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शरई अदालत में नहीं आ रहे तीन तलाक मामले, अब महिलाएं ले रहीं 'खुला' Kanpur News

तीन तलाक कानून के बाद शहर में घरेलू हिंसा का एक भी मामला नहीं आया है।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 10:14 AM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 10:14 AM (IST)
शरई अदालत में नहीं आ रहे तीन तलाक मामले, अब महिलाएं ले रहीं 'खुला' Kanpur News
शरई अदालत में नहीं आ रहे तीन तलाक मामले, अब महिलाएं ले रहीं 'खुला' Kanpur News

कानपुर, [मोहम्मद दाऊद खान]। तलाक तलाक तलाक..., मुस्लिम महिलाओं के लिए पीड़ा का सबब रहे ये तीन शब्द कानून के जरिये बंदिश में लाए गए तो उनकी जिंदगी बदल गई। साढ़े तीन साल में तीन तलाक के 41 मामले सुनने वाली प्रदेश की पहली महिला शरई अदालत के सामने कानून बनने के बाद महज चार मामले आए हैं। यही नहीं, बीते वर्षों में सालाना 50 से अधिक घरेलू ङ्क्षहसा के मामलों की तुलना में बीते सात माह में एक भी मामला नहीं आया। अब महिलाएं भी खुला (महिलाओं को तीन तलाक लेने का अधिकार) ले रही हैं। 18 सालों में जिस मोहकमा शरिया दारुल कजा के पास खुला के महज 20 मामले आए थे, कानून बनने के बाद वह आठ मामलों में सुनवाई कर रही है।

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शहर में प्रदेश की पहली शरई अदालत

कानपुर में प्रदेश ही पहली महिला शरई अदालत आल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन बोर्ड की सरपरस्ती में फरवरी 2016 में खुली थी। चार सालों में यहां 400 से अधिक मामले आए, जिसमें तीन तलाक की संख्या 45 रही। बाकी मामले तरका (पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार), घरेलू ङ्क्षहसा, बंटवारे आदि के रहे। बीते वर्ष अगस्त माह में केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाते हुए तीन साल की सजा का प्रावधान किया था। कानून का असर रहा कि न केवल तीन तलाक के मामले घटे बल्कि महिला उत्पीडऩ भी आश्चर्यजनक तरीके से बंद हो गया। इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि बीते सात माह में महिला अदालत में एक भी मामला घरेलू ङ्क्षहसा का नहीं आया।

मोहकमा ए शरिया दारुल कजा में सिर्फ चार मामले

यही हाल रजबी रोड स्थित मोहकमा ए शरिया दारुल कजा (सभी के लिए शरई अदालत) का है। यहां भी कानून बनने के बाद तीन तलाक के केवल चार मामले आए। आल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल के महामंत्री हाजी सलीस का कहना है कि दूसरे खलीफा ने एक साथ तीन तलाक देने वाले पुरुष को 80 कोड़े मारने की सजा मुकर्रर की थी। यह सजा पूरी होने के बाद ही तलाक प्रभावी माना जाता था। भारत इस्लामिक स्टेट नहीं बल्कि जनतांत्रिक देश है। ऐसे में केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाकर बेहद बेहतरीन फैसला किया है। तीन साल की सजा के प्रावधान ने भी इस कानून को कारगर बना दिया।

इनका कहना है

शरई अदालत का मकसद तलाक कराना नहीं बल्कि शादी बचाना है। दोनों पक्षों की काउंसलिंग कर 80 फीसद शादियां बचाई गई हैं। कानून से भी तीन तलाक की प्रवृत्ति घटी है। घरेलू हिंसा काएक भी मामला नहीं आया। -डा. हिना जहीर एवं मारिया फजल शहर काजी, महिला शरई अदालत

शरई अदालत में तलाक के मामले घटे हैं। लोगों को जागरूक किया जा रहा है। ज्यादातर मामले समझौते से सुलझ रहे हैं। -मौलाना इनामुल्लाह कासमी, काजी, मोहकमा शरिया दारुल कजा


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