सीमा पर दुश्मनों की नजर से सैनिकों को ओझल रखेगा खास टेंट
नैनो मैटीरियल से बने टेंट वन, मरुस्थल और बर्फीले इलाकों में दुश्मनों को धोखा देगा। टैंक व जरूरी उपकरणों को भी आसानी से छिपाया जा सकेगा।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। सीमा पर हमारे सैनिक दुश्मन के करीब होंगे और कैंप में बैठकर सबक सिखाने की रणनीति बना रहे होंगे लेकिन उनकी नजरों से ओझल रहेंगे। खास कपड़े से बने टेंट में भारतीय सैनिक सीमा पर दुश्मनों को नजर नहीं आएंगे, इतना ही नहीं इस टेंट के अंदर टैंक व जरूरी उपकरणों को भी आसानी से छिपाया जा सकेगा। डिफेंस मैटीरियल्स एंड स्टोर्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेबिलिशमेंट (डीएमएसआरडीई) ऐसा कपड़ा बनाने पर अनुसंधान में जुटा है जो आसपास के माहौल का हिस्सा बनने की खासियत रखता है। यानि मरुस्थल, वन क्षेत्र हो या फिर बर्फीले इलाके, इस कपड़े से बने टेंट मैटीरियल कलर प्रिंटिंग के जरिए उसी जैसे ही नजर आएंगे।
टेंट के कपड़े पर होगी नैनो मैटीरियल के रंगों की कोडिंग
हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) में टेक्निकल एजुकेशन क्वालिटी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम (टेकक्यूप) में आए डीएमएसआरडीई के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर डॉ.टीसी शमी ने बताया कि कंडक्टिंग, मैग्नेटिक व नैनोटेक मैटीरियल का इस्तेमाल करके ये कपड़ा तैयार किया जा रहा है। इस खास कपड़े को बनाने के लिए उसमें नैनो मैटीरियल के रंगों की कोडिंग की जाएगी। कैंप बनाने के साथ इन कपड़ों का इस्तेमाल भारतीय सैनिक टैंक को दुश्मनों की निगाह से छिपाने के लिए भी कर सकेंगे। इस अनुसंधान के सकारात्मक परिणाम आ चुके हैं। परीक्षण अंतिम चरण में है।
कपड़े धोने की जरूरत नहीं होगी
सियाचिन व जम्मू-कश्मीर सीमा पर महीनों निगहबानी करने वाले सैनिकों के लिए बड़ी समस्या उनके कपड़ों की धुलाई होती है। हाड़कंपाऊ ठंड में कपड़े धुल नहीं पाते हैं। डीएमएसआरडीई ऐसे कपड़े बना रहा है जिसमें तेल, धूल व पानी का असर नहीं होगा। डीएमआरडीई के वैज्ञानिक डॉ.अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि पानी, तेल व किसी तरल पदार्थ से मिलकर धूल, कीचड़ की गंदगी कपड़ों में चिपकती हैं। पॉलीमर कंपोजिट मैटीरियल से बनने वाले इस कपड़े पर इनका असर नहीं होगा। इसका परीक्षण चल रहा है।
40 फैकल्टी को मिला प्रशिक्षण
एचबीटीयू के रसायन विज्ञान विभाग में हुए टेकक्यूप के फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में देशभर से आए बीटेक व एमटेक फैकल्टी को मैटीरियल सिंथेटिक, मैटीरियल कार्बनिक, पॉलीमर व क्रिस्टलाइन का दायरा मैन्यूफैक्चङ्क्षरग के क्षेत्र के बढऩे के बारे में जानकारी दी गई। बताया गया कि हल्के विमान, गाडिय़ां, टैंक व बड़े वाहन बनाने में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। 40 फैकल्टी ने इसमें भाग लिया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. सीएल गहलोत के अलावा, डॉ.दमयंती अग्रवाल, यूपीटीटीआइ के उप कुलसचिव डॉ.शिव गोविंद प्रसाद व डॉ. जितेंद्र भास्कर समेत अन्य शिक्षक मौजूद रहे।