Muharram 2020: नवाब आगामीर के मकबरे में होती शाम-ए-गरीबा, यहां गूंजती रहती हैं हुसैनी सदाएं
कानपुर में नवाब मौतमुद्दौला और परिवारियों की कब्रों पर मोहर्रम में हर वर्ष गम मनाया जाता रहा है इस वर्ष कोरोना संक्रमण की वजह से अजाखाने में जरी और अलम रख दिए गए हैं।
कानपुर, जेएनएन। ऐतिहासिक धरती वाले कानपुर शहर में मुस्लिम धरोहरें भी हैं, इन्हीं में से नवाब आगामीर मोतमुद्दौला का मकबरा भी हैं। यहां मोहर्रम शुरू होते ही हुसैनी सदाएं गूंजने लगती हैं तो हर रात यहां जिक्र-ए-हुसैन सुनकर अकीदतमंद रोते हैं और यौम-ए-आशूरा (मोहर्रम की दस तारीख) को सूरज डूबने के बाद शाम-ए-गरीबा होती है। मोहर्रम की नौ तारीख को मकबरे के करीब बनी छोटी कर्बला में आग का मातम होता है, अगले दिन हजारों ताजियों को छोटी कर्बला में दफन किये जाने का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है।
मकबरे में दफन हैं नवाब मौतमुद्दौला और परिवारी
ग्वालटोली में नवाब मौतमुद्दौला आगामीर का मकबरा है। आगामीर लखनऊ के नवाब गाजीउद्दीन हैदर के प्रधान सचिव थे। वे लखनऊ से कानपुर आकर बस गए थे। नवाब आगामीर अपने परिवार के साथ इसी स्थान पर रहते थे, जिसे अब मकबरा कहा जाता है। नवाब आगामीर के इंतकाल के बाद उनको इसी घर में दफना दिया गया, तब से यह मकबरा के नाम से मशहूर हो गया। नवाब मौतमुद्दौला के परिवार के अन्य सदस्य भी यहीं दफन हैं।
जर्जर हो चुका है मकबरा
मकबरा ग्वालटोली बहुत जर्जर हो चुका है और इसकी छत का ज्यादातर हिस्सा भी गिर चुका है। मुंसिफ अली रिजवी बताते हैं कि अंजुमन मोहम्मदी मोइनुल अजा ने नवाब मौतमुद्दौला के वंशज नवाब हैदर अली से इजाजत लेकर यहां अजाखाना बनवाया है। हर वर्ष इसी अजाखाने में इमाम हुसैन का गम मनाया जाता है। तकरीबन पचास वर्षों से यहां मोहर्रम की दस तारीख को शाम ए गरीबा होता है। इस वर्ष कोरोना की वजह से पहले की तरह मजलिसें नहीं हो रहीं हैं। नवाब अगामीर मकबरे की देखभाल कर रहे कुमैल बताते हैं कि अजाखाने में जरी व अलम रख दिए गए हैं।