें हमने कानपुर से भी उठाई हैं। कानपुर के कैरेक्टर, कानपुर के माहौल को लिया है शो में। मन करता है कि जहां साइकिल से घूमा करता था, जहां गलियों में टहला करता था, वहां जाऊं। सड़क किनारे, नुक्कड़ में बैठकर लकड़ी वाले स्टॉल पर चाय पियूं।

आजकल कॉमेडी में हो रही अभद्र भाषा के प्रयोग पर क्या कहेंगे?

अभद्र भाषा का इस्तेमाल केवल वे लोग करते हैं, जो अपने काम में मजबूत नहीं है। यदि वे कंटेंट में मजबूत होंगे, तो उनको इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं करना पड़ेगा।


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