राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः प्रयास, निगरानी और समन्वय से बदलेगी कानपुर की सूरत
चिकित्सा क्षेत्र में समाजसेवा करने वाले बाबूलाल शारडा का कहना था कि सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना बनाई है। इसके तहत बहुत सारे सुधार कार्य प्रस्तावित हैं।
अधिकांश कहें या लगभग सभी शहर ऐसे हैं, जहां वक्त के साथ मूलभूत सुविधाएं सुधरती चली गईं। मगर, कानपुर इस मामले में उल्टी चाल चला। पुराने दौर के साक्षी रहे शहरवासियों को इस बात का मलाल है कि अंग्रेजों के जमाने में जो आधारभूत ढांचा था, उसे बढ़ाया न जा सका। आबादी बढ़ती गई और समस्याएं उससे तेज अनुपात में बढ़ती चली गईं।
आज स्थिति यह है कि चलने को मुफीद रास्ता नहीं, पीने को भरपूर शुद्ध जल नहीं। पर्यावरण का ख्याल नहीं रख पाए, रोजगार का भी संकट खड़ा है। 'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत 'जागरण' ने मूलभूत सुविधाओं के मुद्दे को बिंदुवार उठाया। यह भी बताया कि कैसे व्यवस्थाओं के सुधार में कुछ शहरवासियों ने 'रीयल हीरो' की भूमिका निभाई। विशेषज्ञों की राय भी जानीं कि कैसे हो सकता है सुधार।
अपने शहर को शानदार बनाने की मुहिम में शामिल हों, यहां करें क्लिक और रेट करें अपनी सिटी
इसी प्रयास को थोड़ा और विस्तृत करते हुए शनिवार को राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। इसमें शामिल विशेषज्ञों और शहर के प्रबुद्धजनों ने मंथन किया तो सुझाव के मुख्य बिंदु यही निकले कि शहर की सूरत बदलने के लिए सतत प्रयास, पैनी निगरानी और विकास से जुड़े विभागों का समन्वय बहुत जरूरी है। कॉन्फ्रेंस की विषय वस्तु संपादकीय प्रभारी आनंद शर्मा ने रखी, जबकि आभार प्रदर्शन यूनिट हेड अवधेश शर्मा ने किया। संचालन रेडियो सिटी के आरजे राघव ने किया।
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बहुत जरूरी है 'सिविक सेन्स'
मानस संगम संस्था के संस्थापक एवं संस्कृतिविद् बद्रीनारायण तिवारी समस्याओं के भौतिक पहलू से ज्यादा सैद्धांतिक पक्ष पर जोर देते हैं। कहते हैं कि पहले बच्चों को समाज के प्रति जिम्मेदार करते हुए मोरल स्टडी कराई जाती थी। इससे उनमें सिविल सेन्स भी जागृत होता था। अब इसका नितांत अभाव है। समाज और शहर के प्रति लगाव नहीं होगा तो योजनाएं किसी शहर को नहीं सुधार सकतीं। जिम्मेदार सरकारी सिस्टम भी है। खुद देखें कि पहले बड़े घरानों के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, जबकि अब वहां सिर्फ गरीब ही मजबूरी में पढ़ता है।
जनभागीदारी से बनेगा सपनों का शहर
वरिष्ठ कर अधिवक्ता वयोवृद्ध बीएन खन्ना का कहना था कि मैंने कानपुर शहर को बनते-बिगड़ते देखा है। यह मेरे सपनों का शहर है। इसका विकास वैसा ही चाहता हूं, जैसा कि 1947 के पहले था। सड़कों पर घने पेड़ थे। सुव्यवस्थित फुटपाथ थे। उसके बाद स्वरूप बिगड़ता गया और आज हमें सुधार के लिए मंथन करने बैठना पड़ा। उनका कहना था कि सफलता तो जनभागीदारी से ही मिलेगी। क्षेत्रवार समितियां बनानी होंगी, जो अपने-अपने क्षेत्र के विकास की चिंता करें, कार्यों की निगरानी करें।
शासन स्तर पर बननी चाहिए निगरानी समिति
उच्च स्तरीय विकास समिति के समन्वयक नीरज श्रीवास्तव का कहना था कि शहर को सुनियोजित विकास की जरूरत है। यातायात की व्यवस्था के सुधार के लिए पर्याप्त फ्लाईओवर और एलीवेटेड रोड की जरूरत है। योजनाएं तो बहुत बनती हैं, लेकिन उनका फॉलोअप नहीं हो पाता, इसलिए वह ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। स्थानीय स्तर पर समन्वय समिति है, लेकिन शासन स्तर पर भी एक समिति बननी चाहिए। साथ ही हमें विकास की प्राथमिकताएं भी तय करनी होंगी।
