फैक्ट्रियों के दूषित पानी को ट्रीट करेगा नैनो फाइबर फिल्टर
दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकेगा शोधित पानी विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग को भेजा जाएगा प्रस्ताव।
By Edited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 01:49 AM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 03:59 PM (IST)
कानपुर [विक्सन सिक्रोड़िया]। उत्तर प्रदेश वस्त्र प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआइ) ने दूषित पानी को ट्रीट करने का सस्ता तरीका तलाश लिया है। आने वाले समय में फैक्ट्रियों से निकलने वाले दूषित पानी (उत्प्रवाह) को नैनो फाइबर फिल्टर से ट्रीट कर उसे इस्तेमाल करने योग्य बनाया जा सकेगा। संस्थान की नवनिर्मित 'वीविंग प्रयोगशाला' के अंतर्गत नैनो नॉन वूवेन लैब में इस पर किए गए शोध का पहला परीक्षण सफल रहा है। परीक्षण के दौरान दूषित जल में पाए जाने वाले हैवी मेटल जैसे क्रोमियम, आर्सेनिक व लेड को 74 फीसद तक पानी से अलग किया गया।
यह सभी हानिकारक तत्व लेदर फैक्ट्री, डाइंग फैक्ट्री, केमिकल फैक्ट्री, क्रोम प्लेटिंग फैक्ट्री व पेंट फैक्ट्री में उत्पाद निर्माण प्रक्रिया के दौरान निकलते हैं। यूपीटीटीआइ के टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर व वरिष्ठ छात्रों की टीम ऐसे फिल्टर को तैयार कर रही है जिसे फैक्ट्रियों के 'एक्यूएंट ट्रीटमेंट प्लांट' में लगाया जाएगा। असिस्टेंट प्रोफेसर जेपी सिंह ने बताया कि वह जिस नैनो फाइबर फिल्टर पर शोध कर रहे हैं वह रिसाइकल फाइबर से बना है। नॉन वूवेन फैब्रिक में नैनो फाइबर कोटिंग करके इसे बनाया गया है। जिसके परिणाम सकारात्मक आए हैं। सौ फीसद पानी शुद्ध करने के लिए अनुसंधान चल रहा है।
प्रो. सिंह ने बताया कि इसे पॉलिस्टर के फाइबर से बनाया जा रहा है। फ्रेश पॉलिस्टर फाइबर की कीमत अधिक होती है, जबकि रिसाइकल फाइबर इससे सस्ता होता है। यह फ्रेश फाइबर से 35 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम तक सस्ता होता है। फ्रेश पॉलिस्टर फाइबर की कीमत 130 से 140 रुपये प्रति किलोग्राम होती है। बताया कि प्रदेश सरकार के विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग को अनुदान के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।
दूषित अवशेषों को रोक लेंगे नैनो छिद्र
नैनो फाइबर फिल्टर को ऐसे सिंथेटिक रेशों के ताने-बाने से तैयार किया जा रहा है जो पानी से आर्सेनिक, क्रोमियम व लेड जैसी भारी धातुओं को अलग करने के साथ उसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने में मददगार साबित हो सकता है। यह दूषित अवशेषों को आगे जाने से रोक लेगा। किसी झिल्ली की तरह दिखने वाले इस छिद्रयुक्त फिल्टर का उपयोग फैक्ट्रियों के साथ घर में भी पानी शुद्ध करने में किया जा सकेगा। क्रोमियम व आर्सेनिक से रहता है कैंसर का खतरा
दूषित जल पर शोध कार्य करने वाले छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी संस्थान के निदेशक डॉ. शास्वत कटियार ने बताया कि क्रोमियम व आर्सेनिक जैसे तत्व कैंसर के कारक होते हैं। पानी में घुलकर यह उसे दूषित बनाते हैं। अगर पीने के लिए ऐसे पानी का इस्तेमाल लगातार किया जा रहा है तो यह शरीर को प्रभावित कर सकता है।
यह सभी हानिकारक तत्व लेदर फैक्ट्री, डाइंग फैक्ट्री, केमिकल फैक्ट्री, क्रोम प्लेटिंग फैक्ट्री व पेंट फैक्ट्री में उत्पाद निर्माण प्रक्रिया के दौरान निकलते हैं। यूपीटीटीआइ के टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर व वरिष्ठ छात्रों की टीम ऐसे फिल्टर को तैयार कर रही है जिसे फैक्ट्रियों के 'एक्यूएंट ट्रीटमेंट प्लांट' में लगाया जाएगा। असिस्टेंट प्रोफेसर जेपी सिंह ने बताया कि वह जिस नैनो फाइबर फिल्टर पर शोध कर रहे हैं वह रिसाइकल फाइबर से बना है। नॉन वूवेन फैब्रिक में नैनो फाइबर कोटिंग करके इसे बनाया गया है। जिसके परिणाम सकारात्मक आए हैं। सौ फीसद पानी शुद्ध करने के लिए अनुसंधान चल रहा है।
प्रो. सिंह ने बताया कि इसे पॉलिस्टर के फाइबर से बनाया जा रहा है। फ्रेश पॉलिस्टर फाइबर की कीमत अधिक होती है, जबकि रिसाइकल फाइबर इससे सस्ता होता है। यह फ्रेश फाइबर से 35 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम तक सस्ता होता है। फ्रेश पॉलिस्टर फाइबर की कीमत 130 से 140 रुपये प्रति किलोग्राम होती है। बताया कि प्रदेश सरकार के विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग को अनुदान के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।
दूषित अवशेषों को रोक लेंगे नैनो छिद्र
नैनो फाइबर फिल्टर को ऐसे सिंथेटिक रेशों के ताने-बाने से तैयार किया जा रहा है जो पानी से आर्सेनिक, क्रोमियम व लेड जैसी भारी धातुओं को अलग करने के साथ उसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने में मददगार साबित हो सकता है। यह दूषित अवशेषों को आगे जाने से रोक लेगा। किसी झिल्ली की तरह दिखने वाले इस छिद्रयुक्त फिल्टर का उपयोग फैक्ट्रियों के साथ घर में भी पानी शुद्ध करने में किया जा सकेगा। क्रोमियम व आर्सेनिक से रहता है कैंसर का खतरा
दूषित जल पर शोध कार्य करने वाले छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के बायोसाइंस एंड बायोटेक्नोलॉजी संस्थान के निदेशक डॉ. शास्वत कटियार ने बताया कि क्रोमियम व आर्सेनिक जैसे तत्व कैंसर के कारक होते हैं। पानी में घुलकर यह उसे दूषित बनाते हैं। अगर पीने के लिए ऐसे पानी का इस्तेमाल लगातार किया जा रहा है तो यह शरीर को प्रभावित कर सकता है।
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