पैरेंट्स का एक गलत कदम बच्चों को बना देता है मोबाइल एडिक्ट, लत से दूर रखने के लिए पढ़ें ये खास रिपोर्ट
चाइल्ड साइकोलाजिकल काउंसलर्स इला शर्मा कहती हैं कि यदि आप चाहते हैैं कि बच्चों का सही तरीके से शारीरिक और मानसिक विकास हो तो जरूरी है कि उन्हें व्यस्त रखने के लिए बात-बात पर मोबाइल ना पकड़ाएं... ।
आजकल देखने में आया है कि बच्चे मोबाइल के एिडक्ट होते जा रहे हैं, देखने में आया है कि बच्चों ये लत डलवाने में सबस बड़ा हाथ बड़ों का हाेता है। चाइल्ड साइकोलाजिकल काउंसलर्स इला शर्मा का मानना है कि बेहतर पैरेंटिंग के लिए बच्चों को मोबाइल से थोड़ा दूर ही रखें। आइए पढ़ते हैं ये खास रिपोर्ट।
अक्सर आपने बहुत से घरों में देखा होगा कि बड़े बच्चे ही नहीं छोटे-छोटे बच्चे भी जब कोर्ई बात नहीं मानते हैैं या अच्छी तरह से खाना नहीं खाते हैैं या किसी का कहना नहीं मानते हैैं तो बहुत सी महिलाएं उन्हें अपना मोबाइल पकड़ा देती हैैं या बच्चों की पढ़ाई के लिए खरीदे गए मोबाइल उन्हें पकड़ा देती हैैं। बच्चे भी मोबाइल के साथ ऐसे रम जाते हैैं, मानो उन्हें कोई जादुई पिटारा मिल गया हो। मोबाइल हाथ में आते ही बच्चे सबकी बातें मानने लगते हैैं, आराम से खाना खाने लगते हैैं। यही नहीं आप उनसे किसी काम के लिए कह दो, वे आराम से उस काम को पूरा कर देते हैैं। कारण, बच्चों के मन में भी एक तरह का भय व्याप्त हो जाता है कि अगर मैैंने किसी की बात नहीं मानी तो मुझसे मोबाइल ले लिया जाएगा या इंटरनेट बंद कर दिया जाएगा और वे न तो कोई गेम खेल पाएंगे और ना ही कोई वीडियो आदि देख पाएंगे।
इस संदर्भ में साइकोलाजिकल काउंसलर डा. मानसी सिंह का कहना है कि किसी चीज को खोने का भय हमारे मन में बहुत गहरे तक असर करता है। यही कारण होता है कि बच्चे मोबाइल पाने के लिए तमाम तरह के जतन करते हैैं। दिनभर में पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त कुछ समय के लिए मोबाइल देखना या गेम खेलना आदि कोई गलत बात नहीं है, लेकिन दिन या रात में लगातार कई घंटे तक मोबाइल में लगे रहना ना केवल आंखों के लिए, बल्कि मानसिक सेहत के लिए भी हानिकारक होता है। इसलिए आप चाहे कितनी भी व्यस्त रहती हों, बच्चों को बहलाने के लिए या अपनी सुविधा के लिए उन्हें मोबाइल पकड़ा देना गलत आदत है।
डा. मानसी सिंह कहती हैैं कि कुछ समय पहले मेरे पास एक महिला अपने बच्चे को लेकर आईं थीं। उनका कहना था कि मेरा आठ वर्षीय बेटा इंडोर या आउटडोर गेम्स में जरा भी दिलचस्पी नहीं लेता है। वह अपना ज्यादातर समय कंप्यूटर और मोबाइल गेम्स के साथ बिताता है। वह खेलकूद से जुड़ी किसी भी प्रकार की गतिविधियों में शामिल ही नहीं होता है। बच्चे की वजह से मैं बहुत चिंतित रहती हूं। इसका क्या समाधान हो सकता है?
इस बारे में डा. मानसी कहती हैैं कि आप इस बात पर गौर करें कि क्या घर में किसी अन्य सदस्य की भी ऐसी ही आदत है? अक्सर देखने में आता है कि बच्चे घर के ही किसी ना किसी सदस्य से थोड़ा-बहुत प्रभावित होते ही हैैं। अगर घर के किसी सदस्य की ऐसी आदत है तो उससे अपने में सुधार करने को कहें।
अगर आप परिवार के साथ रह रही हैैं तो अपने पति से या घर के किसी अन्य सदस्य से कह सकती हैैं कि वे सुबह जल्दी उठकर बच्चे को अपने साथ किसी पार्क में या किसी अन्य प्राकृतिक स्थान पर ले जाएं और वहां कुछ देर समय बिताएं। बच्चों के लिए फायदेमंद कुछ व्यायाम भी उससे करवाएं।
कामकाजी होने के कारण अगर आप परिवार या पति से दूर दूसरे शहर में रह रही हैैं तो प्रतिदिन थोड़ी देर शाम के समय या छुट्टी वाले दिन उसके साथ कुछ इंडोर गेम्स खेल सकती हैैं। आप चाहें तो उसके साथ बैडमिंटन भी खेल सकती हैैं। आजकल आप चाहें तो उसे किसी समर कैंप में भेज सकती हैैं। यदि आपके शहर में बच्चों के लिए स्विमिंग पूल हैैं तो उसे स्विमिंग के लिए भी भेज सकती हैं। अगर आप थोड़ा स्मार्ट तरीके से उसे एक्टिव रखने की कोशिश करेंगी तो इससे आपके बेटे की आदतों में काफी सुधार आएगा।