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गंगा सफाई के अपने-अपने गैंग, घाट चमकाने की लगी होड़ Kanpur News

गंगा की सफाई को लेकर हो रही राजनीति को सामने लाती खबर।

By AbhishekEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 11:47 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 11:47 PM (IST)
गंगा सफाई के अपने-अपने गैंग, घाट चमकाने की लगी होड़ Kanpur News
गंगा सफाई के अपने-अपने गैंग, घाट चमकाने की लगी होड़ Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। राजनीति व अफसरशाही एक दूसरे के पूरक होते हैं। नेताओं के साथ ही अफसर भी आगे आकर चमकना चाहते हैं। ऐसे में अड़ंगा डालने वालों को सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रहते। शहर में इस समय चल रही राजनीति के अंदरखाने की खबरों को रियल जर्नलिज्म के तहत जनता के सामने ला रहे हैं अपने कॉलम गंगा तीरे से श्रीनारायण मिश्र।

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हाथ का मैल

सफाई में हाथ मैले होते हैं, इसलिए हर कोई हाथ खींचता है। मगर धन्य है अफसरशाही जो इस पुनीत काम में टूट पड़ती है। वह भलीभांति जानती है कि सफाई से हाथ मैले होते हैं और तभी 'हाथ का मैल' हासिल होता है। गंगा सफाई का जिक्र आते ही अफसर, मैनेजर और नेताओं का गैंग तैयार हो गया। घाट-घाट साफ होने लगे। हालांकि घाट कितने साफ हो रहे हैं, यह बात तो बिठूर के बाशिंदे ही बेहतर बता पाएंगे, लेकिन 'हाथ का मैल' खूब निकल रहा है। शासन के एक आला अफसर जो सफाई का जिम्मा संभालते हैं, वे घाट तो झांकने नहीं आते पर मैल कितना निकल रहा इसकी पूरी खबर रखते हैं। सफाई के ऐसे पुनीत कार्य में वे कोई अड़ंगा भी बर्दाश्त नहीं करते। फिर चाहे वह विधायक ही क्यों न हो, सबक सिखाने के लिए साहब 'कुछ भी' कर सकते हैं और कर भी रहे हैं।

राजनीति की डोर

गंगा खुद पतितपावनी हैं, सो उन्हें साफ करने का काम भला मनुष्य बेचारा कैसे कर सकता है। वह तो सिर्फ प्रयास ही करता है। अब इस प्रयास पर सवाल उठाना 'जायज' नहीं माना जा सकता। बिठूर विधायक ने यह सवाल उठाकर जो कृत्य किया, उसका दंड उन्हें दिया जाना चाहिए। सभी जिम्मेदार सक्रिय हो गए। अचानक आरोपों की ऐसी बौछार आई कि विधायक बेचारे लड़खड़ा गए। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि 'कैसे-कैसे' आरोप उन पर लग सकते हैं। पुण्यकर्म के लिए भी दंड होता है, इसका अहसास भी हो गया और अफसरशाही के प्रभाव का अंदाजा भी। उन्हें यह भी पता चल गया कि राजनीति के मैदान में खिलाड़ी भले ही नेता हों, लेकिन उनकी डोर अफसर ही थामते हैं। वह जब चाहें, जिधर चाहें खेल का रुख पलट देते हैं। सो, राजनीति के अफसरी पैंतरे का शिकार विधायक जी लखनऊ से मीडिया तक दौड़ लगा रहे हैं।

एक अदृश्य हाथ

गंगा सफाई के गड़बड़झाले का जो मुद्दा उठाए बिठूर विधायक घूम रहे हैं उसमें एक 'अदृश्य हाथ' भी है। वैसे इस अदृश्य हाथ को कुछ लोग 'भोला' कहते हैं, लेकिन सीधे नाम लेने से विधायक जी भी कतराते हैं। असल में ये हाथ राजनीतिक है और पॉवर प्लांट से लेकर टोल प्लाजा तक पहुंच रखता है। वहां इस हाथ के लिए सैकड़ों हाथ काम करते हैं। यह सभी हाथ कमाते हैं और अदृश्य हाथ को आर्थिक और राजनीतिक ताकत देते हैं। गंगा सफाई के मुद्दे पर विधायक से इस हाथ की भिड़ंत ने आभासी दुनिया में भी हलचल मचा दी। वहां भी अदृश्य हाथ की खूब चर्चा हो रही है। जब से यह विवाद उभरा है, अदृश्य हाथ और विधायक के बीच समझौते के प्रयास भी शुरू हो गए हैं क्योंकि दोनों के साथ ही पार्टी को भी नुकसान पहुंच रहा है। फायदे में तो केवल तमाशाई दिख रहे हैं।

नालों से समझौता

गंगा यात्रा शहर पहुंचने वाली है। चुप्पी साधे अफसर फिर गंगा के लिए फिक्रमंद हैं। दौड़-भाग तेज हो गई है, गिरने वाले नालों से फिर कुछ दिन गंगा में न गिरने की गुजारिश की जाने लगी है। दरख्वास्त है कि 'भई! बस चंद रोज ठहर जाओ, गंगायात्रा गुजर जाए तो जो मर्जी करना।' नालों से अफसरों का वही रिश्ता है जो नगर निगम का अतिक्रमण से है। कोई वीआइपी आ रहा होता है तो इशारा देख अतिक्रमण खुद-ब-खुद गायब। फिर पूरी तबीयत से बाहर निकल आता है और निगम अपने रिश्ते का लिहाज कर इन्हें नहीं टोकता। दोनों के बीच यह समझौता बरसों से है। नालों से भी यही समझौता कायम हो रहा है। प्रधानमंत्री के जाने के बाद जब नाले गंगा में गिरने लगे तो किसी ने नहीं टोका। अब गंगा यात्रा आ रही है, इसलिए समझौते के अनुसार कह रहे 'ठहर जाओ, बस चंद रोज की बात है।' 


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