Move to Jagran APP

पैतृक गांव परौंख के सोशल इंजीनियर भी हैं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

उन्होंने दलित वर्ग से दाई (ग्रामीणों को नाम याद नहीं) को, जबकि पिछड़ा वर्ग से सीताराम कुशवाहा को चुना। पूरे गांव के सामने पैर छूकर शॉल से सम्मान किया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 25 Jul 2017 01:34 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 05:41 PM (IST)
पैतृक गांव परौंख के सोशल इंजीनियर भी हैं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
पैतृक गांव परौंख के सोशल इंजीनियर भी हैं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

कानपुर (जेएनएन)। देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का व्यक्तित्व उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो 'सोशल इंजीनियरिंग' को वोट बटोरने का हथियार बना बैठे हैं। वह तो अपने पैतृक गांव कानपुर देहात के डेरापुर क्षेत्र के परौंख के सोशल इंजीनियर हैं। 

loksabha election banner

देश के काफी राजनीतिक दलों के लिए भले ही सोशल इंजीनियरिंग वोट बटोरने का हथियार हो, मगर देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इसका इस्तेमाल गांव में दलित, पिछड़ा और सवर्णों के बीच की खाई पाटने के लिए करते रहे हैं। ऊंचे ओहदे पर जा बैठे रामनाथ कोविंद गांव में भावनाओं के ऐसे ऊंचे मंच सजाते रहे हैं, जहां से वह हर एक की नजर में चढ़ते चले गए।

कानपुर देहात के डेरापुर के परौंख गांव के निवासी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैतृक गांव में हर वर्ग के लोग रहते हैं। इस गांव से अब तक कोई व्यक्ति ऐसे मुकाम पर नहीं पहुंचे, जिसने क्षेत्र को पहचान दिलाई हो। मगर, रामनाथ कोविंद ही ऐसे रहे, जिनकी सफलता पर पूरा गांव साझा खुशियां मनाता रहा है। 

सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे कोविंद गौरवशाली सफर तो राज्यसभा सांसद के रूप में शुरू हुआ। 12 वर्ष सांसद रहने के बाद वह बिहार के राज्यपाल रहे और अब राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं। 72 वर्ष के जसवंत सिंह के मुताबिक, वह रामनाथ कोविंद के सहपाठी रहे हैं।

उनका कहना था कि रामनाथ कोविंद बचपन से ही पढऩे में होशियार और शांत स्वभाव के थे। तब भी उन्हें सब पसंद करते थे और फिर जब वह सफलता की उड़ान भरने लगे, तब भी। जसवंत सिंह ने बताया कि राज्यसभा सांसद बनने के बाद रामनाथ कोविंद 2001 में गांव आए थे। तब उन्होंने ही यहां पर सम्मान समारोह आयोजित कराया।

यह भी पढ़ें: शपथ ग्रहण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 22 परिवारीजन

उस समय कोविंद माता-पिता के रूप में दो बुजुर्गों का सम्मान करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दलित वर्ग से दाई (ग्रामीणों को नाम याद नहीं) को, जबकि पिछड़ा वर्ग से सीताराम कुशवाहा को चुना। पूरे गांव के सामने पैर छूकर शॉल से सम्मान किया।

देखें तस्वीरें : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के गांव में जमकर जश्न

इसके बाद बिहार के राज्यपाल बनने के बाद आठ दिसंबर 2015 में पैतृक गांव आए। दलितों में सीताराम दोहरे और सवर्णों में रन्नो देवी भदौरिया का सम्मान माता-पिता रूप में किया।

यह भी पढ़ें: सीएम योगी आदित्यनाथ ने काम में ढिलाई पर अफसरों को फटकार लगाई

गांव की बेटियों की शादी के लिए दे गए थे दान

पड़ोसी जितेंद्र सिंह भदौरिया ने बताया कि 2001 में बाबा (रामनाथ कोविंद) गांव आए थे, तब सभी ने उनका स्वागत किया।

यह भी पढ़ें: प्रधानमंत्री के लिए नरेंद्र मोदी से योग्य कोई नहीं : योगी आदित्यनाथ

तब सम्मान में मिले चांदी के 11 मुकुट और 83 किलो सिक्के वह गांव की बेटियों की शादी के लिए दे गए थे। प्रधान बलवान सिंह के मुताबिक, दान का इस्तेमाल करते वक्त भी किसी जाति-वर्ग को नहीं देखा गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.