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पितृ पक्ष : गया और बद्रीनाथ जाने से पहले यहां क्यों है प्रथम पिंड दान का महत्व

लोग पूर्वजों का पूजन कर श्राद्ध और तर्पण करते हैं। इसी क्रम में बद्रीनाथ और गया में लोग पिंड दान करने जाते हैं। इसी तरह मूसानगर में पितृ पक्ष में भी लोग पहुंचते हैं।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 02:40 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:50 AM (IST)
पितृ पक्ष : गया और बद्रीनाथ जाने से पहले यहां क्यों है प्रथम पिंड दान का महत्व
पितृ पक्ष : गया और बद्रीनाथ जाने से पहले यहां क्यों है प्रथम पिंड दान का महत्व

कानपुर देहात (करुणा सागर दुबे)। माता-पिता की पुत्र को लेकर एक ही इच्छा होती है कि मृत्यु उपरांत वह उनका अंतिम संस्कार करे और पितृ पक्ष में पिंड दान करे। वैसे देश के करीब पचपन स्थानों पर पिंड दान का महत्व है लेकिन उत्तर भारत में उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम और बिहार के गया में इस कर्म का विशेष महत्व माना जाता है। इसके अलावा कानपुर देहात में भी एक ऐसी जगह है, जहां पर पिंड दान करने से बद्रीनाथ और गया जी जैसा फल मिलता है। इस जगह को छोटी गया के नाम से जाना जाता है और यहां आसपास जनपदों से ही नहीं प्रांतों से भी लोग पितृ पक्ष में प्रथम पिंड दान के लिए आते हैं।

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क्यों जरूरी होता पिंड दान

मान्यता के अनुसार पिंड दान मोक्ष प्राप्ति के लिए सरल मार्ग है। कहा जाता है कि शरीर त्यागने वाला जिस लोक या जिस रूप में होता है वह पितृ पक्ष के समय पृथ्वी पर आते हैं। इसी दौरान लोग पूर्वजों का पूजन कर श्राद्ध और तर्पण करते हैं, जिससे वह तृप्त हो जाते हैं। इसी क्रम में जब व्यक्ति बद्रीनाथ और गया में पिंड दान कर देते हैं तो माना जाता है पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो गई। इसके बाद उन्हें श्राद्ध कर्म नहीं करना पड़ता है।

क्या होता है और कैसे बनता पिंड

विद्वानों के अनुसार किसी वस्तु के गोल रूप को पिंड कहते हैं, जो शरीर का प्रतीकात्मक माना जाता है। जौ या फिर चावल के आंटे में गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर पिंड बनाया जाता है। इसे दक्षिणाभिमुख होकर, आचमन कर अपने जनेऊ को दायीं ओर कंधे पर रखकर श्रद्धा भाव से पितरों को अर्पित करना ही पिंडदान कहा जाता है। जल में जौ, काला तिल, कुश और सफेद फूल मिलकार विधिपूर्वक तर्पण करते हैं। ऐसा माना जाता है इस कर्म से पितर तृप्त होते हैं। इसके कर्म के बाद ब्राह्म्ण भोज कराया जाता है।

यमुना के उत्तरगामिनी से बढ़ जाता महत्व

कानपुर शहर से करीब सत्तर किमी दूर कानपुर देहात के कस्बा मूसानगर में पौराणिक देवयानी सरोवर को मातृ गया का दर्जा प्राप्त है। यहां प्रथम पिंडदान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहां पितरों का श्राद्ध किए बगैर गया में श्राद्ध का फल पूरा नहीं होता है। देवयानी सरोवर से दो किमी दक्षिण में यमुना नदी है, जो उत्तरगामिनी है। इस वजह से यहां पर पिंड दान का अलग महत्व माना जाता है। पितृपक्ष में बड़ी संख्या में लोग पितरों को पिंडदान करने आते हैं।

राजा ययाति ने बनवाया था सरोवर

देवयानी सरोवर को लोग छोटी गया के नाम से भी जानते हैं। यहां पितृ पक्ष में लोग श्राद्ध, तर्पण व पिंड दान करते हैं। इतिहासकारों के अनुसार एक समय दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा व दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी यहां जंगल में घूमने आई थीं। जंगल में सरोवर देखकर दोनों स्नान करने लगीं थीं। इस बीच भगवान शंकर को आते देख देवयानी ने जल्दबाजी में शर्मिष्ठा के वस्त्र पहन लिए थे। इससे गुस्से में आकर शर्मिष्ठा ने देवयानी को कुएं में धक्का दे दिया था। जाजमऊ के राजा यायाति ने पुकार सुनकर देवयानी को बाहर निकाला था। इसकी जानकारी पर शुक्राचार्य ने राजा यायाति से देवयानी का विवाह कर दिया था। दैत्यराज वृषपर्वा से नाराजगी जता जाने को कहा लेकिन राजा यायाति के विनय पर शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनाने की शर्त पर माने। इसके बाद राजा यायाति ने सरोवर को भव्य रूप प्रदान किया, जिसे देवयानी सरोवर कहा गया।

प्राचीन है परंपरा

मूसानगर स्थित देवयानी सरोवर में पिंड दान की परंपरा काफी प्राचीन है। यहां आसपास के जनपद ही नहीं पड़ोसी प्रांतों से भी लोग गया या बद्रीनाथ जाने से पहले पितृ पक्ष में पिंड दान के लिए आते हैं। यहां पिंडदान कराने वाले आचार्य गुड्डू पाठक बताते हैं कि पितृपक्ष के नजदीक आते ही यहां पिंडदान की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। प्रति दिन यहां पिंड दान के लिए लोगों को तांता लगा रहता है।

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