सरकारी विभागों में भी हो समन्वय
प्रोविंशियल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज बंका ने विकास से जुड़े विभागों के समन्वय पर जोर दिया। उनका कहना था कि कई बार निजी कंपनियां एक स्थान की अनुमति लेकर पूरे शहर में रोड कटिंग कर डालती हैं। इससे बचने के लिए डक्ट की व्यवस्था बननी चाहिए। उसी के अंदर सभी अंडरग्राउंड लाइन डाली जाएं। साथ ही सांसद, विधायक और पार्षद मिलकर क्षेत्र की विकास की रूपरेखा बनाएं और काम शुरू कराएं।
कर्मचारियों के लिए होनी चाहिए कार्यशाला
प्रोविंशियल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री अतुल सेठ ने सुझाव दिया कि सरकारी विभागों के कर्मचारियों की कार्यशाला जरूरी है। कानपुर में जाम की बहुत समस्या है। उन्हें समझाया जाए कि सुबह नौ से 11 और फिर शाम को पांच से शाम तक यातायात पुलिस मुस्तैदी से काम करे तो काफी राहत मिले। उन्होंने सुझाव दिया कि नगर निगम या कोई भी विभाग किसी भी व्यवस्था में चाहे तो समाजसेवी या औद्योगिक संस्थाओं की मदद ले सकते हैं।
फुटपाथ नीचे कर बढ़ानी होगी सड़क की चौड़ाई
उद्यमी बृजेश अवस्थी का मानना था कि शिक्षित वर्ग को जरूरत समझते हुए शहर के विकास के लिए आगे आना होगा। उन्होंने जनसहयोग से ही पार्कों का सुंदरीकरण कराया। मोतीझील के सामने सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के लिए फुटपाथ को नीचा करा दिया। शहर में जाम की समस्या बहुत है। चूंकि सड़कों के चौड़ीकरण को स्थान नहीं है, इसलिए बेहतर हो कि सभी फुटपाथों की ऊंचाई कम कर दी जाए। वहां पर पार्किंग की व्यवस्था हो जाएगी।
जनप्रतिनिधि भी ईमानदारी से निभाएं अपनी जिम्मेदारी
कर्मचारी नेता एवं समाजसेवी भूपेश अवस्थी को जनप्रतिनिधियों से खास शिकायत है। कहते हैं कि कोई योजना धरातल पर नहीं उतर पाई, इसलिए कानपुर का विकास सुनियोजित नहीं हुआ। किसी भी जनप्रतिनिधि ने अब तक समग्र विकास पर ध्यान नहीं दिया। महापौर ने भी चट्टे हटाने की बात कही, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इसके अलावा विभाग समन्वय कर तय कर लें कि एक बार सड़क बन जाए तो फिर दो साल तक उसे खोदने की जरूरत न पड़े।
पुराने इलाकों को कराना होगा सुधार
चिकित्सा क्षेत्र में समाजसेवा करने वाले बाबूलाल शारडा का कहना था कि सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना बनाई है। इसके तहत बहुत सारे सुधार कार्य प्रस्तावित हैं। उनका सुझाव था कि सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं तो इस पैसे में से ही शहर के पुराने इलाकों की स्थिति भी सुधारी जाए। बड़ी आबादी उन क्षेत्रों में रहती है। आबादी का दबाव है। वह नए विकसित क्षेत्र मं तो जा नहीं सकते। समग्र विकास की अवधारणा पर काम करना होगा।
सिर्फ सरकार की ओर न ताकते रहें
पनकी क्षेत्र में सेवाभावी शहरवासियों की मदद से ग्रामीणों के लिए पुल बना चुके समाजसेवी नवाब सिंह यादव ने सलाह भी कुछ ऐसी ही दी। उनका कहना था कि सैकड़ों ग्रामीणों के पास नदी पार करने के लिए रेलवे ट्रैक के अलावा कोई रास्ता नहीं था। जनप्रतिनिधि सिर्फ वादे करते थे, लेकिन जनसहयोग से पुल बन गया। इसी तरह बहुत से काम ऐसे होते हैं, जो जनभागीदारी से पूरे हो सकते हैं। हमेशा सरकार की ओर न ताकते रहें।
शहर में काम करे सक्रिय स्थायी समिति
