कानपुर: 'कागजी घोड़े' पर सवार स्मार्ट सिटी का सपना
कागजी उम्मीद पर शहर का उज्ज्वल भविष्य टिका हुआ है। स्मार्ट सिटी में शहर को पर्यावरण, स्वास्थ्य, पार्किंग, स्मार्ट रोड, जाम मुक्त ट्रैफिक सुविधाएं, अतिक्रमण मुक्त शहर, आवारा जानवर मुक्त आदि का खाका तैयार है।
जगह-जगह खोदी गई और अतिक्रमण की गिरफ्त में जाम से कराहती सड़कें, जगह-जगह लगे कूड़े के ढेरों पर विचरण करते जानवर। कुछ भी तो नहीं बदला शहर में। स्मार्ट सिटी की चाहत में कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं, लेकिन बदहाली की तस्वीर पहले जैसी ही है, बल्कि कहा जाए कि और ज्यादा बदतर हो गई है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
आलम यह है कि बारिश का नाम सुनते ही शहरवासियों में घबराहट बढ़ जाती है, क्योंकि जाम, गंदगी और जलभराव की समस्या और ज्यादा सताने लगती है। शहरवासियों को स्मार्ट सिटी शब्द चिढ़ाने वाला लगता है। वे चाहते हैं कि पहले बुनियादी सुविधाएं मिलें, फिर बड़े-बड़े ख्वाब दिखाए जाएं।
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शहर को महानगर का दर्जा मिला है, पर अब भी बुनियादी सुविधाओं की दरकार है। व्यवस्थित शहर को बसाने के लिए बना मास्टर प्लान दिखावा बनकर रह गया है। मास्टर प्लान के तहत शहर का विकास ही नहीं हुआ। सड़क, पेयजल, जल निकासी, राहगीरों के लिए फुटपाथ, पार्किंग, सफाई जैसी नागरिक सुविधाएं ही नहीं हैं। इन सबके बिना स्मार्ट शहर की कल्पना करना भी बेकार है।
कागज में स्ट्रीट बाजार
शहर व्यवस्थित करने के साथ दैनिक आवश्यक सुविधाओं के लिए तैयार किए गए मास्टर प्लान में 44 क्षेत्रों में स्ट्रीट बाजार बनाया गया था। वहां बिना पार्किंग के व्यावसायिक निर्माण हो गए। तीन मंजिल की जगह मल्टीस्टोरी खड़ी हो गईं। इन इलाकों में फुटपाथ लोगों ने घेर लिया। पार्किंग न होने के कारण सड़क पर वाहन खड़े होने से जाम लगता है।
आवारा जानवर बने हुए हैं समस्या
आवारा जानवरों की बढ़ती संख्या शहरवासियों के लिए खतरनाक होती जा रही है। सड़क पर सांड़, सूअर और कुत्तों का आतंक है तो छत पर बंदरों की धमाचौकड़ी। इसके चलते लोग न तो सड़क पर सुरक्षित हैं और नहीं छत पर। वहीं, पाताल भी असुरक्षित हो रहा है। चूहों ने दर्शनपुरवा, कौशलपुरी और 80 फीट रोड क्षेत्र में चैंबर खोद डाले हैं, जिससे कई जगह सड़क धंस गई है। अफसरों के पास इससे निपटने की कोई योजना नहीं है।
बारिश से लगता है डर
बारिश होने पर आज भी कई इलाकों में लोगों को डर लगने लगता है कि कैसे घर से बाहर निकलेंगे। जरा सी बारिश में कई इलाके टापू बन जाते हैं। अब भी चालीस फीसद इलाकों में न तो सीवर लाइन है और ना ही जल निकासी की व्यवस्था।
दस साल से झेल रहे खोदी गई सड़कों का दर्द
शहरवासी दस साल से खोदी गई सड़कों का दर्द झेल रहे हैं। 50 फीसद से ज्यादा सड़कें खुदी पड़ी हैं। इन खतरनाक सड़कों पर चलते हुए आए दिन राहगीर चुटहिल होते हैं।
अरबों रुपये खर्च, फिर भी पेयजल और सीवर की समस्या
ऐसा नहीं कि विकास नहीं हुआ, लेकिन अनियोजित विकास मुसीबत बन गया है। जेएनएनयूआरएम योजना के तहत शहर में पेयजल और सीवर लाइन डालने के लिए 15 अरब रुपये खर्च हो चुके हैं, पर समस्या बद से बदतर हो गई है।
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गंदगी बनी मुसीबत
गंदगी के ढेर बढ़ते जा रहे हैं और संसाधन कम होते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि संसाधनों की कमी के चलते शहर में निकल रहा कूड़ा ही पूरा नहीं उठ पा रहा है। रोज 1300 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है, लेकिन उठता केवल एक हजार मीट्रिक टन ही है। घर-घर से कूड़ा उठाने की योजना केवल कागज में ही दौड़ रही है। डंपिंग ग्राउंडभाऊसिंह में भी अभी तक कूड़े से बिजली बनाने की सुविधा नहीं शुरू हो पाई है।
उम्मीद पर टिका भविष्य
कागजी उम्मीद पर शहर का उज्ज्वल भविष्य टिका हुआ है। स्मार्ट सिटी में शहर को पर्यावरण, स्वास्थ्य, पार्किंग, स्मार्ट रोड, जाम मुक्त ट्रैफिक सुविधाएं, अतिक्रमण मुक्त शहर, आवारा जानवर मुक्त आदि का खाका तैयार है। अब देखना ये है कि कब तक अमलीजामा पहनाया जाता है। मेट्रो ट्रेन को शहर में लाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए डीपीआर तैयार करने से लेकर टेंडर तक हो चुके हैं।