छात्रा की खुदकुशी मामले में मेडिकल कॉलेज प्रशासन को क्लीनचिट
10 माह पहले एमबीबीएस छात्रा ने बैराज से गंगा में कूदकर दे दी थी जान
जागरण संवाददाता, कानपुर : 10 माह पहले परीक्षा के तनाव को लेकर गंगा बैराज से कूदकर जान देने वाली एमबीबीएस छात्रा अमृता सिंह के पिता की ओर से कॉलेज प्रशासन पर लगाए आरोप प्रशासनिक जांच में सही नहीं साबित हुए हैं। एसीएम-छह ने जांच में आरोपों को निराधार पाया है। उन्होंने रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को सौंप दी है। अब यह रिपोर्ट राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को भेजी जाएगी।
मूलरूप से झांसी के केके पुरी कॉलोनी निवासी अमृता के पिता रामसनेही वर्मा इटावा के ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में जूनियर इंजीनियर हैं। वह परिवार समेत इटावा में रहते हैं। अमृता जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस फाइनल इयर की छात्रा थी। फरवरी में उसकी परीक्षाएं होनी थीं। इसी वजह से वह तनाव में आ गई। उसने परीक्षा से 15 दिन पहले चार पन्ने का सुसाइड नोट लिखकर गंगा बैराज से छलांग लगा दी थी। उसकी स्कूटी बैराज पुल पर लावारिस हालत में मिली थी। अगले दिन उसका शव उन्नाव के शुक्लागंज में मिला था। इटावा से आए पिता व परिवार वालों ने कॉलेज प्रशासन पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी। छात्र-छात्राओं ने भी हंगामा किया था। पिता की शिकायत पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की ओर से भी जांच के निर्देश हुए थे।
एसीएम-छह मीनू राणा ने बताया कि चार पन्नों के सुसाइड नोट में कहीं भी छात्रा ने उत्पीड़न होने की बात नहीं लिखी है। उसने पहले भी तीन बार खुदकुशी का ख्याल मन में आने का जिक्र किया है। साथ ही लिखा है कि वह पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी। छात्रा के स्वजन को भी बयान के लिए बुलाया गया, लेकिन वह नहीं आए। जांच में कॉलेज प्रशासन पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद साबित हुए हैं। रिपोर्ट अधिकारियों को भेजी गई है।