परिषदीय स्कूलों के बच्चों को लर्निंग कॉर्नर के माध्यम से शिक्षित कर रही प्रेरणा समिति
लॉकडाउन में सबकुछ थमा पर आर्थिक कमजोर परिवारों के बच्चों की भी पढ़ाई नहीं हुई डाउन फतेहपुर में प्रधानाध्यापक दीवार पर चस्पा करातीं शिक्षण सामग्री बच्चे करते पढ़ाई कुछ लोग सुबह बच्चों की मदद करते हैं तो कुछ लोग शाम को मंदिर के चबूतरे पर बैठकर वर्क जांचते
फतेहपुर, [जयकेश पांडेय]। आइए, आज आपको ऐसे गांव से रूबरू कराते हैं जहां एंड्रॉयड फोन या इंटरनेट न होने के बाद भी गरीब परिवारों के बच्चों की पढ़ाई नहींं रुकी। लॉकडाउन के दौरान खजुहा ब्लाक के बरेठर खुर्द में लर्निंग कॉर्नर के नाम से बनाई गई दीवारों ने शिक्षा में अवरोध नहीं आने दिया। यहां चिपकी शिक्षण सामग्री से बच्चे काम नोट करते हैं और शाम को मंदिर के चबूतरे पर उसे जांचा जाता है। शिक्षिका की इस सार्थक पहल का फोटो विभागीय वाट्सएप ग्रुप में डाला गया तो शासन से सराहना मिली और इसे अन्य जिलों में क्रियान्वित करने के निर्देश दिए गए हैं।
इसकी शुरुआत लॉकडाउन के दौरान हुई। दरअसल स्कूल बंद होने पर पब्लिक स्कूल के बच्चों की पढ़ाई तो ऑनलाइन होने लगी लेकिन परिषदीय और माध्यमिक विद्यालयों के बच्चों के पास ये सुविधा कहां। ऐसे में प्राथमिक विद्यालय बरेठर खुर्द की प्रधानाध्यापक अर्चना अरोड़ा ने इसका नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला। उन्होंने गांव के लोगों से बात की तो अभिनव सिंह भदौरिया और राजबहादुर सिंह अपने घर के पीछे की दीवार देने को राजी हो गए। प्रधानाध्यापक ने ग्रामीणों की मदद से दीवारों को प्लास्टर और पेंट कराकर तैयार कराया। अर्चना हर 10 दिन में कानपुर से पाठ्य सामग्री प्रिंट कराकर ले जाती हैं और चस्पा कराती हैं। कक्षा एक से पांच तक की हर विषय की शिक्षण सामग्री पोस्टर या फ्लैक्स दोनों में होती है। इसके बाद अभिभावकों को सूचना भेजकर बच्चों को बुलवाया। अब बच्चे वर्क नोट करके ले जाते हैं या कई बार उन्हीं दीवारों के पास बैठकर ही करते हैं।
घर लौटे युवाओं की प्रेरणा समिति बनी मददगार
सबसे बड़ा संकट ये था कि बच्चों को पढऩे में दिक्कत आएगी तो उसे सुलझाएगा कौन। अर्चना ने उसका भी रास्ता निकाला। बाहर पढऩे गए और लॉकडाउन में लौटे 24 युवाओं की प्रेरणा समिति तैयार की। इसमें बीटेक करने के बाद चेन्नई में रेलवे पार्ट्स बनाने वाली कंपनी में जॉब कर रहे अभिनव, गाजियाबाद से इंजीनियरिंग कर रहे अभिनव, कानपुर में पॉलीटेक्निक छात्र प्रबल प्रताप सिंह और शिवम सिंह, परास्नातक की पढ़ाई कर रहीं शुभ्रा आदि जुड़े। कुछ लोग सुबह बच्चों की मदद करते हैं तो कुछ लोग शाम को मंदिर के चबूतरे पर बैठकर वर्क जांचते हैं। बच्चों की दिक्कतें भी हल करते हैं। वर्तमान में दिन भर में 100 से ज्यादा बच्चे काम नोट करते हैं और शाम को रोज वर्क चेक होता है।
चार साल में चार गुना बढ़े प्रवेश
वर्ष 2016 में विद्यालय में 56 बच्चे थे। अर्चना ने ग्रामीणों से संपर्क कर विद्यालय में प्रवेश संख्या 242 कराई। वर्ष 2019-20 में जिले में अधिक पंजीकरण पर उन्हें सम्मानित किया गया था।
इनका ये है कहना
बरेठर खुर्द का विद्यालय बेहतरीन है। शिक्षिका की सकारात्मक सोच से शिक्षा का स्तर बढ़ा है। उनका ये मॉडल अन्य जिलों में लागू कराया जा रहा है। - शिवेंद्र प्रताप सिंह, बेसिक शिक्षा अधिकारी