सहयोग से समाधान: कैशलेस पद्धति अपनाकर दूसरे जिलों तक पहुंचाईं दवाएं
लॉकडाउन के समय में लोगों की दवा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपनाया रास्ता किसी को इंजेक्शन लगना था तो किसी कि दवा के लिए खत्म होने की स्थिति में थी ऐसे में बहुत से मेडिकल स्टोर ने अपनी तरफ से आम ग्राहकों तक अपनी सुविधाएं पहुंचाईं।
कानपुर, जेएनएन। समय कैसा भी हो लेकिन किसी भी रोगी के लिए दवा सबसे महत्वपूर्ण होती है, रोग यह नहीं देखता है कि समय अच्छा चल रहा है या खराब। बाजार बंद हैं या खुले। अगर दवा की जरूरत होती है तो तीमारदार उसके लिए रात में भी शहर की सड़कों की खाक छानते हैं। कुछ ऐसा ही कोरोना काल में भी था। मेडिकल स्टोर तो खुले थे लेकिन लोग घर से नहीं निकल पा रहे थे। किसी को इंजेक्शन लगना था तो किसी कि दवा के लिए खत्म होने की स्थिति में थी। ऐसे में बहुत से मेडिकल स्टोर ने अपनी तरफ से आम ग्राहकों तक अपनी सुविधाएं पहुंचाईं।
समाधान 1: वाट्सएप ग्रुप बनाकर लोगों तक पहुंचाए संदेश
स्वरूप नगर में स्थित मेडिकल स्टोर शिव एजेंसी के प्रोपराइटर संजय मेहरोत्रा ने भी खुद को तकनीक से जोड़कर दूसरे शहरों तक अपनी सेवाओं को पहुंचाया। संजय मेहरोत्रा ने 2001 में स्वरूप नगर में मेडिकल स्टोर शुरू किया था। करीब आठ वर्ष पहले उन्होंने कबाड़ी मार्केट के पास एक दूसरा भी मेडिकल स्टोर शुरू किया। संजय मेहरोत्रा बताते हैं कि लॉकडाउन हुआ तो मेडिकल स्टोर को तो आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में होने की वजह से खोलने की अनुमति मिली हुई थी, लेकिन दवा लेने के लिए मरीज या तीमारदार घरों से नहीं निकल पा रहे थे। बाहर निकलने पर उनके भी स्वास्थ्य को खतरा था। ऐसे में उन्होंने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया। इसमें उन्होंने संदेश दिया कि मरीज या तीमारदार घर से बाहर ना निकलें। अगर किसी को दवा की जरूरत है तो वे उन्हेंं वाट्सएप करें। उनके घर पर दवा पहुंचा दी जाएगी। इस संदेश को उन्होंने तमाम वाट्सएप ग्रुप में भेजा। इसका प्रभाव यह हुआ कि उन्हेंं मरीजों और तीमारदारों ने वाट्सएप के जरिए अपने दवा के पर्चे भेजे। फोन पर बात कर उन दवाओं को उनके घरों में भेजा गया।
समाधान 2: ऑनलाइन पेमेंट और कैशलैस पद्धति को अपनाकर लिया भुगतान
उनके मुताबिक सबसे ज्यादा लोग दवाओं के लिए उन क्षेत्रों में परेशान थे, जहां कोई कोरोना संक्रमित निकल आया हो। उस समय काफी बड़े क्षेत्र को सील किया जा रहा था। उन क्षेत्रों में भी दवाएं पहुंचाने के लिए जिलाधकारी ने अनुमति दी। इसके बाद दो डिलीवरी मैन तैयार किए। उन्हेंं पूरी किट पहना कर उन क्षेत्रों में भेजा जाता था, जहां लोगों ने दवाएं मांगी थीं। उन क्षेत्रों मेें लोगों के पास नकदी की भी समस्या थी क्योंकि वे बाहर नहीं निकल पा रहे थे। इसलिए किसी से ऑनलाइन पेमेंट लिया गया तो किसी से चेक। दोनों डिलीवरी मैन जब तक लौट कर आते दवाओं के दूसरे ऑर्डर के बंडल पैक कर दिए जाते थे। रोज ही औसतन 15 से 20 हजार रुपये की होम डिलीवरी की जा रही थीं।
समाधान 3: समाचार पत्र की गाडिय़ों से दूसरे जिलों तक पहुंचाई मदद
महाराजपुर तक बाइक से दवाएं भेजी थीं। इसके अलावा फर्रुखाबाद के एक रोगी को सुबह किडनी की समस्या की वजह से इंजेक्शन लगना था। कोई जिले की सीमाएं पार नहीं कर सकता था, इसलिए रात में उन्हेंं समाचार पत्र की जीप से दवा भेजी। सुबह उन्हेंं इंजेक्शन मिल गया और लग भी गया। उन्होंने रुपये देने की बात कही तो वहीं के एक दवा विक्रेता को भुगतान करा दिया। उस समय इंजेक्शन पहुंचना ज्यादा महत्वपूर्ण था, इसलिए प्राथमिकता के आधार पर पहले उसे पहुंचाया। इसी तरह बांदा और उरई तक भी दवाओं को भेजा। जब संक्रमित लोगों की संख्या बढऩे लगी तो मरीजों को घरों में भी रखा गया। ऐसे में उन्हेंं ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत थी। इस पर बिना कोई डिलीवरी और रीफिलिंग चार्ज के ऑक्सीजन सिलेंडर दिए।
मरीजों की सुरक्षा के साथ अपने स्टॉफ की सुरक्षा का भी ध्यान रखा ताकि उनमें कोई संक्रमित ना हो। दुकान में पूरे स्टॉफ को आते समय सैनिटाइज किया जाता है। सबकी थर्मल स्कैनिंग होती है। मास्क लगाना सबके लिए अनिवार्य है। इनके अलावा पूरे काउंटर को दिन में कई बार सैनिटाइज किया जाता है। यह प्रक्रिया दोनों ही दुकानों में नियमित रूप से अपनाई जा रही है। काउंटर पर ग्राहक एकदूसरे से बहुत करीब ना आएं, इसके लिए दुकान के बाहर सुरक्षा गोले भी बनवाएं।