बच्चों का दम फुला रही जहरीली हवा, आक्सीजन के साथ ही घट रही प्रतिरोधक क्षमता Kanpur News
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अध्ययन में सामने आए आंकड़े हर साल दस फीसद बढ रहीं सांस की बीमारियां।
कानपुर, जेएनएन। पहले साल 200, दूसरे साल 500 और तीसरे साल 1300 बच्चे। ये वह बच्चे हैं जिनकी मासूमियत को न केवल वायु प्रदूषण ने छीन लिया, बल्कि उनके भविष्य पर भी ग्रहण लगा दिया। छोटी सी उम्र में फेफड़े जवाब देने लगे हैं तो कुछ देर हाथ-पांव चलाने पर उनका दम फूलने लगता है। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य (95-100 फीसद) से कम होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट गई। नतीजतन, सर्दी-जुकाम व खांसी से लेकर अन्य संक्रमण की चपेट में बार-बार आ जाते हैं। यह चौंकाने वाले तथ्य जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में हुए अध्ययन में सामने आए हैं।
एलएलआर अस्पताल (हैलट) के बाल रोग ओपीडी की अस्थमा क्लीनिक में सांस से जुड़ी बीमारियों के बच्चों की संख्या हर साल 10 फीसद की दर से बढ़ रही है। इसकी वजह जानने को बाल रोग विभाग में एक माह के बच्चों से लेकर 17 वर्ष तक के किशोरों पर अध्ययन किया गया। इसमें अब तक 2500 बच्चे पंजीकृत हो चुके हैं। इन बच्चों के चेस्ट एक्सरे एवं खून की जांच कराई गई। वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव पांच से दस वर्ष तक के बच्चों में अधिक मिला। जो घर से बाहर निकलते हैं और स्कूल जाते हैं। इनके श्वसन तंत्र और फेफड़े कमजोर पाए गए। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर 90 फीसद के आसपास मिला। बार-बार बीमार पडऩे की वजह से पढ़ाई प्रभावित होती है।
समस्या यह भी सामने आई
- शारीरिक विकास पर असर
- स्कूल जाने-आने में थकान
- खून में ऑक्सीजन कम होने से सुस्ती
- खेलने के दौरान जल्दी सांस फूलना
- सीढिय़ां चढऩे-उतरने में दिक्कत
- खेल में बार-बार हारने से मनोवैज्ञानिक दबाव
- चिड़चिड़ापन
उम्र के हिसाब से प्रभावित बच्चे
01 माह से 5 वर्ष - 15 फीसद बच्चे
05 वर्ष से 10 वर्ष - 60 फीसद बच्चे
10 वर्ष से 17 वर्ष - 25 फीसद बच्चे
क्या है अस्थमा (दमा)
प्रदूषणकारी तत्व सांस की नली में पहुंच कर एलर्जी पैदा करते हैं। सांस नली में सूजन आ जाती है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। रक्त में ऑक्सीजन की कमी से घुटन महसूस होती है। इससे दूसरे अंगों की कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
चिकित्सक की बात
अध्ययन में अधिकतर बच्चे जरूरतमंद एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के थे। प्रदूषण से निपटने को वृहद कार्ययोजना जरूरी है। सामूहिक प्रयास किए जाएं। सरकार एवं स्कूल प्रबंधन स्वच्छ वातावरण मुहैया कराएं। माता-पिता भी खानपान पर ध्यान दें।
- डॉ. राज तिलक, असिस्टेंट प्रोफेसर, बाल रोग विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज