जीएसवीएम मेडिकल कालेज के एसएनसीयू में अब मोबाइल से बच्चों की मानीटरिंग
विभागाध्यक्ष को 24 घंटे मिलती रहती है सूचना, आडियो और विजुअल के जरिये देते हैं इलाज संबंधी दिशा निर्देश।
By AbhishekEdited By: Published: Sat, 24 Nov 2018 03:11 PM (IST)Updated: Sat, 24 Nov 2018 05:00 PM (IST)
कानपुर (जागरण स्पेशल)। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में नवजात एवं बच्चों के इलाज एवं निगरानी के अब अत्याधुनिक इंतजाम हो गए हैं। यहां बच्चों की निगरानी सीसीटीवी कैमरों के जरिए मोबाइल से हो रही है। घर अथवा देश-विदेश कहीं भी बैठे विभागाध्यक्ष को सिक एंड न्यूबार्न केयर यूनिट (एसएनसीयूू) की सूचना 24 घंटे मिलती रहती है। इलाज से संबंधित दिशा-निर्देश आडियो और विजुअल के जरिए देते हैं। लापरवाही पर जूनियर रेजीडेंट एवं नर्स को फटकार भी लगती है। इलाज की गुणवत्ता में सूबे के उच्च चिकित्सीय संस्थानों को यहां का एसएनसीयू चुनौती दे रहा है ।
कैमरों से लैस है एसएनसीयू
बाल रोग विभाग का एसएनसीयू क्लोज सर्किट टीवी कैमरों से लैस है। ये विभागाध्यक्ष के मोबाइल से जुड़े हैं। वह 24 घंटे एसएनसीयू के अंदर की गतिविधियों को मोबाइल पर देखते रहते हैं।
भांप लेते हैं जटिलता
विभागाध्यक्ष मोबाइल के जरिए एसएनसीयू की मानीटङ्क्षरग में वेंटीलेटर पर भर्ती बच्चों की स्थिति भांप लेते हैं। उनके इलाज के लिए जरूरी निर्देश देते रहते हैं। इससे एसएनसीयू के डेथ रेट में भी कमी आई है।
चंदे के पैसे से निगरानी सिस्टम
खासियत यह है कि एसएनसीयू का हाईटेक निगरानी सिस्टम बिना कॉलेज प्रशासन की मदद से लगा है। बाल रोग के विभागाध्यक्ष, फैकल्टी एवं जूनियर रेजीडेंट ने चंदा जुटा कर पैसों का इंतजाम किया है। इसमें लगभग तीन लाख रुपये आइटी कंपनी ने लगाया है।
आडियो -विजुअल निर्देश
एसएनसीयू में लगे कैमरों के जरिए ऑडियो-विजुअल निर्देश दिए जाते हैं। बच्चों के देखभाल में लापरवाही, माता-पिता के बार-बार आने-जाने अथवा जूनियर रेजीडेंट या स्टॉफ नर्स के अप्रेन नहीं पहनने पर मोबाइल के जरिए ही दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। देर तक मोबाइल पर बातचीत करने पर भी डांट पड़ती है।
ऐसे होती है मानीटरिंग
इलाज में लापरवाही या किसी के देर तक अंदर एक जगह बैठे रहने, बच्चे के पास देर तक मां के रुकने। बच्चे को छूने से पहले हाथ नहीं धोने। तीमारदारों से बाहर से दवाएं मंगाने पर उसकी रिकार्डिंग वाट्सएप पर भेजी जाती है। उसका कारण भी पूछा जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. यशवंत राव का कहना है कि एसएनसीयू का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण है। 25 बेड की क्षमता के एसएनसीयू में 70-80 बच्चे भर्ती रहते हैं। एक बेड पर तीन-चार बच्चों को भर्ती करना पड़ता है। इसलिए सख्त मानीटङ्क्षरग जरूरी है। इसका इंतजाम विभाग की फैकल्टी ने मिलकर किया है। कहीं बैठे मोबाइल से एसएनसीयू की गतिविधियों को देखते रहते हैं। इसलिए 24 घंटे जेआर और स्टाफ नर्स सतर्क रहते हैं। उनका पूरा सहयोग भी मिल रहा है।
कैमरों से लैस है एसएनसीयू
बाल रोग विभाग का एसएनसीयू क्लोज सर्किट टीवी कैमरों से लैस है। ये विभागाध्यक्ष के मोबाइल से जुड़े हैं। वह 24 घंटे एसएनसीयू के अंदर की गतिविधियों को मोबाइल पर देखते रहते हैं।
भांप लेते हैं जटिलता
विभागाध्यक्ष मोबाइल के जरिए एसएनसीयू की मानीटङ्क्षरग में वेंटीलेटर पर भर्ती बच्चों की स्थिति भांप लेते हैं। उनके इलाज के लिए जरूरी निर्देश देते रहते हैं। इससे एसएनसीयू के डेथ रेट में भी कमी आई है।
चंदे के पैसे से निगरानी सिस्टम
खासियत यह है कि एसएनसीयू का हाईटेक निगरानी सिस्टम बिना कॉलेज प्रशासन की मदद से लगा है। बाल रोग के विभागाध्यक्ष, फैकल्टी एवं जूनियर रेजीडेंट ने चंदा जुटा कर पैसों का इंतजाम किया है। इसमें लगभग तीन लाख रुपये आइटी कंपनी ने लगाया है।
आडियो -विजुअल निर्देश
एसएनसीयू में लगे कैमरों के जरिए ऑडियो-विजुअल निर्देश दिए जाते हैं। बच्चों के देखभाल में लापरवाही, माता-पिता के बार-बार आने-जाने अथवा जूनियर रेजीडेंट या स्टॉफ नर्स के अप्रेन नहीं पहनने पर मोबाइल के जरिए ही दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। देर तक मोबाइल पर बातचीत करने पर भी डांट पड़ती है।
ऐसे होती है मानीटरिंग
इलाज में लापरवाही या किसी के देर तक अंदर एक जगह बैठे रहने, बच्चे के पास देर तक मां के रुकने। बच्चे को छूने से पहले हाथ नहीं धोने। तीमारदारों से बाहर से दवाएं मंगाने पर उसकी रिकार्डिंग वाट्सएप पर भेजी जाती है। उसका कारण भी पूछा जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष प्रो. यशवंत राव का कहना है कि एसएनसीयू का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण है। 25 बेड की क्षमता के एसएनसीयू में 70-80 बच्चे भर्ती रहते हैं। एक बेड पर तीन-चार बच्चों को भर्ती करना पड़ता है। इसलिए सख्त मानीटङ्क्षरग जरूरी है। इसका इंतजाम विभाग की फैकल्टी ने मिलकर किया है। कहीं बैठे मोबाइल से एसएनसीयू की गतिविधियों को देखते रहते हैं। इसलिए 24 घंटे जेआर और स्टाफ नर्स सतर्क रहते हैं। उनका पूरा सहयोग भी मिल रहा है।
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