मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समानांतर दूसरा बोर्ड बनाने की तैयारी
आल इंडिया गरीब नवाज कौंसिल का मानना है कि पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिमों का कोई पक्ष मजबूती से नहीं रख रहा है। ऐसे में आवाम की बातों को मजबूती से रखने के लिए एक अन्य बोर्ड की जरूरत है।
कानपुर (जेएनएन)। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समानांतर अब एक नया बोर्ड खड़ा करने की तैयारी हो रही है। इसकी कवायद में जुटे आल इंडिया गरीब नवाज कौंसिल ने देशभर के मदरसा संचालक, मदरसा शिक्षकों, खानकाहों के सज्जादानशीन और मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संपर्क किया है। नए बोर्ड में ये सब हिस्सा होंगे। दरअसल, कौंसिल का मानना है कि पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिमों का कोई पक्ष मजबूती से नहीं रख रहा है। ऐसे में आवाम की बातों को मजबूती से रखने के लिए एक अन्य बोर्ड की जरूरत है।
कौंसिल अध्यक्ष मौलाना हाशिम अशरफी का कहना है कि पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिमों के पक्ष को मजबूती नहीं दे पा रहा है। तीन तलाक का मुद्दा इसका उदाहरण है। कुरआन के दूसरे पारे में तलाक का पूरा विवरण है, फिर पर्सनल लॉ बोर्ड अपनी बात कोर्ट में क्यों नहीं रख पा रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कुरआन में तीन तलाक का विवरण होगा तो कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा।
नया बोर्ड
अजमेर शरीफ, कछौछा शरीफ, बरेली शरीफ, फफूंद शरीफ, देवा शरीफ समेत कई खानकाहों के सज्जादानशीन, नायब सज्जादानशीन के अलावा देशभर के मदरसा संचालक, मदरसों के शिक्षक, उलमा, कालेजों के प्रोफेसर, डाक्टर व देशभर के बुद्धिजीवी शामिल होंगे।
महिला बोर्ड पहले से ही
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर महिलाओं की उपेक्षा का आरोप लगा शाइस्ता अंबर पहले ही आल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड गठित कर चुकी हैं। इसी तरह शिया पर्सनल लॉ बोर्ड भी लखनऊ में पहले से है।
बस्तियों में काउंसिलिंग सेंटर
मुस्लिम बस्तियों में अभियान चलाकर बुराइयों को दूर किया जाएगा और बिगड़े हुए लोगों को रोजी रोटी से जोडऩे के लिए काउंसिलिंग सेंटर खोले जाएंगे। मौलाना अशरफी ने बताया कि हर जिले में एक सेंटर खुलेगा। देशभर के उलमा उनके संपर्क में हैं। जल्द ही एक मजबूत संगठन अमल में आएगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सबसे पुराना
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का कहना है कि यह बोर्ड सबसे पुराना है जिसमें देश के सभी जाने माने संगठनों के सदस्य शामिल हैं। मुस्लिम समाज को हक दिलाने के लिए यह सर्वोच्च बोर्ड है। इसके सामांतर कितने भी बोर्ड बन जाएं, लेकिन इसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। ऐसा करने से बोर्ड की विश्वसनीयता पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।