Move to Jagran APP

राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकारी स्कूल में पढ़ाएं अफसर और नेताओं के बच्चे, तब बदलेगा माहौल

प्रतियोगी परीक्षाओं की निश्शुल्क कोचिंग 'वी कैन' के निदेशक आरके सफ्फड़ का सुझाव था कि बच्चों के ऊपर से किताबों को बोझ कम होना चाहिए।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST)
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकारी स्कूल में पढ़ाएं अफसर और नेताओं के बच्चे, तब बदलेगा माहौल

'दर्प' का वह भाव आज भी सीने चौड़े करता है कि कभी दुनिया को शिक्षा की राह हमारा भारत ही दिखाता था। यहां के गुरुकुल ज्ञान की गंगा बहाया करते थे, लेकिन अब 'दर्द' यह है कि शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है और अच्छी पढ़ाई के लिए सक्षम-संपन्न घरों के युवा परदेस जा रहे हैं।

loksabha election banner

बात शुरू तो देश के हालात से होती है, लेकिन यहां चिंता के केंद्र में वह शहर है, जहां एक से एक बेहतर शिक्षण संस्थान हैं। दैनिक जागरण के अभियान 'माय सिटी माय प्राइड' की राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस में शहर के विद्वान और प्रबुद्धजन ने शिक्षा में सुधार के लिए गहन विचार-विमर्श और मंथन किया। इनमें शिक्षा के क्षेत्र में समाजसेवी के रूप में बेहतरीन काम कर रहे 'रियल हीरो' के अलावा बतौर विशेषज्ञ इस मसले की नब्ज जानते हैं।

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 

चिंतन शिक्षण के बीज यानी बेसिक-माध्यमिक शिक्षा से शुरू होता है। सरकारी स्कूलों की स्थिति बेहद खराब है। फिर वही माहौल उच्च शिक्षा तक पहुंच चुका है। जब सकारात्मक प्रयास और सुधार पर रायशुमारी हुई तो विचारों का लब्बोलुआब यही निकला कि सोच और माहौल बदलने से ही शिक्षा का स्तर सुधरेगा। विषय प्रवर्तन और अतिथियों का स्वागत संपादकीय प्रभारी आनंद शर्मा, जबकि आभार प्रदर्शन यूनिट हेड अवधेश शर्मा ने किया। बैठक का संचालन रेडियो सिटी के आरजे अखिल ने किया।

चल रहा सुधार, तेज करने होंगे प्रयास
केएम त्रिपाठी राष्ट्रीय शिक्षा नीति समिति के सदस्य और माध्यमिक शिक्षा उप्र के पूर्व निदेशक हैं। उनका कहना था कि उच्च शिक्षा में सुधार के लिए सरकार लगातार समीक्षा करती है और सुधार के कदम भी उठाए जाते हैं। नीतिगत और ढांचागत बदलाव भी आ रहा है। मगर, कानपुर में सबसे ज्यादा जरूरत शैक्षिक वातावरण में बदलाव की है। बच्चों के लिए कॉलेजों में अलग से गाइडेंस क्लास चलनी चाहिए। इसके अलावा बुनियादी प्रशिक्षण का भी अभाव है।

समझना होगा शिक्षा और योग्यता में फर्क
डीएवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमित श्रीवास्तव कहते हैं कि एजुकेशन और क्वालिफिकेशन में फर्क समझना होगा। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा है और उच्च शिक्षा में योग्यता पर ध्यान देना चाहिए। छात्र की योग्यता, क्षमता और रुचि को देखते हुए ही उसे पाठ्यक्रम कराना चाहिए। उन्होंने शिक्षा में आई गिरावट को उदाहरण सहित बताया। बोले कि जिस जीआइसी में एडमिशन के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी, अब वहां जानवर टहल रहे हैं।

