स्वस्थ है सोच, सुधारेंगे नासाज हाल
जागरण के माय सिटी माय प्राइड अभियान से जुड़े शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक और सेवाभावी जन
जेएनएन, कानपुर : 'गरीबों को सस्ता और सुलभ इलाज मिले, सरकारें इस व्यवस्था को मजबूत करने का दावा करती हैं, उसी हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाओं का ताना-बाना भी बुना गया है। मगर, इस पर अमल कितना हो रहा है, यह सोचने की बात है। अस्पतालों के हाल देखें और अन्य इंतजाम, यह सोच साकार होती नहीं दिखती। सभी को पता है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में यह बीमारी है, लेकिन सवाल है कि इसका इलाज करे कौन? जाहिर सी बात है कि सिर्फ सरकार की ओर टकटकी लगाए रहने से कुछ नहीं होगा। इस व्यवस्था से सीधे-सीधे जुड़े चिकित्सक ही सुझावों की वह पुड़िया दे सकते हैं, जिससे इंतजामों की सेहत सुधरे। इसी सोच के साथ 'दैनिक जागरण' ने शनिवार को राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इसमें शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक, इस क्षेत्र में सकारात्मक सहयोग दे रहे रीयल हीरो और सेवाभावी जन सम्मिलित हुए। इस दौरान मुश्किलों की टीस जरूर उठी, लेकिन उससे ऊपर सुकून की ठंडी सांस इसलिए थी कि समाज के प्रति इन सभी की सोच बहुत स्वस्थ थी। इन्होंने सुधार के कुछ सुझाव सरकार के लिए बढ़ाए तो उससे अधिक दमदारी से बात अपने सहयोग की रखी। निश्शुल्क ओपीडी, सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा देने को तत्परता सहित कई ऐसे प्रस्ताव इन सेवाभावी चिकित्सकों ने रखे, जिन पर अमल शुरू हुआ तो सेवा के जरिये सुधार का मजबूत रास्ता तो कम से कम बन ही जाएगा। इससे पहले अभियान की प्रस्तावना संपादकीय प्रभारी आनंद शर्मा ने रखी। आभार यूनिट हेड अवधेश शर्मा ने जताया, वहीं संचालन रेडियो सिटी के आरजे राघव ने किया।' मंथन में उभरा दर्द और इलाज
वरिष्ठ फिजीशियन एवं मधुमेह रोग विशेषज्ञ डॉ. नंदिनी रस्तोगी का कहना था कि गरीबी एक अभिशाप है। जब गरीबी के साथ बीमारी भी मिल जाए तो वह बहुत बड़ा अभिशाप बन जाती है। हमें सबसे पहले इस गरीब तबके के बारे में ही सोचना होगा। यह वर्ग ऐसा है, जो निजी अस्पतालों में इलाज का महंगा खर्च नहीं उठा सकता। इनके लिए तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति सुधारनी ही होगी। हम यह नहीं कहते कि सरकार नए अस्पताल, नई डिस्पेंसरी बनाए। जरूरत है कि जो पहले से बने हैं, उनमें ही सुधार कर दिया जाए। हर परिवार ले एक मरीज के इलाज का संकल्प
वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अवध दुबे कहते हैं कि विश्व में सर्वाधिक अंधत्व के रोगी भारत में हैं। इनमें 80 फीसद अंधत्व ऐसा है, जिससे सावधानी रखें तो बचा जा सकता है। जो बीमार हैं, उनकी जिंदगी को फिर रोशन किया जा सकता है। जिले की 50 लाख की आबादी में करीब पांच लाख परिवार संपन्न की श्रेणी में हैं। यदि हर परिवार एक मरीज के इलाज का खर्च वहन कर ले तो हमें किसी भी सरकारी या किसी अन्य वित्तीय मदद की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। गांवों में जाकर करनी होगी मरीजों की स्क्रीनिंग
