पैतृक गांव परौंख के सोशल इंजीनियर भी हैं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
उन्होंने दलित वर्ग से दाई (ग्रामीणों को नाम याद नहीं) को, जबकि पिछड़ा वर्ग से सीताराम कुशवाहा को चुना। पूरे गांव के सामने पैर छूकर शॉल से सम्मान किया।
कानपुर (जेएनएन)। देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का व्यक्तित्व उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो 'सोशल इंजीनियरिंग' को वोट बटोरने का हथियार बना बैठे हैं। वह तो अपने पैतृक गांव कानपुर देहात के डेरापुर क्षेत्र के परौंख के सोशल इंजीनियर हैं।
देश के काफी राजनीतिक दलों के लिए भले ही सोशल इंजीनियरिंग वोट बटोरने का हथियार हो, मगर देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इसका इस्तेमाल गांव में दलित, पिछड़ा और सवर्णों के बीच की खाई पाटने के लिए करते रहे हैं। ऊंचे ओहदे पर जा बैठे रामनाथ कोविंद गांव में भावनाओं के ऐसे ऊंचे मंच सजाते रहे हैं, जहां से वह हर एक की नजर में चढ़ते चले गए।
कानपुर देहात के डेरापुर के परौंख गांव के निवासी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पैतृक गांव में हर वर्ग के लोग रहते हैं। इस गांव से अब तक कोई व्यक्ति ऐसे मुकाम पर नहीं पहुंचे, जिसने क्षेत्र को पहचान दिलाई हो। मगर, रामनाथ कोविंद ही ऐसे रहे, जिनकी सफलता पर पूरा गांव साझा खुशियां मनाता रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील रहे कोविंद गौरवशाली सफर तो राज्यसभा सांसद के रूप में शुरू हुआ। 12 वर्ष सांसद रहने के बाद वह बिहार के राज्यपाल रहे और अब राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं। 72 वर्ष के जसवंत सिंह के मुताबिक, वह रामनाथ कोविंद के सहपाठी रहे हैं।
भारत के 14वें राष्ट्रपति का पद संभालने पर माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी को बधाई एवं सफल कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं| #PresidentKovind pic.twitter.com/VtzMganyN8— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) July 25, 2017
उनका कहना था कि रामनाथ कोविंद बचपन से ही पढऩे में होशियार और शांत स्वभाव के थे। तब भी उन्हें सब पसंद करते थे और फिर जब वह सफलता की उड़ान भरने लगे, तब भी। जसवंत सिंह ने बताया कि राज्यसभा सांसद बनने के बाद रामनाथ कोविंद 2001 में गांव आए थे। तब उन्होंने ही यहां पर सम्मान समारोह आयोजित कराया।
यह भी पढ़ें: शपथ ग्रहण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के 22 परिवारीजन
उस समय कोविंद माता-पिता के रूप में दो बुजुर्गों का सम्मान करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दलित वर्ग से दाई (ग्रामीणों को नाम याद नहीं) को, जबकि पिछड़ा वर्ग से सीताराम कुशवाहा को चुना। पूरे गांव के सामने पैर छूकर शॉल से सम्मान किया।
देखें तस्वीरें : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के गांव में जमकर जश्न
इसके बाद बिहार के राज्यपाल बनने के बाद आठ दिसंबर 2015 में पैतृक गांव आए। दलितों में सीताराम दोहरे और सवर्णों में रन्नो देवी भदौरिया का सम्मान माता-पिता रूप में किया।
यह भी पढ़ें: सीएम योगी आदित्यनाथ ने काम में ढिलाई पर अफसरों को फटकार लगाई
गांव की बेटियों की शादी के लिए दे गए थे दान
पड़ोसी जितेंद्र सिंह भदौरिया ने बताया कि 2001 में बाबा (रामनाथ कोविंद) गांव आए थे, तब सभी ने उनका स्वागत किया।
यह भी पढ़ें: प्रधानमंत्री के लिए नरेंद्र मोदी से योग्य कोई नहीं : योगी आदित्यनाथ
तब सम्मान में मिले चांदी के 11 मुकुट और 83 किलो सिक्के वह गांव की बेटियों की शादी के लिए दे गए थे। प्रधान बलवान सिंह के मुताबिक, दान का इस्तेमाल करते वक्त भी किसी जाति-वर्ग को नहीं देखा गया।