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कानपुरः काश! हर शिक्षक शशि और अब्दुल हो जाए

वर्तमान स्थिति देखकर किसी के भी मुंह से यह निकल सकता है कि काश! हर शिक्षक शशि मिश्रा और अब्दुल कुद्दूस हो जाए।

By Gaurav TiwariEdited By: Published: Wed, 25 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 25 Jul 2018 11:21 AM (IST)
कानपुरः काश! हर शिक्षक शशि और अब्दुल हो जाए

पिछड़ा हुआ ग्रामीण इलाका और एक सरकारी स्कूल...। जाहिर है कि सुनकर ही मन खिन्न हो जाएगा। कल्पना यही कर पाएंगे कि कुछ बच्चे आते होंगे। एक-दो शिक्षक होंगे। मध्याह्न भोजन बनाने-बांटने की 'सरकारी रस्म' होती होगी और छुट्टी। हां, 2008 से पहले गंगा तट पर बसे कटरी शंकरपुर सराय गांव के उच्च प्राथमिक स्कूल की स्थिति लगभग यही थी। मगर, उसके बाद यहां शिक्षा की कमान संभालने वाली समर्पण की दो 'प्रतिमाएं' क्या सरकार ने स्थापित कर दीं कि स्कूल ही नहीं, क्षेत्र में शिक्षा का वातावरण बदल गया। वर्तमान स्थिति देखकर किसी के भी मुंह से यह निकल सकता है कि काश! हर शिक्षक शशि मिश्रा और अब्दुल कुद्दूस हो जाए।

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कटरी शंकरपुर सराय के उच्च प्राथमिक विद्यालय में 2008 तक मात्र 19 बच्चे पढ़ते थे। खास बात यह कि मल्लाह बहुल क्षेत्र के गांवों में कोई भी अभिभावक बच्चियों को स्कूल नहीं भेजता था। 2008 में प्रधानाध्यापिका शशि मिश्रा और कुछ माह बाद ही शिक्षक अब्दुल कुद्दूस की इस विद्यालय में तैनाती हो गई। दोनों ही यहां शिक्षा के स्तर को देखकर आहत थे और मिलकर प्रयास शुरू किए। गांव-गांव जाकर अभिभावकों को समझाया। उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया। मन लगाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो लोगों का विश्वास जागा। वर्तमान में यहां विद्यार्थियों की संख्या 117 है। इनमें शंकरपुर सराय, लोधवा खेड़ा, चैनपुरवा, देवनीपुरवा आदि गांवों के 58 छात्र और 59 छात्राएं हैं।

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अपने वेतन से पढ़ा रहे गांव की बेटियां
इनका समर्पण सिर्फ अपने स्कूल में बेहतर शिक्षा देने तक सीमित नहीं है। आठवीं तक अपने स्कूल में पढ़ाने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांव की बेटियों का दाखिला शहर के अच्छे स्कूलों में कराते हैं। इसके लिए शशि मिश्रा और अब्दुल कुद्दूस अपने वेतन का दस-दस फीसद पैसा हर माह खर्च करते हैं। बच्चियों को स्कूल आने-जाने में परेशानी न हो, इसलिए अब तक 37 गरीब छात्राओं को साइकिल भी खरीद कर दे चुके हैं।

शून्य हुआ शिक्षा का 'ड्रॉप आउट'
सरकार भी इसके लिए हमेशा प्रयासरत रहती है कि ड्रॉप आउट न हो। बच्चे बीच में ही पढ़ाई न छोड़ें। यह कारनामा भी शिक्षा के यह दो दूत कर चुके हैं। यह ग्रामीणों को इतना जागरूक कर चुके हैं कि कोई बच्चा बीच में पढ़ाई नहीं छोड़ता। स्कूल से निकलीं 225 छात्राएं आगे की पढ़ाई कर भी रही हैं।

बदल दी स्कूल की सूरत
कटरी क्षेत्र के इस स्कूल की दशा अन्य सरकारी स्कूलों की तरह बेहद खराब थी। दोनों शिक्षकों ने अपने प्रयासों से इसे ऐसा बना दिया है, जैसे कोई निजी स्कूल हो। साथ ही यहां का वातावरण बच्चों को पर्यावरण का भी संदेश देता है। पूरे विद्यालय में घनी हरियाली है।

बनाना चाहते हैं देश का सबसे अच्छा स्कूल
प्रधानाध्यापिका शशि मिश्रा और शिक्षक अब्दुल कुद्दूस इतने बदलाव से भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। इनका कहना है कि यदि हमारे पास और वित्तीय संसाधन हों तो इस स्कूल को देश का सबसे अच्छा सरकारी स्कूल बना दें।

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