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. प्रवीन कटियार का कहना था कि हमारी संस्था का हमेशा ही प्रयास रहता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में हरसंभव मदद कर सकें। संस्था से जुड़े डॉक्टर लगातार सेवा कार्य करते भी हैं। वह कहते हैं कि हमारी पहली कोशिश यह होनी चाहिए कि बीमारी ही न हो, इलाज तो उसके बाद की बात है। खास तौर पर स्वच्छता के प्रति ग्रामीणों को समझाना चाहिए। इसके अलावा हम स्वास्थ्य सेवा उन्हीं मरीजों को दे पाते हैं, जो हम तक आ पाते हैं। जरूरत है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर मरीजों की स्क्रीनिंग कर इलाज करें। विकास में पीछे छूट गई सेवा की भावना
वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.मधु लुम्बा ने अपने अनुभव साझा किए। बोलीं कि मैंने इस शहर को शून्य से बढ़ते, गिरते और फिर बढ़ते देखा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर 1970 में कानपुर में कुछ नहीं था। पूरी आबादी के इलाज के लिए अपर इंडिया शुगर एक्सचेंज जच्चा-बच्चा अस्पताल ही था। फिर भी मरीजों का इलाज हो रहा था, क्योंकि जज्बा अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने का था। विकास के साथ वह भावना डूब गई। गरीब समाज पीछे छूट गया। सेवा की वह भावना फिर जिंदा करनी होगी। 'पेशेंट फ्रेंडली' बनाने होंगे अस्पताल
वरिष्ठ जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. एएस प्रसाद मानते हैं कि काबिल चिकित्सकों के मामले में कानपुर का बहुत ऊंचा स्थान है, लेकिन 'क्वालिटी हेल्थ फॉर ऑल' की बात करें तो निराशा होती है। डॉ. प्रसाद कहते हैं कि यह पचास लाख की आबादी वाला शहर है। हमें प्राथमिक चिकित्सा की बात पहले करनी होगी। साधारण उपचार भी जनता को आसानी से नहीं मिल पा रहा। मैं जब पढ़ता था, तब कई गुना अधिक सरकारी अस्पताल थे, जो बंद होते गए। हमें अस्पतालों की संख्या बढ़ानी होगी। अस्पतालों को पेशेंट फ्रेंडली बनाना होगा, ताकि इलाज को आने में मरीज कतराए नहीं। ट्रिपल-पी में करना होगा सुधार
पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वीसी रस्तोगी 'ट्रिपल-पी' में सुधार का फार्मूला देते हैं। कहते हैं कि पॉलिटिशियन सुधार के प्रति इच्छाशक्ति दिखाएं, व्यवस्था में बेजा दखलअंदाजी न करें। पॉपुलेशन कंट्रोल यानी तेजी से बढ़ती जनसंख्या को भी नियंत्रित करना होगा और तीसरा पी फिजीशियन के लिए है, लेकिन इसमें सभी डॉक्टर को शामिल कर सकते हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी। सरकार जो बजट अस्पतालों पर खर्च कर रही है, वह जरूरत के हिसाब से खर्च हो। यूं ही कभी इमारत पर तो कभी मशीनों पर न किया जाए। चिकित्सक, स्टाफ और संसाधन बढ़ाने की जरूरत
लाला लाजपत राय अस्पताल (हैलट) के बालरोग विभागाध्यक्ष डॉ.यशवंत राव मानते हैं कि चिकित्सकों का पलायन बड़ी समस्या है। चिकित्सक सरकारी नौकरी में आने को राजी नहीं हैं। डॉक्टर और आबादी के बीच अनुपात तब सुधरेगा, जब डॉक्टर बाहर जाना छोड़ें। इसके अलावा देश में 30 फीसद आबादी गरीब है, जबकि सरकारी सिस्टम सिर्फ 10 फीसद को ही कवर कर सकता है। 120 मरीज बच्चों की देखभाल 4 नर्स कैसे कर सकती हैं। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक, स्टाफ और अन्य संसाधन बढ़ाने होंगे। निजी नर्सिग होम का सहयोग भी जरूरी