शिक्षकों से लें सिर्फ शिक्षण का कार्य
मंजू मिश्रा सेवानिवृत्त प्राचार्या हैं। अब प्राथमिक शिक्षा सुधार प्रकल्प चला रही हैं। उनका कहना था कि शिक्षकों की ड्यूटी आए दिन दूसरे सरकारी कार्यों में लगा दी जाती है। फिर वह अपनी जगह किसी अन्य को कुछ रुपये देकर पढ़ाने के लिए भेजने लगते हैं। जब नियमित रूप से शिक्षक ही स्कूल नहीं पहुंचेंगे तो पढ़ाएगा कौन। तभी बच्चों का मोहभंग होता है। सरकार को यह व्यवस्था सबसे पहले ठीक करनी होगी।

सरकारी संस्थानों के प्रति जगाना होगा विश्वास
प्रो. पृथ्वीपति सचान हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी (एचबीटीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर और स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय परिषद सदस्य हैं। उनका मानना था कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही सरकार सबसे अधिक खर्च करती है, लेकिन उसका लाभ जनता को नहीं मिल पा रहा। शिक्षक कॉलेजों में आते तो हैं, लेकिन वहां पढ़ाई का माहौल नहीं है। सरकारी संस्थानों के प्रति लोगों का विश्वास जगाने की बहुत जरूरत है।

कॉलेजों में न रखे जाएं सिफारिशी शिक्षक
प्रतियोगी परीक्षाओं की निश्शुल्क कोचिंग 'वी कैन' के निदेशक आरके सफ्फड़ का सुझाव था कि बच्चों के ऊपर से किताबों को बोझ कम होना चाहिए। इसके अलावा कई बार देखा जाता है कि शिक्षक सिफारिश के दम पर मनचाहे संस्थान में स्थानांतरण करा लेते हैं। जरूरत है कि योग्यता और क्षमता परखने के बाद ही नियुक्ति दी जाए। तभी शिक्षा के स्तर में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

सरकारी स्कूल में पढ़ाएं अफसर और नेताओं के बच्चे
उद्योगपति ओमप्रकाश डालमिया आईआईटी और मेडिकल की पढ़ाई का खर्च उठाने में अक्षम गरीब छात्रों की आर्थिक मदद करते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा के प्रति हर वर्ग की सोच बदलनी चाहिए। बहुत से गरीब बच्चों को पढ़ाने की बजाए मजदूरी में लगा देते हैं। उन्हें समझाना चाहिए। सुझाव दिया कि अधिकारी और नेताओं के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाएंगे तो अपने आप सुधार आने लगेगा।

ऐसा माहौल बने कि स्कूल के प्रति आकर्षित हों बच्चे
कटरी शंकरपुर के प्राथमिक विद्यालय में उम्मीद से अधिक सुधार करने वालीं प्रधानाध्यापिका शशि मिश्रा कहती हैं कि स्कूल में बच्चों को प्यार मिलना चाहिए। माहौल और व्यवहार ऐसा हो कि बच्चे स्कूल के प्रति आकर्षित होने लगें। वे नियमित स्कूल आएंगे तो पढ़ाई का माहौल बनेगा। फिर समर्पण भाव से शिक्षक पढ़ाने लगें तो हो जाएगा सुधार।

बुनियादी सुविधाओं की जरूरत
आदर्श शिक्षक के रूप में अपनी पहचान बना चुके कटरी शंकरपुर प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अब्दुल कुद्दूस को लगता है कि सबसे पहले जरूरत विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं विकसित करने की है। बिजली कनेक्शन, फर्नीचर आदि नहीं होगा तो बच्चे क्या, शिक्षक भी नहीं बैठना चाहेंगे। इसी वजह से मजबूरी में अभिभावक निजी विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर होते हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों की ओर देना होगा खास ध्यान
कृष्णमुरारी यादव ग्रामीण क्षेत्र में ईंट भट्ठा मजदूरों के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देते हैं। वह मानते हैं कि सरकारी स्कूलों की दशा बहुत खराब है। शहरी क्षेत्र में अभिभावकों को शिक्षा के अन्य विकल्प भी मिल सकते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इसका नितांत अभाव है। सरकार हो या समाजसेवी, सभी को गरीब ग्रामीणों के बच्चों की शिक्षा के लिए चिंता और प्रयास करने चाहिए।

अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.