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यहां अधसोई आंखों के जिम्मे है सुरक्षित सफर

जागरण संवाददाता, कानपुर : रात के सफर में हजारों जिंदगियां अधसोई आंखों के हवाले हैं। ये हालात

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 02:10 AM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 03:03 AM (IST)
यहां अधसोई आंखों के जिम्मे है सुरक्षित सफर
यहां अधसोई आंखों के जिम्मे है सुरक्षित सफर

जागरण संवाददाता, कानपुर : रात के सफर में हजारों जिंदगियां अधसोई आंखों के हवाले हैं। ये हालात परिवहन विभाग की लापरवाही के चलते हैं और हादसों के बाद भी जिम्मेदार चेत नहीं रहे हैं। जब सोमवार को पारा 43 पार होने के बाद आसमान से बरस रही आग धरती को झुलसा रही थी, तब झकरकटी बस अड्डे पर चालक और परिचालक अपनी बसों के नीचे किसी तरह सोने की मशक्कत कर रहे थे पर इतनी तपिश में भला नींद कैसे आ सकती है, ऐसे में बैठकर दोपहर काटने को मजबूर थे। सैकड़ों किमी बस चलाकर आने वाले इन चालक-परिचालकों के लिए अपनी नींद पूरी करने के लिए विश्रामालय तक नहीं है।

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उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम को न तो अपने कर्मचारियों की परवाह है और न ही यात्रियों की। झकरकटी बस अड्डे पर चालक, परिचालक के विश्राम करने की जगह तक नहीं है। वे चिलचिलाती धूप से बचने के लिए बस के नीचे बैठे रहते हैं लेकिन गर्मी व तपिश उनका इम्तिहान लेती रहती है। रातभर बस चलाते हैं और दिन में भी नींद पूरी न होने से उनकी आंखें लाल पड़ जाती हैं। इसी बस अड्डे पर एक मंदिर है जिसके तपते चबूतरे पर बैठकर परिचालक समय काटते हैं।

1000 किमी तक चलाते बस

बलिया, गोरखपुर, देवरिया, बेल्थरा रोड, सोनौली, अकबरपुर, आजमगढ़ व दिल्ली समेत दर्जनों ऐसे शहर हैं, जहां की बसें रातभर चलकर दोपहर तक झकरकटी बस अड्डे आती रहती हैं और ये बसें रात में फिर वापस होती हैं। ऐसे में दो रात जागकर बस चलाने वाले चालक से कभी भी चूक हो सकती है। इसी वजह से पिछले दिनों इटावा में आजाद नगर डिपो की बस पुल के नीचे गिर गई थी क्योंकि चालक की नींद पूरी न होने से उसे झपकी आ गई। इस हादसे में दो लोगों की जान जाने के बाद भी जिम्मेदार बेफिक्र हैं।

18 वर्षो से झेल रहे मुसीबत

वर्ष 2000 में घंटाघर से झकरकटी बस अड्डा लाया गया था लेकिन 18 वर्ष बाद भी इस अड्डे की ओर परिवहन ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसका खामियाजा बसों के चालक व परिचालक भुगत रहे हैं।

अधूरे विश्रामालय में ताला

झकरकटी बस अड्डे पर पिछले माह एक कंपनी ने विश्रामालय बनाकर दान दिया है लेकिन ये विश्रामालय आधा अधूरा है और कक्ष के अंदर पंखा, बिजली कुछ भी नहीं है। कमरे में हमेशा ताला लगा रहता है।

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पीपीपी मॉडल के तहत इस बस अड्डे का विकास होना है, बहुमंजिली इमारत बना उसमें यात्रियों व चालक, परिचालकों का विश्रामालय भी बनाने का प्रस्ताव है लेकिन अभी इसे मंजूरी नहीं मिली है।

राजीव कटियार, सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक झकरकटी बस अड्डा


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