Water Conservation: बुंदेलखंड में भी है बिहार जैसा ही एक दशरथ मांझी, जिसकी तपस्या से दूर हुई जल समस्या
हमीरपुर के सुमेरपुर ब्लाक के पचखुरा महान गांव में वर्षा की बूंदें सहेजने के लिए संत ने अपने अथक प्रयास से आठ बीघे का तालाब अकेले खोद दिया। पांच साल में सात फीट गहरी खोदाई करके तीन हजार ट्राली मिट्टी निकाली।
हमीरपुर, [जागरण स्पेशल]। एक जिद बिहार के दशरथ मांझी की थी जो रास्ते के लिए वर्षों छेनी-हथौड़ा चलाकर पहाड़ तोड़ दिया। ऐसा कर उन्होंने तमाम लोगों को न केवल रास्ते की सौगात दी बल्कि दृढ़ संकल्प से कुछ भी संभव कर दिखाने की राह भी दिखाई। एक 'मांझी' बुंदेलखंड में भी हैं, जो पांच वर्षों से पसीना बहा रहे हैं ताकि बारिश की बूंदें सहेज कर क्षेत्र की जल समस्या दूर की जा सके। जल समस्या दूर करने के लिए यह तपस्या कर रहे संत कृष्णानंद। अकेले दम पर पांच साल में आठ बीघे का तालाब सात फीट गहरा खोद चुके कृष्णानंद की पहचान ही बुंदेलखंड के मांझी के तौर पर हो गई है।
जल संचयन और ग्रामीणों को पानी उपलब्ध कराने की सोच से आठ बीघे का तालाब खोदने वाले कृष्णानंद का जन्म सुमेरपुर ब्लाक से 20 किमी दूर पचखुरा महान गांव में कल्लू सिंह के परिवार में वर्ष 1964 में हुआ। इंटर की पढ़ाई के बाद वह 18 वर्ष की उम्र में हरिद्वार जाकर स्वामी परमानंद महाराज के शिष्य बन गए। वर्ष 2014 में पैतृक गांव वापस आए। गांव के बाहर बने रामजानकी मंदिर में ठिकाना बना लिया। यहीं दो सौ वर्ष पुराना कलारन दाई तालाब है। आठ बीघे में फैला यह तालाब सिल्ट से अटा हुआ था। इसको नया जीवन की ठान उन्होंने फावड़ा उठा लिया।
वर्ष 2015 से खोदाई शुरू की। पांच साल में सात फीट गहरी खोदाई कर उन्होंने तीन हजार से ज्यादा ट्राली मिट्टी निकाली, जो मंदिर के पीछे जमा की ताकि जर्जर हो चुके मंदिर की दीवार सधी रहे। दो वर्ष पहले उनकी मेहनत के पसीने में बारिश की बूंदें मिलीं और तालाब कुछ हद तक भरा, जिससे किसानों ने सैकड़ों बीघा खेतों की सिंचाई की, पशु-पक्षियों को भी पानी मिला। हालांकि मौजूदा में यह तालाब सूखा होने से संत का प्रयास अभी भी जारी है। उनके अथक प्रयास को देखते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा व विधानपरिषद सदस्य दीपक सिंह ने उन्हें सम्मानित करने की सिफारिश भी की थी। इस वर्ष कृष्णानंद को गणतंत्र दिवस पर जिलाधिकारी की ओर से सम्मानित भी किया गया।