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स्वप्नद्रष्टा मोदी की सुशासन यात्रा का सार है मोदी@20 : ड्रीम्स मीट डिलिवरी, तमाम जिज्ञासाओं को तृप्त करती है पुस्तक

समीक्षक प्रणव सिरोही ने मोदी20 ड्रीम्स मीट डिलिवरी को स्वप्नद्रष्टा मोदी की सुशासन यात्रा का सार बताया है । ये पुस्तक प्रधानमंत्री मोदी से परिचित कराती है और कैसे स्वयं को राजनीतिक सफलता का पर्याय बना लिया।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 01:51 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 01:51 PM (IST)
स्वप्नद्रष्टा मोदी की सुशासन यात्रा का सार है मोदी@20 : ड्रीम्स मीट डिलिवरी, तमाम जिज्ञासाओं को तृप्त करती है पुस्तक
मोदी@20 की पुस्तक समीक्षा के अंश ।

पुस्तक: मोदी@20 : ड्रीम्स मीट डिलिवरी

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संपादन एवं संग्रह : ब्लूकार्ट डिजिटल फाउंडेशन

प्रकाशक : रूपा प्रकाशन

मूल्य : 895 रुपये

समीक्षा : प्रणव सिरोही

गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री तक की भूमिका में नरेन्द्र मोदी की सुशासन-यात्रा को इस पुस्तक में समेटा गया है। मोदी के सपनों और उन्हें साकार करने वाले कार्यों पर पुस्तक प्रकाश डालती है।

एक ऐसे प्रतिस्पर्धी लोकतंत्र में, जहां कथित 'औसत का कानून' और 'सत्ता-विरोधी रुझान' सरकारों को लगातार दूसरा जनादेश प्राप्त करने के मार्ग में अवरोध बना रहे, वहां सत्ताओं के शीर्ष पर एक शख्स का दो दशकों से अधिक तक अविजित बने रहना स्वयं में काफी कुछ कहता है। भारतीय राजनीति का सांचा-ढांचा और व्याकरण बदल देने वाले नरेन्द्र दामोदरदास मोदी इन्हीं धारणाओं को धता बताकर सत्ता के सिरमौर बने हुए हैं और वर्तमान तो छोडि़ए, निकट भविष्य में भी उन्हें कोई कड़ी चुनौती मिलती प्रतीत नहीं हो रही। आखिर ऐसा कौन-सा दिग्विजयी महामंत्र है, जिसके दम पर मोदी ने स्वयं को राजनीतिक सफलता का पर्याय बना लिया। अपने 'मन की बात' के दम पर वह जन के 'मन-मोहन' बने हुए हैं। सद्यप्रकाशित पुस्तक 'मोदी@20 : ड्रीम्स मीट डिलिवरी' ऐसी तमाम जिज्ञासाओं को तृप्त करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के संवेदनशील व्यक्तित्व, कुशल प्रशासन, निर्णायक नेतृत्व एवं दूरदर्शिता से परिचित कराती है।

नि:संदेह पीएम मोदी पर तमाम किताबें उपलब्ध हैं और नए आयामों को लक्षित कर निरंतर लिखी भी जा रही हैं, किंतु यह पुस्तक उनसे अलग है। वस्तुत: यह विशुद्ध रूप से मोदी के उस विजन एवं नीतियों का लेखाजोखा ही है, जिनके आधार पर उन्होंने सुशासन को नया क्षितिज देते हुए अपना एक मोदी-माडल विकसित किया। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह मोदी के समग्र राजनीतिक कार्यकाल से जुड़ी जीवन-यात्रा की पड़ताल है तो इसमें गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक के उनके सफर को समाहित किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे एक मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात का कायाकल्प कर वह राष्ट्रीय राजनीति के भी शिखर-पुरुष बन गए। यह उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का ही प्रताप था कि नवाचार से ओतप्रोत उनके आकर्षक विकास माडल ने देश को 'गठबंधन-राजनीति की मजबूरी' वाले दौर से मुक्ति दिलाई।

