Corona Virus को बेअसर करेगा Mono Clonal Antibody Cocktail, लैब में इस तरह किया गया तैयार
यह एंटीबॉडी कॉकटेल इंजेक्शन प्लाज्मा थेरेपी की तरह ही है। इसलिए इसे सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन मेंटेन करना जरूरी है। इसलिए कंपनी हॉस्पिटल सप्लाई ही कर रही है। लखनऊ में स्टॉकिस्ट के पास पर्याप्त मात्रा में इंजेक्शन उपलब्ध हैं।
कानपुर (ऋषि दीक्षित)। देश में कहर बरपा रहे कोरोना वायरस के खिलाफ एक और कारगर दवा हथियार के तौर पर तैयार कर ली गई है। यह शुरुआती संक्रमण को रोक कर पीडि़त की स्थिति गंभीर नहीं होने देगा। इससे अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आएगी। अमेरिका में तैयार ये दवा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इलाज में भी इस्तेमाल की गई थी। दवा शहर के बड़े निजी अस्पताल रीजेंसी में फिलहाल उपलब्ध है। अब तक 10 कोरोना संक्रमितों पर इस्तेमाल भी की जा चुकी है।
ऐसे की गई तैयार : सबसे पहले लैब में डीएनए रीकांबिनेट बायोटेक्नोलॉजी से कोविड के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनाई गई। इस तरह से विश्व में वायरस की 70 से अधिक मोनो क्लोनल एंटीबॉडी तैयार की जा चुकी हैं। उसमें से स्विट्जरलैंड व अमेरिका में तैयार की गई कासिरिविमाब और इम्देवीमाब बेहद कारगर मिलीं। एफडीए से अनुमति के बाद इन दोनों के कांबिनेशन को मिलाकर कोरोना संक्रमितों को लगाया गया, जिसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी शामिल हैं। विशेषज्ञों का दावा है कि कोरोना के संक्रमण की शुरुआती अवस्था में बुजुर्ग और 12 वर्ष से ऊपर के बच्चों को देने पर हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अमेरिकी कंपनी रोचे एंड रिजिनिरॉन ने भारत में इसे उपलब्ध कराया है।
ऐसे करती है काम : कोरोना वायरस से स्पाइक प्रोटीन में दो रिसेप्टर एस-वन एवं एस-टू होते हैं। उसमें से एस-वन रिसेप्टर वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही उसे कोशिकाओं में चिपकाने में मदद करता है, जबकि एस-टू रिसेप्टर कोशिकाओं के अंदर प्रवेश करके अपने हिसाब से कार्य करने में सहायक होता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी वायरस की इस प्रक्रिया को रोक देती है, जिससे वायरस का संक्रमण आगे नहीं बढ़ पाता है।
हॉस्पिटल सप्लाई की अनुमति : यह एंटीबॉडी कॉकटेल इंजेक्शन प्लाज्मा थेरेपी की तरह ही है। इसलिए इसे सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड चेन मेंटेन करना जरूरी है। इसलिए कंपनी हॉस्पिटल सप्लाई ही कर रही है। लखनऊ में स्टॉकिस्ट के पास पर्याप्त मात्रा में इंजेक्शन उपलब्ध हैं। शहर के सिर्फ रीजेंसी हॉस्पिटल से ही डिमांड हो रही है।
अभी तक के परिणाम
- शुरुआती अवस्था के संक्रमण में कारगर।
- गंभीर संक्रमण में अभी अच्छे रिजल्ट नहीं।
- असर देखने को एंटीबॉडी टाइटर जांच जरूरी।
इनका ये है कहना
- एक प्लाज्मा थेरेपी का एडवांस वर्जन है। इसमें कृत्रिम रूप से तैयार की गई दो एंटीबॉडी का कांबिनेशन मिलाकर संक्रमित व्यक्ति को लगाया जाता है। विदेश में हुए ट्रॉयल के शुरुआती अवस्था के मरीजों में बेहतर रिजल्ट मिले हैं। हालांकि, अभी इसकी थेरेपी काफी महंगी है, इसलिए सामान्य मरीजों की पहुंच से काफी दूर होगी। - डॉ. चंद्रशेखर सिंह, नोडल अफसर, कोविड आइसीयू, मेटरनिटी विंग, लाला लाजपत राय (एलएलआर) अस्पताल।
- यह लाइफ सेविंग ड्रग है। न्यूरोलॉजिकल प्राब्लम में भी इसका इस्तेमाल होता है। इस बार कोरोना में इस्तेमाल कारगर साबित हुआ है। अब तक गंभीर स्थिति में आए 10 संक्रमित मरीजों को दिया गया है। उन्हेंं आने के 24 घंटे के अंतर ही मोनो क्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल देने के बेहतर रिजल्ट मिले हैं। दरअसल, एंटीजन एंटीबॉडी है, जो वायरस के प्रभाव को कम कर देती है। इसका रिकवरी रेट बेहतर है।
- डॉ. राजीव कक्कड़, सीनियर चेस्ट स्पेशलिस्ट, रीजेंसी हॉस्पिटल।
- एंटीबॉडी एक प्रकार के प्रोटीन होते हैं, जिसे हमारा शरीर किसी भी बीमारी के खिलाफ खुद को बचाने के लिए उत्पन्न करता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में रोग विशेष (एंटीजन) से लडऩे के लिए तैयार की जाती है। दो एंटीबॉडी मिलाकर लगाने की वजह से कॉकटेल कहते हैं। यह मानव कोशिकाओं में वायरस के अटैचमेंट और उसके बाद प्रवेश को रोकता है। इसे सबसे पहले स्विट्जरलैंड स्थित रोश कंपनी ने तैयार किया था। अभी आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति है। बहुत महंगा होने से कोरोना के मरीजों में सीमित इस्तेमाल की सलाह है। - डॉ. विकास मिश्रा, प्रोफेसर, माइक्रोबायोलॉजी विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।