नर्सिग होम एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र सरावगी कहते हैं कि हमें गर्व होना चाहिए कि कानपुर स्वास्थ्य सुविधाओं में अच्छा स्थान रखता है। हालांकि सुधार की बहुत जरूरत है। इसमें निजी क्षेत्र को भी सहयोग करना होगा। लोगों के बीच यह धारणा बदलनी होगी नर्सिग होम तो सिर्फ लूटने के लिए है। डॉ. सरावगी का कहना है कि 50 फीसद से अधिक नर्सिग होम संचालक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। पंजीकृत अस्पतालों की बात करें तो उनमें से 80 फीसद जगह चैरिटी भी हो रही है। सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सरकारी विभाग इनका उत्पीड़न न कर सकें। बिना संवेदना के संसाधन भी बेकार
युग दधीचि देहदान अभियान चला रहे समाजसेवी मनोज सेंगर मानते हैं कि समाज में संवेदना, सेवा और समर्पण की कमी आई है। सरकार कितने भी संसाधन मुहैया करा दे, यदि उस व्यवस्था से जुड़े लोगों के मन में संवेदनाएं नहीं हैं तो उनका लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल सकता। उन्होंने उदाहरण भी दिए कि सरकार ने दो शव वाहन मुहैया कराए हैं, लेकिन अक्सर सुनने में आता है कि परिजन शव लेकर भटकते रहे। इसी तरह देहदान के प्रति मेडिकल कॉलेज प्रबंधन का समर्पण होता तो समाज को मनोज सेंगर की जरूरत न होती। दिल में जगाना होगा सेवा का भाव
पनकी हनुमान मंदिर में निश्शुल्क नेत्र एवं स्वास्थ्य चिकित्सालय संचालित कर महंत जितेंद्र दास महाराज भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब उनके गुरुजी बीमार हुए उनकी आंखों की रोशनी चली गई। तब उनके संदेश पर ही निश्शुल्क अस्पताल शुरू किया। वह मानते हैं कि यदि सभी संपन्न लोगों में मन में सेवा का भाव जाग जाए तो काफी लोगों का भला हो सकता है। जल्द ही वह निश्शुल्क फिजियोथेरेपी सेंटर भी शुरू करने जा रहे हैं। स्वास्थ्य सेवा के इन कदमों पर बढ़ेगा कानपुर
डॉ. मधु लुम्बा ने प्रस्ताव बढ़ाया है कि हम डॉक्टर 365 दिन प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। तय कर लें कि माह के प्रथम रविवार निश्शुल्क इलाज और ऑपरेशन करेंगे।
आइएमए के अध्यक्ष डॉ. प्रवीण कटियार ने आश्वासन दिया कि वह सभी सदस्य चिकित्सकों को यह प्रस्ताव भेजेंगे।
डॉ. एएस प्रसाद ने बताया कि पहले मैं एक दिन निश्शुल्क मरीज देखता था। क्षमता के साथ यह अवधि बढ़ाता चला गया। हर डॉक्टर सप्ताह में करीब पचास मरीज फ्री में देखता है। इसके लिए एक दिन निश्चित कर लिया जाए।
पूर्व सीएमओ डॉ.वीसी रस्तोगी ने प्रस्ताव रखा कि सभी सेवानिवृत्त चिकित्सक सरकारी अस्पतालों में निश्शुल्क सेवाएं देने को तैयार हैं। जो अस्पताल बंद हो गए, उनका संचालन सरकार ऐसे चिकित्सकों को सौंप दे।
डॉ.महेंद्र सरावगी ने बताया कि वह सरकार को प्रस्ताव दे चुके हैं कि सभी नर्सिग होम अपना एक बेड हमेशा निश्शुल्क इलाज के लिए आरक्षित रखेंगे। इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री खुद आकर करें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि धर्म स्थल गरीबों के इलाज को दानपेटी से दान दे सकते हैं।
डॉ.अवध दुबे ने प्रस्ताव रखा कि नगर निगम के जो अस्पताल बंद हो गए हैं, उनमें संसाधन मुहैया करा दिए जाएं तो डॉक्टर वहां चैरिटी करने के लिए तैयार हैं।