पांच खंडों में विभाजित इस पुस्तक की विशेषता यही है कि इसमें मोदी के बेहद करीबियों, विषय के लब्ध एवं प्रतिष्ठित विद्वानों के अतिरिक्त तटस्थ माने जाने वाले कई विषय-विशेषज्ञों ने अपना योगदान दिया है। मोदी 7 अक्टूबर, 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री बने। संकटकाल में प्रदेश की कमान संभालने वाले मोदी उसके ठीक बीस साल बाद बतौर प्रधानमंत्री देश को वैश्विक महामारी कोविड-19 से राहत दिलाने में जुटे थे। इन बीस वर्षों में मोदी ने राजनीतिक-प्रशासनिक-नीतिगत मोर्चे पर क्या-क्या नूतन प्रयोग कर नई मिसालें कायम कीं, उनका लेखकों ने सविस्तार वर्णन किया है।

युवाओं की अधिसंख्य आबादी वाले देश में मोदी कैसे उनके निर्विवाद आइकन बन गए, शटलर पीवी सिंधू ने इस पहलू पर प्रकाश डाला है। वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने लोकतंत्र, जन आकांक्षाओं की पूर्ति एवं आशा की राजनीति के आलोक में मोदी की भूमिका बताई है। अमीश त्रिपाठी उन्हें 'भागीरथ प्रयासी' बताते हैं तो अनुपम खेर उन्हें एक ऐसे संटकमोचन के रूप में देखते हैं, जिन पर किसी भी आपदा में जनता आंख मूंदकर भरोसा करती है कि वह उन्हें उससे उबार ही लेंगे। संप्रग सरकार के दौरान आधार परियोजना के प्रवर्तक और भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़े नंदन नीलेकणी ने भी सुशासन में तकनीकी की भूमिका के संदर्भ में मोदी-माडल पर कलम चलाई है। यह दर्शाता है कि वैचारिक परिधि से परे भी मोदी के मुरीदों की कमी नहीं।

अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, अनंत नागेश्वरन और डा. शमिका रवि, सेफोलाजिस्ट प्रदीप गुप्ता, एग्रोनामिस्ट अशोक गुलाटी, चिकित्सक-उद्यमी डा. देवी शेट्टी और बैंकर-उद्यमी उदय कोटक ने भी अपने-अपने डोमेन में मोदी-माडल के संदर्भ में विचार प्रस्तुत किए हैं। मोदी के साथ सक्रिय डा. एस. जयशंकर, नृपेंद्र मिश्रा और अजीत डोभाल ने भी उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाश डाला है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव जहां लोकतंत्र को लोकतांत्रिक बनाने, वहीं सुधा मूर्ति बदलाव की बयार के संदर्भ में मोदी का आकलन करती हैं। लता मंगेशकर की लिखी प्रस्तावना भी सारगर्भित है।

विविधतापूर्ण उत्कृष्ट विषयवस्तु के साथ ही प्रस्तुति के पैमाने पर भी पुस्तक आकर्षक बन पड़ी है। विषय में बदलाव के बावजूद भाषा और शैली के स्तर पर अद्भुत प्रवाह एवं सामंजस्य दिखता है। प्रत्येक अध्याय के आरंभ में सम्मुख पृष्ठ पर उसी थीम से जुड़ा कैरिकेचर भी आकर्षण बढ़ाने वाला है। पुस्तक के अंत में मोदी के राजनीतिक जीवन से जुड़ी कुछ अविस्मरणीय तस्वीरों का संग्रह भी दिया गया है। मोदी-माडल को समझने में यह पुस्तक वास्तव में मार्गदर्शिका एवं संदर्भ ग्रंथ सरीखी है, जिसका प्रत्येक अध्याय स्वयं में एक स्वतंत्र पुस्तक का आकार लेने की संभावनाएं लिए हुए है।


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