प्रयागराज के बाद प्रदेश का दूसरा स्टेशन होगा कानपुर, सवा पांच करोड़ से बन रहा प्लांट Kanpur News
न्यू वाशिंग काम्पलेक्स में व्हील बैलेंस के लिए बना रहा पिट व्हील लेथ प्लांट सवा पांच करोड़ की लागत से दो महीने में हो जाएगा तैयार।
By Edited By: Published: Mon, 17 Jun 2019 01:22 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jun 2019 09:56 AM (IST)
कानपुर,जेएनएन। हाई क्लास ट्रेनों को बोगी फ्रेम देने वाला कानपुर अब रेल पहियों को भी बैलेंस देगा। व्हील बैलेंस के नाम पर कोच तीन-चार दिन बेकार नहीं खड़े होंगे। मरम्मत में देरी होने पर नए पहिये खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब महज तीन घंटे में रेल पहियों बैलेंसिंग हो जाएगी। इसके लिए न्यू वाशिंग काम्प्लेक्स में पिट व्हील लेथ प्लांट का निर्माण शुरू हो गया है। सवा पांच करोड़ रुपये की लागत का यह प्लांट दो महीने में तैयार हो जाएगा।
प्रयागराज के बाद कानपुर प्रदेश का दूसरा स्टेशन होगा, जहां यह प्लांट होगा। सफर के दौरान घर्षण से पटरी और पहिया दोनों क्षतिग्रस्त होते हैं। औसतन एक लाख किमी चलने के बाद रेल चक्का बैलेंस खो देता है। कोच में लगे आठ आठ पहियों में से एक भी व्हील का बैलेंस बिगड़ने पर कोच को रैक से अलग कर दिया जाता है। सिकलाइन में कोच के बोगी फ्रेम से व्हील सेट अलग कर टर्निग यानी बैलेंसिंग के लिए भेज दिया जाता है। अभी टर्निग का काम केवल कानपुर जीएमसी, गोरखपुर और लखनऊ में ही होता है। ऐसे में व्हील बैलेंसिंग प्रक्रिया में तीन-चार दिन लग जाते हैं। काम अधिक हुआ तो अजमेर और जगादी से नए पहिये मंगाने में बजट खर्च करना पड़ता है।
वहीं, न्यू वाशिंग काम्पलेक्स में निर्माणाधीन पिट व्हील लेथ प्लांट आटोमेटिक मशीनों से युक्त होगा। ऐसे में कोच से व्हील सेट निकाले बिना ही पहियों को बैलेंस किया जा सकेगा। इसमें महज तीन घंटे लगेंगे। 30 दिन में बस 15 कोच की रिपेय¨रग कानपुर में श्रमश्रक्ति एक्सप्रेस, रिवर्स शताब्दी, कानपुर-बांद्रा, कानपुर-अमृतसर, और कानपुर-बलसाड ट्रेनें ही मेंटीनेंस के लिए आती हैं। संसाधनों की कमी के कारण महीने में 15 कोच के व्हील सेट ही काटकर बैलेंसिंग के लिए भेज जाते हैं।
बढ़ सकती हैं कानपुर से ट्रेनें
वाशिंग और बैलेंसिंग प्लांट न होने से कानपुर को नई ट्रेनें नहीं मिल रही हैं। तीसरी और चौथी वाशिंग लाइन और पिट व्हील लेथ प्लांट बनने से नई ट्रेनें मिलने की आशा जगी है। इससे रेलवे की आय भी बढ़ेगी क्योंकि व्हील सेट नहीं काटने के कारण कोच तीन-चार दिन तक बेकार नहीं खड़े होंगे। इन कोचों का इस्तेमाल नई ट्रेनों में किया जाए सकेगा।
-कानपुर का पिट व्हील लेथ प्लांट दो महीने में बनकर तैयार हो जाएगा। नई वाशिंग लाइन और प्लांट बनने पर कानपुर को नई ट्रेनें मिलने की संभावना है। -अजीत कुमार सिंह, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी उत्तर मध्य रेलवे
प्रयागराज के बाद कानपुर प्रदेश का दूसरा स्टेशन होगा, जहां यह प्लांट होगा। सफर के दौरान घर्षण से पटरी और पहिया दोनों क्षतिग्रस्त होते हैं। औसतन एक लाख किमी चलने के बाद रेल चक्का बैलेंस खो देता है। कोच में लगे आठ आठ पहियों में से एक भी व्हील का बैलेंस बिगड़ने पर कोच को रैक से अलग कर दिया जाता है। सिकलाइन में कोच के बोगी फ्रेम से व्हील सेट अलग कर टर्निग यानी बैलेंसिंग के लिए भेज दिया जाता है। अभी टर्निग का काम केवल कानपुर जीएमसी, गोरखपुर और लखनऊ में ही होता है। ऐसे में व्हील बैलेंसिंग प्रक्रिया में तीन-चार दिन लग जाते हैं। काम अधिक हुआ तो अजमेर और जगादी से नए पहिये मंगाने में बजट खर्च करना पड़ता है।
वहीं, न्यू वाशिंग काम्पलेक्स में निर्माणाधीन पिट व्हील लेथ प्लांट आटोमेटिक मशीनों से युक्त होगा। ऐसे में कोच से व्हील सेट निकाले बिना ही पहियों को बैलेंस किया जा सकेगा। इसमें महज तीन घंटे लगेंगे। 30 दिन में बस 15 कोच की रिपेय¨रग कानपुर में श्रमश्रक्ति एक्सप्रेस, रिवर्स शताब्दी, कानपुर-बांद्रा, कानपुर-अमृतसर, और कानपुर-बलसाड ट्रेनें ही मेंटीनेंस के लिए आती हैं। संसाधनों की कमी के कारण महीने में 15 कोच के व्हील सेट ही काटकर बैलेंसिंग के लिए भेज जाते हैं।
बढ़ सकती हैं कानपुर से ट्रेनें
वाशिंग और बैलेंसिंग प्लांट न होने से कानपुर को नई ट्रेनें नहीं मिल रही हैं। तीसरी और चौथी वाशिंग लाइन और पिट व्हील लेथ प्लांट बनने से नई ट्रेनें मिलने की आशा जगी है। इससे रेलवे की आय भी बढ़ेगी क्योंकि व्हील सेट नहीं काटने के कारण कोच तीन-चार दिन तक बेकार नहीं खड़े होंगे। इन कोचों का इस्तेमाल नई ट्रेनों में किया जाए सकेगा।
-कानपुर का पिट व्हील लेथ प्लांट दो महीने में बनकर तैयार हो जाएगा। नई वाशिंग लाइन और प्लांट बनने पर कानपुर को नई ट्रेनें मिलने की संभावना है। -अजीत कुमार सिंह, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी उत्तर मध्य रेलवे
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