शासकीय सेवा से रिटायर होने के बाद समाजसेवा में जुटे अरुण श्रीवास्तव ने अल्प समय में होने वाले अधिकारियों के तबादले को बड़ी समस्या बताया। उनका कहना था कि अधिकारी तो आते-जाते रहेंगे। इस शहर में रहने वाले समस्या और समाधान बेहतर जानते हैं। लिहाजा, सरकार को शहर के प्रबुद्धजनों की सक्रिय समिति बना देनी चाहिए, जो कि विकास योजनाओं का फॉलोअप और निगरानी करती रहे।
औद्योगिक विकास पर ध्यान दे सरकार
कारोबारी हेम मनोहर गुप्ता का कहना था कि कानपुर है तो जिला, लेकिन यह बढ़ते कस्बे की शक्ल लेता जा रहा है। सरकार को औद्योगिक विकास के क्षेत्र में खास तौर पर विकास करना होगा। जहां उद्योग और रोजगार की वृद्धि होती है, वहां विकास भी तेजी से होता है। इसके अलावा उन्होंने गंगा की दुर्दशा और नगर निगम द्वारा बनवाए गए गैर उपयोगी शौचालयों पर भी चिंता जताई। उनका कहना था कि विकास ऐसा हो, जो जनता के काम आए।
सफाई के लिए अपना सकते हैं सूरत फॉर्मूला
व्यवसायी करुणेश दीक्षित ने भी जनसहभागिता को मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए सबसे जरूरी बताया। साथ ही उन्होंने सूरत का भी उदाहरण दिया। उनका कहना था कि सूरत में रात्रि 11 से 2 बजे तक सफाई होती है। सड़कों का निर्माण भी रात में ही होता है। कम से कम सफाई व्यवस्था सही करने के लिए तो सूरत वाला फार्मूला ही यहां भी नगर निगम को अपनाना चाहिए।
मोहल्ला समितियां निभाएं जिम्मेदारी
यातायात सुधार पर काम करने वाले रवि भार्गव ने अपने द्वारा किए गए प्रयास बताए। साथ ही कहा कि बहुत सी व्यवस्थाएं हैं, लेकिन उनका दुरुपयोग हो रहा है। कई समस्याओं का त्वरित समाधान भी संभव है। ऐसे छोटे-छोटे सुधारों के लिए रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन और मोहल्ला समितियों को सक्रियता से अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना चाहिए।
व्यवस्था न बिगाड़ें नेता और अफसर
कारोबारी प्रेम मनोहर गुप्ता ने दो टूक कहा कि जितने बड़े माननीय हैं, उतनी ही उल्टी उनकी चाल है। अक्सर देखने में आता है कि नेता और बड़े अफसर ही व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं। इन लोगों को समाज के सामने ऐसा व्यवहार करना चाहिए, नियमों का पालन करना चाहिए कि दूसरे इनसे प्रेरणा ले सकें। यातायात इनकी वजह से भी प्रभावित होता है।
छोटे उपायों से मिलेगी बड़ी राहत
व्यवसायी सुधीर द्विवेदी ने कहा कि हम बड़े-बड़े प्रोजेक्ट के बारे में सुनते रहते हैं। वर्षों में वह पूरे होते हैं, तब तक आबादी और बढ़ जाती है। शासन-प्रशासन को मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए छोटे-छोटे उपाय अपनाने चाहिए। धीरे-धीरे एक-एक क्षेत्र में सुधार शुरू करना चाहिए। जनता को व्यवस्था दिखेगी तो वह भी सहयोग करेगी।
मंथन से निकली खास बातें
- मुख्य विभाग और अस्पताल उत्तर में हैं, जबकि आबादी दक्षिण में भी बढ़ गई है। नरेंद्र मोहन सेतु पर बहुत भार बढ़ गया है।
- जूही से अफीमकोठी, डिप्टी पड़ाव होते हुए चाचा नेहरू अस्पताल पर पुल उतारा जाए। प्रस्ताव बन चुका है।
- जरीब चौकी का पुल रेलवे की पिंक बुक में शामिल हो चुका है।
- सरैया क्रॉसिंग स्वीकृत हो चुकी है, लेकिन फाइल शासन में अटकी पड़ी है।
- कल्याणपुर पुल स्वीकृत है। अब इसके फॉलोअप की जरूरत है।
- मंधना-भौंती बाइपास का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा चुका है। इससे जीटी रोड यातायात भार कम हो जाएगा।
- उद्यमी-व्यापारी खुद अतिक्रमण न करें तो काफी हद तक राहत मिल जाएगी।
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