डॉक्टर के जाल में फंसा एमआर, अब नहीं सूझ रहा कोई रास्ता Kanpur News
शहर की चिकित्सकीय व्यवस्था पर नजर डाल रहा है फिटनेस बॉक्स कालम।
कानपुर। डॉक्टरों के पास एमआर का जमावड़ा लगा रहता है, ऐसे ही एक एमआर डॉक्टर के जाल में फंसे तो अब उन्हें कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। वहीं जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की सुर्खियां बढऩे पर गोलबंदी शुरू हो गई है। इसपर पेश है ऋषि दीक्षित का फिटनेस बॉक्स...।
एमआर का दर्द
शहर के एक बड़े डॉक्टर का बहुत नाम है। वह साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखते हैं। मरीज देखने में भी एहतियात बरतते हैं। उन्हें गुणवत्तापरक काम भी पंसद है। दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों (एमआर) की उनके यहां लाइन लगी रहती है। कुछ दिन पहले डॉक्टर साहब ने एक एमआर से कुछ साथियों संग पार्टी करने की इच्छा जताई। एमआर ने तत्काल कंपनी को ईमेल कर 25 हजार का रुपये का अप्रूवल ले लिया। उसके बाद उन्होंने साथियों संग अच्छी-खासी पार्टी की।
जब एमआर ने बिल देखा तो होश फाख्ता हो गए। उसमें सिर्फ शराब का 25 हजार रुपये और खाना-पीना अलग से। 32 हजार रुपये के बिल भुगतान से कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए। अब एमआर अपने दोस्तों को दर्द सुनाता घूम रहा है। उसका अपना तर्क है कि हजार-पांच सौ रुपये की कोई बात नहीं, वह जेब से चलता है। यहां तो बात सात हजार रुपये की है।
शह और मात
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की तर्ज पर संस्थान बनाने के लिए प्रयास चल रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के ही एक वरिष्ठ अधिकारी विरोध में गोलबंदी कर रहे हैं। पहले कॉलेज के अफसर और कर्मचारियों को भड़काने का प्रयास किया। स्वयं असंतोष की बात ऊपर पहुंचाई पर दाल गलती नजर नहीं आई। फिर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार तक आवाज पहुंचाई, जो बेअसर रहा।
उनकी बिछाई सारी बिसात प्राचार्य की एक शह पर धराशायी हो जाती है। वह गरीबों का हित प्रभावित होने की दुहाई दे रहे हैं। प्राचार्य ने पहले ही इंस्टीट्यूट में उनकी भूमिका का खाका खींच कर शासन को अवगत करा दिया है। तीर निशाने पर नहीं बैठा तो डॉक्टर साहब अब ब्रह्मास्त्र चलाने की तैयारी में हैं। लखनऊ से दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं। बहरहाल दोनों अफसरों के बीच शह और मात का खेल हर किसी की जुबान पर है।
शासन की कृपा
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एलएलआर अस्पताल (हैलट) में 17 वर्षों पहले ठेके पर एमआरआइ-सीटी स्कैन जांच की सुविधा मरीजों के हित में शुरू हुई थी। संचालक को अस्पताल के मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर सुविधा प्रदान करना था। इसमें शर्त थी कि कुल जांच का दस फीसद निश्शुल्क करना था। संचालक ने पहले सीटी स्कैन मशीन लगाई, फिर एमआरआइ स्थापित की।
फायदा होने लगा तो संचालक की मनमानी बढ़ती गई। अब तो हाल यह है कि अस्पताल के मरीजों को दरकिनार कर बाहरी को प्राथमिकता देते हैं। अगर हाथ में निश्शुल्क जांच का कागज देख लिया तो सुबह से शाम तक दौड़ाते रहते हैं। कई वर्षों से बगैर अनुबंध के सेंटर चल रहा है। इस सेंटर की जांच की गुणवत्ता पर यहां के डॉक्टर आपत्ति उठा चुके हैं। कई बार शिकायत शासन तक हुई, पर कार्रवाई नहीं होती। अब अधिकारी कहने लगे हैं कि यह शासन की कृपा है।
चीखने लगे डॉक्टर
लक्ष्मीपत सिंहानिया हृदय रोग संस्थान के जनरल वार्ड में शुक्रवार दोपहर अपने-अपने मरीजों का हाल जानने के लिए तीमारदार आए थे। कोई पानी का बंदोबस्त कर रहा था तो कोई दवाओं का इंतजाम। इसी बीच वहां एक हृदय रोग विशेषज्ञ आ गए, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले ही यहां योगदान दिया है। इससे पहले यहां के छात्र थे, उनकी छात्रों वाली आदतें भी अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। जब वह वार्ड में आए तो तीमारदार मरीजों का हाल जानने में व्यस्त थे। किसी ने उनसे दुआ-सलाम नहीं की, जो उन्हें नागवार गुजरा।
कुछ खास मरीजों का हाल पूछने के बाद अचानक भड़क गए। तीमारदारों को डराने लगे- 'मरीज यहां भर्ती हैं, भीड़ लगाएंगे तो दोबारा हार्ट अटैक पड़ जाएगा।' उनका ध्यान वार्ड की गंदगी पर नहीं गया। उनके मुंह से ऐसी बातें सुन तीमारदार अवाक रह गए। कहने लगे, जब डॉक्टर ऐेसे चीखेंगे तो मरीजों का क्या हाल होगा।