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कारखानों की जमीन पर बदहाली का बबूल

जागरण संवाददाता, कानपुर : तोहमतें थीं, आरोप थे कि बीते डेढ़ दशक में सपा-बसपा की सरकार

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Mar 2018 11:58 AM (IST)Updated: Thu, 15 Mar 2018 11:58 AM (IST)
कारखानों की जमीन पर बदहाली का बबूल
कारखानों की जमीन पर बदहाली का बबूल

जागरण संवाददाता, कानपुर : तोहमतें थीं, आरोप थे कि बीते डेढ़ दशक में सपा-बसपा की सरकारों ने औद्योगिक विकास पर ध्यान ही नहीं दिया। बहरहाल, एक साल पहले सूबे में प्रचंड बहुमत से कमल खिलने के बाद सबसे ज्यादा बांछें कानपुर की ही खिलीं। वजह कि यह औद्योगिक नगरी है और सरकार ने औद्योगिक विकास मंत्री भी यहीं की महाराजपुर विधानसभा सीट से जीते सतीश महाना को बना दिया। इस एक साल में प्रदेश में उद्योगों को कितनी ऑक्सीजन मिली, यह हिसाब-किताब वृहद स्तर पर होगा। फिलहाल मंत्री के ही आंगन यानी विधानसभा क्षेत्र में स्थित उस औद्योगिक क्षेत्र चकेरी में परखते हैं, जिसे वह न जाने कितने वर्षो से बतौर विधायक देखते-समझते रहे हैं और वादों की फीकी घुट्टी देते रहे हैं। जनता अब खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। आइये, हम दिखाते हैं आपको कि यहां विकास के नाम पर अब तक हुआ क्या है।

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विकास की राह में टूटी सड़कें

महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र में स्थित इस औद्योगिक क्षेत्र में कोई विकास नहीं हुआ है। कुछ सड़कों पर बबूल के पेड़ उग आए हैं। चकेरी औद्योगिक क्षेत्र को चकेरी-पाली मार्ग से जोड़ने वाली सड़क टूटी हुई है। अंदर की सड़कों की हालत तो बहुत ही खराब है। स्थापना के समय ही यहां जो विकास हुआ था, उसके बाद कोई भी कार्य नहीं हुआ है।

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प्लाटों में भर रहा कारखानों का पानी

यहां बमुश्किल 35 इकाइयां स्थापित हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला पानी और सीवर आसपास ही प्लाटों में भर रहा है, क्योंकि लाइनें ध्वस्त हैं। इससे भूगर्भ जल भी दूषित हो रहा है। एक भी नाली ऐसी नहीं है, जो टूटी न हो और उसकी ईटें बिखरी न हों। अगर उद्यमी उद्योग लगाना भी चाहें तो सड़क सीवर और पानी की समस्या देखकर बिदक जाना तय है।

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बिजली के खंभे हैं पर लाइट और तार नहीं

बिजली के खंभे तो लगे हुए हैं, लेकिन इन पर स्ट्रीट लाइटें नहीं लगी हैं। पूरा औद्योगिक क्षेत्र अंधेरे में है। बिजली के पोल पर तार तक नहीं लगे हैं। ऐसे में उद्यमी अगर इकाई स्थापित भी करते हैं तो उनके लिए बड़ी समस्या है बिजली की। यूपीएसआइडीसी प्रबंधन उद्यमियों पर उद्योग लगाने को दबाव तो बना रहा है, पर तार खींचने और लाइटें लगाने की जहमत नहीं उठा रहा। यहां उद्योगों की जगह झाड़ियां लहलहा रही हैं। पिछले साल लोगों ने मिट्टी का खनन भी कर लिया। यहां कुछ हिस्से में ही बिजली है।

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सुरक्षा के नहीं हैं कोई इंतजाम

क्षेत्र में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं। यही वजह है कि यहां ईटें तक चोरी हो जाती हैं। पूरे दिन यहां जानवर घूमते रहते हैं। उद्यमी अगर उद्योग लगाएं भी तो उन्हें चोरी का डर हरदम बना रहेगा। जिन्होंने इकाई स्थापित कर रखी है, वे भी निजी सुरक्षा गार्डो के भरोसे हैं।

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पेयजल का संकट

यहां पानी का जबरदस्त संकट है। एक पानी की टंकी स्थापित है, लेकिन आज तक उसकी टेस्टिंग भी नहीं हुई है। यहां पर नलकूप चलाने को मोटर तक नहीं लगाई है। ऐसे में जब उद्यमी इकाई स्थापित करते हैं तो उन्हें सबमसिर्बल लगाना पड़ता है।

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भूमि अधिग्रहण भी नहीं हो पाया

इस औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के लिए वैसे तो 260 एकड़ भूमि अधिग्रहीत होनी थी, लेकिन 124.28 एकड़ भूमि अधिग्रहीत हो पाई। किसानों से मुआवजे की रार के कारण भूमि नहीं मिली। जो भूमि मिली भी उसका पूर्ण रूप से विकास ही नहीं हो सका। अगर मूलभूत सुविधाएं विकसित होतीं तो निश्चित रूप से यहां उद्योग लगता और लोगों को रोजगार मिलता।

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उद्यमियों की नजर में मंत्री का परफार्मेस

पीआइए के प्रांतीय अध्यक्ष मनोज बंका का कहना है कि औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना से बड़ी अपेक्षा थी, क्योंकि वह कानपुर के हैं, लेकिन अपेक्षा पूरी नहीं हुई। मेगा रोड शो में बातें तो खूब हुई पर बाद में उन्होंने कभी उद्यमियों का दर्द जानने की कोशिश नहीं की।

आइआइए के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील वैश्य का कहना है कि विकास की कमान संभालने वाले जनप्रतिनिधि को यह समझना चाहिए कि सिर्फ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने से उद्योग नहीं लगेगा। उद्यमियों का दर्द समझना होगा और समस्या का समाधान भी करना होगा। कानपुर के छोटे उद्योग बचेंगे, तभी बड़े उद्योग यहां लगेंगे।

फीटा के महामंत्री उमंग अग्रवाल का कहना है कि औद्योगिक विकास मंत्री उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। पनकी, रूमा, चकेरी औद्योगिक क्षेत्र में यदि मूलभूत सुविधाएं नहीं दे सके। चकेरी औद्योगिक क्षेत्र की बदहाली देखकर लगता ही नहीं कि यह उनकी विधानसभा में आता है।


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