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जेब खाली और चूल्हे ठंडे तो आई घर की याद, एक दिन खाना खाते दूसरे दिन रखते थे उपवास

गोधरा से लौटकर आए प्रवासी कामगारों ने बयां की अपनी पीड़ा।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 06 May 2020 08:40 AM (IST)Updated: Wed, 06 May 2020 08:40 AM (IST)
जेब खाली और चूल्हे ठंडे तो आई घर की याद, एक दिन खाना खाते दूसरे दिन रखते थे उपवास
जेब खाली और चूल्हे ठंडे तो आई घर की याद, एक दिन खाना खाते दूसरे दिन रखते थे उपवास

कानपुर, जेएनएन। कहावत है कि घर की देहरी लांघते ही परदेस होता है, रोजागार के लिए घर से दूसरे प्रांतों में गए परिवार लॉकडाउन में किसी तरह गुजर बसर करते रहे। आखिर जब जेब का धन खत्म हो गया और चूल्हे ठंडे पड़ गए तो उन्हें घर की याद सताने लगी। मंगलवार को गोधरा गुजरात से 12 सौ प्रवासी कामगार परिवार स्पेशल ट्रेन से उतरे तो उन्होंने अपनी व्यथा बयां की। उन्होंने पीड़ादायी आवाज में बताया कि किस तरह दिन और रात गुजारे हैं।

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यात्रियों ने सुनाई अपनी व्यथा

-एक दिन खाना मिलता तो अलगे दिन उपवास रखते थे, ट्रेन चलने की जानकारी हुई तो ठेकेदार से रुपये लेकर घर वापसी की है। -प्रदीप कुमार, बलिया सिकंदरपुर

-बिस्कुट, नमकीन की फेरी लगाकर पेट पाल रहे थे। रुपये खत्म होने के बाद जो बचा बिस्कुट और नमकीन था उसी से पेट भरा। -नरसिंह, हरदोई

-सारे पैसे खत्म हो गए थे लेकिन जब घर के लिए ट्रेन का पता चला तो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया। पांच सौ रुपये देकर टिकट लिया, तीन साल के बच्चे का टिकट भी लिया गया। बस सुकून इस बात का है कि अब घर पहुंच जाएंगे। -रूबी देवी, अमखेड़ा जालौन

-जमा पूंजी खत्म हो चुकी थी, खाने तक के लाले पड़ गए थे। घर वापसी के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था। दो दोस्तों से टिकट के रुपये उधार लेकर आया हूं। -सूरज कुमार, धर्मदास खेड़ा उन्नाव

-तीसरे लॉकडाउन के बाद घर लौटना मजबूरी बन गया था। जो पिछले माह का वेतन मिला था उससे काम चल रहा था। अब ठेकेदार ने भी हाथ खड़े कर दिए थे, वहां पर जिंदगी कटना मुश्किल हो गया था। -रावेंद्र सिंह, गुजैला घाटमपुर

-पैसे खत्म हो रहे थे और खाने पीने की दिक्कत भी थी, दिन में एक बार खाना खाकर गुजारा कर रहे थे ताकि जीवित रह सकें। परिवार की चिंता भी सता रही थी, इसलिए घर वापसी ही सही रास्ता था। -वीरेंद्र, गुजैला घाटमपुर


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