अफसरों ने डाला पंजीयन का घेरा, बचने के लिए छटपटा रहे व्यापारी Kanpur News
शहर में कारोबार व व्यापारियों के साथ ही अधिकारियों की कार्यशैली को सामने लाती खबर।
कानपुर, जेएनएन। व्यापारी भी टैक्स से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं, लेकिन अधिकारी भी उन पर शिकंजा कसने से नहीं चूकते। पेश है शहर में हो रहे कारोबार को लेकर चल रही गतिविधियों को लेकर रियल जर्नलिज्म के कॉलम नाप तौल के जरिए राजीव सक्सेना की रिपोर्ट।
दोने गिनकर पंजीयन
वाणिज्य कर विभाग में इस समय ज्यादा से ज्यादा पंजीयन कराने का प्रयास चल रहा है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब मुख्यमंत्री ने खुद ही लक्ष्य तय कर दिया हो। समस्या यह है कि 40 लाख रुपये से नीचे के टर्न ओवर वाले कारोबारी पंजीयन से मुक्त हैं। वे पंजीयन के घेरे में आना नहीं चाहते और अधिकारी लक्ष्य पूरा करना चाहते हैं। इसी खींचतान में पिछले दिनों कुछ अधिकारी एक्सप्रेस रोड की चाट, पकौड़ी की दुकानों पर पहुंच गए। उन्हें पंजीयन के लिए प्रोत्साहित किया। लाभ भी गिनाए लेकिन, दुकानदारों ने साफ कह दिया कि इतना बिजनेस ही कहां है कि पंजीयन कराएं। ठेलिया वालों के जवाब अफसरों को पसंद नहीं आए और उनको चेतावनी देकर चले गए कि किसी दिन भी दोने गिन लेंगे तब पता चलेगा कि पंजीयन करा सकते हो या नहीं। अब दोने गिने जाने के डर से ठेलिया वाले दहशत में आ गए हैं।
सिंदूर के नाम पर खेल
सिंदूर यूं तो मांग भरने के काम आता है लेकिन, बाजार में सिंदूर के नाम पर खूब खेल भी होते हैं। खासतौर पर होली के मौके पर यह खेल रंग के बाजार में तेजी से हो रहे हैं। सिंदूर का चूंकि धार्मिक महत्व है इसलिए इस पर टैक्स नहीं है लेकिन, रंग और गुलाल पर टैक्स की व्यवस्था की गई है। कानपुर रंग के कारोबार का गढ़ है। उसमें भी अबीर व गुलाल तो यहां से कई राज्यों में जाता है। अब जब उनकी बिक्री होती है तो उस पर टैक्स भी देना चाहिए लेकिन, जब एक नाम बदलने से काम चल जाए तो कैसा टैक्स और कैसा राजस्व। इसी लाइन पर चलते हुए रंग के तमाम कारोबारी रंग और गुलाल को सिंदूर के नाम पर बिल बनाकर बेच रहे हैं। चूंकि मामला त्योहार से जुड़ा हुआ है इसलिए अधिकारी भी इस पर कार्रवाई करने से बच रहे हैं।
बैठक में ही भीड़ नहीं
कानपुर उद्योग व्यापार मंडल के पदाधिकारी काफी समय से वाणिच्य कर विभाग की बैठकों में शामिल नहीं हो रहे थे। ज्यादातर बैठकों में व्यापार मंडल के अध्यक्ष ही नजर आते रहे। व्यापार मंडल की सरकारी बैठकों में खराब उपस्थिति को देख अध्यक्ष ने सोमवार को बैठक बुलाई। इसका विषय रखा गया कि सरकारी बैठकों में मंडल के ज्यादा से ज्यादा सदस्य पहुंचे। एक अच्छी सोच के साथ बुलाई गई इस बैठक में ही 350 पदाधिकारियों में से मात्र 12 लोग पहुंचे। यहां तक, खुद महामंत्री भी बैठक के अंत में पहुंचे और आते ही बोले कि वह तो अपने एक लाख रुपये लेने आए हैं। इसके बाद पूरी बैठक एक लाख रुपये जुटाने की जुगत में गुजर गई। बैठक को कितनी गंभीरता से लिया गया, यह इस बात से जाहिर हो गया जब अगले दिन मंगलवार को व्यापार बंधु की बैठक में न तो अध्यक्ष पहुंचे, न ही महामंत्री।
चट्टे वालों की चकरघिन्नी
कारोबारियों से पार पाना आसान नहीं होता। वह भी तब जब वे अपने आप को बचाने के लिए कोई चाल चल रहे हों। कुछ ऐसी ही चाल पिछले दिनों चट्टे के व्यापार से जुड़े कारोबारियों ने चली। बिनगवां में भूखंड पाने वालों की संख्या तो दो सौ से भी कम है। इनके अलावा शहर में एक हजार चट्टे और भी हैं। नगर निगम अधिकारी उन्हें शहर से बाहर करने की जुगत लगा रहे थे। इसी बीच एक बड़े अधिकारी की बैठक में चट्टे वालों ने शहर के बाहर जमीन देने की बात रख दी। उन्होंने कहा कि भूखंड दिए जाएं तो वे चट्टा शहर से बाहर कर लेंगे। चट्टे वालों को मालूम था कि एक हजार भूखंड देना आसान नहीं है और इसमें लंबा समय लगेगा। अधिकारी ने तो हां कर दी लेकिन, अब नगर निगम अधिकारियों को समझ नहीं आ रहा कि इन चïट्टे वालों को कैसे बाहर करें।