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एचबीटीयू की खोजः अब आलू और अरबी से बनेगी पर्यावरण हितैषी पॉलीथिन

एचबीटीयू के फूड टेक्नालाजी विभाग ने आलू, अरबी और सिंघाड़े के स्टार्च से कृत्रिम पॉलीथिन बनाई है। इसका उपयोग खाने की पैकेजिंग में किया जा सकेगा।

By Edited By: Published: Wed, 03 Oct 2018 01:39 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 07:28 AM (IST)
एचबीटीयू की खोजः अब आलू और अरबी से बनेगी पर्यावरण हितैषी पॉलीथिन
एचबीटीयू की खोजः अब आलू और अरबी से बनेगी पर्यावरण हितैषी पॉलीथिन

कानपुर (जेएनएन )। हर सब्जी के साथ मिलकर खाने का स्वाद बढ़ाने वाला आलू अब पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने में मददगार बनेगा। एचबीटीयू के फूड टेक्नालाजी विभाग ने आलू, अरबी और सिंघाड़े के स्टार्च से कृत्रिम पॉलीथिन बनाई है। इसका उपयोग खाने की पैकेजिंग में किया जा सकेगा। निर्माण के बाद प्रयोगशाला में शुरू हुए ट्रायल में सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। खास बात ये है कि यह कृत्रिम पॉलीथिन दो से तीन महीने में स्वत: नष्ट हो जाएगी।

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आलू, सिंघाड़ा और अरबी से पॉलीथिन बनाने का यह शोध एचबीटीयू के फूड टेक्नोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विवेक कुमार और उनकी टीम ने किया है। शोध के दौरान पहले खराब सिंघाड़े, आलू और अरबी से स्टार्च निकाला गया। उनके गुणों के आधार पर ग्लिसरॉल मिलाया। यह मिश्रण पॉलीथिन के गुणों को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसे पतली सी ट्रे में 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान में 36 से 40 घटे के लिए रख दिया। ऐसा करने से पतली फिल्म तैयार हो जाती है।

पॉलीथिन जिस वस्तु के लिए इस्तेमाल की जानी है उसी के अनुसार केमिकल मिलाए जाते हैं। सिंघाड़े में सबसे ज्यादा स्टार्च के मामले में अव्वल सिंघाड़ा है। एक किलो सिंघाड़े में तकरीबन डेढ़ सौ ग्राम स्टार्च निकलता है। आलू में 130 ग्राम और अरबी में 100 ग्राम स्टार्च होता है।

ये हैं महत्वपूर्ण तथ्य
- आलू के स्टार्च से तैयार पॉलीथिन फिल्म सबसे ज्यादा ट्रासपेरेंट होती है। उसके बाद अरबी और फिर सिंघाड़े का नंबर आता है।
- जलवाष्प की बूंदों को रोकने में आलू की पॉलीथिन आगे है फिर सिंघाड़ा और अरबी का नंबर आता है।
- गर्म वस्तुओं के लिए सबसे बेहतर अरबी के स्टार्च से बनी पॉलीथिन है। आलू और सिंघाड़ा का क्रमश: दूसरा और तीसरा नंबर है।

ऐसेडिक फूड पर चल रहा काम
विशेषज्ञों के मुताबिक अभी ऐसेडिक फूड जैसे जूस, केमिकल और अत्यधिक गर्म व भारी वस्तुओं पर काम चल रहा है फिलहाल जो पॉलीथिन तैयार है उसमें दूध रखा जा सकेगा, जबकि दही नहीं रख पाएंगे।

आइआइटी गुवाहटी कर रहा मदद
एचबीटीयू के विशेषज्ञ आइआइटी गुवाहाटी के विशेषज्ञों संग बायो डिग्रेडेबल पॉलिथिन पर काम करेंगे। इसके लिए वहा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया गया है। वहा के विशेषज्ञ एचबीटीयू के शोध को देख चुके हैं।
 

-आलू, सिंघाड़े और अरबी के स्टार्च से बनी पॉलीथिन पर अभी और काम चल रहा है। उसकी गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास जारी है। इससे किसानों को काफी लाभ मिलेगा। -विवेक कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, फूड टेक्नोलॉजी, एचबीटीयू


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