बांग्लादेश में फैली बीमारी से गेहूं को बचाने की तैयारी, पश्चिम बंगाल से आए बीज प्रतिबंधित
आइआइपीआर में प्लांट एंड स्वाइल हेल्थ मैनेजमेंटÓ पर आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने जताई चिंता।
By Edited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 01:38 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 02:09 PM (IST)
कानपुर, जागरण संवाददाता। बांग्लादेश में फैली गेहूं की खास तरह की बीमारी को देश में फैलने से रोकने की तैयारी शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल, बिहार के कई गांवों को 'नो व्हीट जोनÓ घोषित कर दिया गया है। सेना और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स अलर्ट पर हैं। कृषि केंद्रों को पश्चिम बंगाल से आए बीजों को प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए हैं।
यह बात शनिवार को भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आइआइपीआर) में 'प्लांट एंड स्वाइल हेल्थ मैनेजमेंटÓ पर आयोजित सेमिनार में देश भर से आए कृषि विशेषज्ञों के मंथन में सामने आई। विशेषज्ञों के मुताबिक यह रोग पकड़ लेता है तो इसका संक्रमण हवा के माध्यम से एक किलोमीटर क्षेत्र में तेजी से फैल सकता है। ठीक उसी तरह जैसे अपने यहां झुलसा रोग है।
बिना परीक्षण विदेशों से आने वाले बीज खतरनाक
करनाल स्थित गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. डीपी सिंह ने कहा कि बिना परीक्षण विदेशों से आने वाले बीज खतरनाक होते हैं। बांग्लादेश में भी पांच छह साल पहले ब्राजील से गेहूं मंगाया गया था। इसका बीज तैयार करने से यह समस्या पैदा हुई है। वहां की सरकार ने कई टन उत्पादन नष्ट किया है। पश्चिम बंगाल के नादिया, मुर्शीदाबाद, पूर्णिया और बिहार के किशनगंज समेत अन्य हिस्सों पर कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक लगातार जांच कर रहे हैं।
हवा में तेजी से फैलता है वायरस
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के निदेशक डॉ. एमपी ठाकुर ने बताया कि फसलों में बीमारियों के फैलने की सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और अधिकाधिक रसायनों का प्रयोग है।
भारत की 100 में से 25 प्रजातियां पास
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में विकसित हुई गेहूं की 100 प्रजातियों को बंग्लादेश में बोया गया। इनमें से 25 रोग प्रतिरोधी साबित हुई हैं। डीबीडब्ल्यू 187, एचडी 2967 ने काफी बेहतर पैदावार की है।
राजस्थान में गैनोडरमा का खतरा
उदयपुर कृषि केंद्र से आईं प्रो. रितु मौहर ने बताया कि राजस्थान में बहुतायत में उगने वाले कल्पवृक्ष (खेजरी) में गैनोडरमा नाम का रोग लग गया है। यह पत्तियों में लगता है।
गन्ने और चने की रोग प्रतिरोधी प्रजाति जल्द
इंडियन सोसाइटी ऑफ माइकोलॉजी एंड प्लांट पैथोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. पीके चक्रवर्ती, डॉ. आरके सिंह ने गन्ने और चने में लगने वाली बीमारी को रोकने के लिए जल्द ही रोग प्रतिरोधक प्रजाति आने की बात कही। सेमिनार में नाइजीरिया से आए कृषि वैज्ञानिक को सम्मानित किया गया। आइआइपीआर के निदेशक डॉ. एनपी सिंह, डॉ. संजीव गुप्ता, डॉ. आरके श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।
यह बात शनिवार को भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आइआइपीआर) में 'प्लांट एंड स्वाइल हेल्थ मैनेजमेंटÓ पर आयोजित सेमिनार में देश भर से आए कृषि विशेषज्ञों के मंथन में सामने आई। विशेषज्ञों के मुताबिक यह रोग पकड़ लेता है तो इसका संक्रमण हवा के माध्यम से एक किलोमीटर क्षेत्र में तेजी से फैल सकता है। ठीक उसी तरह जैसे अपने यहां झुलसा रोग है।
बिना परीक्षण विदेशों से आने वाले बीज खतरनाक
करनाल स्थित गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. डीपी सिंह ने कहा कि बिना परीक्षण विदेशों से आने वाले बीज खतरनाक होते हैं। बांग्लादेश में भी पांच छह साल पहले ब्राजील से गेहूं मंगाया गया था। इसका बीज तैयार करने से यह समस्या पैदा हुई है। वहां की सरकार ने कई टन उत्पादन नष्ट किया है। पश्चिम बंगाल के नादिया, मुर्शीदाबाद, पूर्णिया और बिहार के किशनगंज समेत अन्य हिस्सों पर कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक लगातार जांच कर रहे हैं।
हवा में तेजी से फैलता है वायरस
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के निदेशक डॉ. एमपी ठाकुर ने बताया कि फसलों में बीमारियों के फैलने की सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और अधिकाधिक रसायनों का प्रयोग है।
भारत की 100 में से 25 प्रजातियां पास
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में विकसित हुई गेहूं की 100 प्रजातियों को बंग्लादेश में बोया गया। इनमें से 25 रोग प्रतिरोधी साबित हुई हैं। डीबीडब्ल्यू 187, एचडी 2967 ने काफी बेहतर पैदावार की है।
राजस्थान में गैनोडरमा का खतरा
उदयपुर कृषि केंद्र से आईं प्रो. रितु मौहर ने बताया कि राजस्थान में बहुतायत में उगने वाले कल्पवृक्ष (खेजरी) में गैनोडरमा नाम का रोग लग गया है। यह पत्तियों में लगता है।
गन्ने और चने की रोग प्रतिरोधी प्रजाति जल्द
इंडियन सोसाइटी ऑफ माइकोलॉजी एंड प्लांट पैथोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. पीके चक्रवर्ती, डॉ. आरके सिंह ने गन्ने और चने में लगने वाली बीमारी को रोकने के लिए जल्द ही रोग प्रतिरोधक प्रजाति आने की बात कही। सेमिनार में नाइजीरिया से आए कृषि वैज्ञानिक को सम्मानित किया गया। आइआइपीआर के निदेशक डॉ. एनपी सिंह, डॉ. संजीव गुप्ता, डॉ. आरके श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।
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