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तिरंगे में लिपटा हुआ आया देश का लाल, डेरापुर में फूट पड़ा आंसुओं का सैलाब

शहीद रोहित का पार्थिव शरीर शनिवार की दोहपर सैन्य अफसर डेरापुर लेकर आए।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 02:44 PM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 02:44 PM (IST)
तिरंगे में लिपटा हुआ आया देश का लाल, डेरापुर में फूट पड़ा आंसुओं का सैलाब
तिरंगे में लिपटा हुआ आया देश का लाल, डेरापुर में फूट पड़ा आंसुओं का सैलाब

कानपुर, जेएनएन। पुलवामा में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हुए 17 राजपूत रेजिमेंट के जवान रोहित यादव का पार्थिव शरीर शनिवार सुबह डेरापुर पहुंचते ही दर्शन को लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। तिरंगे में लिपटे देश का लाल को देखकर सभी लोगों की आंखों में अश्रु धारा बह निकली। वहीं युवाओं ने डेरापुर और मुंगीसापुर में शहीद के सम्मान में तिरंगा रैली निकाली।

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कानपुर देहात के डेरापुर कस्बा निवासी सेवानिवृत्त सेना के जवान गंगादीन यादव के पुत्र रोहित यादव पुत्र की 44 आतंकवादी निरोधक दस्ता आरआर बटालियन 17 राजपूत रेजीमेंट में तैनाती थी। बीते गुरुवार को पुलवामा में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में रोहित यादव शहीद हो गए थे। कश्मीर से सेना के अफसरों से मिली सूचना के बाद कस्बा व घर में होने पर शोक की लहर दौड़ गई थी। मां विमला देवी, पिता गंगादीन भाई सुमित का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। पत्नी वैष्णवी बार-बार बेसुध हो रही थीं।

शुक्रवार की शाम तक पार्थिव शरीर घर आने की जानकारी मिली थी। बाद में जम्मू में मौसम खराब होने के कारण शनिवार दोपहर करीब डेढ़ बजे सेना के अफसर पार्थिव शरीर लेकर डेरापुर आए तो परिजनों की आंखों में फिर से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। उधर, सड़क पर, छतों पर और घर के बाहर देश के लाल के अंतिम दर्शन के लिए लोग उमड़ पड़े। डेरापुर व मुंगीसापुर में लोगों ने शहीद की याद में तिरंगा यात्रा भी निकाली। आंबेडकर नगर (डिरवापुर) के बाहर भूमि पर अंतिम विदाई दी गई।

तीन साल पहले हुआ था विवाह

परिजनों ने बताया कि शहीद रोहित यादव का विवाह 25 अप्रैल 2016 को वैष्णवी के साथ हुआ था। रोहित पिछले दिनों अवकाश पर आया था और बीती 17 अप्रैल को वापस डयूटी पर चले गये थे। वह जल्द ही आने का वादा कर गया था लेकिन शहीद होने पर परिजन स्तब्ध हैं। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा है कि रोहित अब अपनों के बीच नहीं है।

बर्फीली वादियों की चाहत रोहित को दे गई शहादत

डेरापुर के रोहित को शुरु से ही बर्फीली वादियां बेहद पसंद थीं। सेना की नौकरी तैनाती पसंद करते थे। वर्ष 2016 में उन्हें बर्फीली वादियों में जाने का मौका मिल गया। आतंकवादी निरोधक दस्ता यानी 44 आरआर बटालियन में दो वर्ष के लिए उन्हें चुना गया। इस पर वह देश सेवा के साथ पसंदीदा बर्फीली वादियों में नौकरी की चाहत लिए शोपियां, जम्मू कश्मीर पहुंच गए। वहां बर्फीली वादियों में खींचे गए फोटो वह दोस्तों को भेजते थे। वादी कितनी खूबसूरत है यह बातचीत के दौरान दोस्तों को बताते थे। रोहित के पिता गंगा सिंह कहते हैं कि शोपियां में नौकरी करते दो साल की सीमा निकल गई थी।

सिक्किम की 17 राजपूत रेजीमेंट से एक जवान को रोहित के स्थान पर 44 आरआर बटालियन भेजा गया था। लेकिन भेजे गए जवान ने पहले जरूरत पडऩे पर एक माह की छुट्टी ले ली फिर दुर्घटना में वह जख्मी हो गया तो शोपियां नहीं पहुंच सका। ऐसे में शोपियां से रोहित वापस सिक्किम रेजीमेंट नहीं पहुंच सके। रोहित के छोटे भाई सुमित ने बताया कि भइया को छुट्टी मिलने वाली थी लेकिन रिलीवर के न आने से उसमें देरी हो रही थी। अब इसे देरी कहें या भगवान को कुछ और ही मंजूर था।

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