गांधीजी ने कानपुर से ही थामी थी चंपारण सत्याग्रह की कमान
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद दिसंबर 1916 में पहली बार शहर आए थे बापू, इससे पहले नहीं किया था कोई आंदोलन
जागरण संवाददाता, कानपुर : मैं क्या, आप सभी को पता है कि मेरी धरती पर आंदोलन की बहुत रणनीतियां बनी हैं। 1857 की क्रांति में नानाराव पेशवा, तात्या टोपे जैसे सूरमाओं ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ व्यूह रचना की। स्वतंत्रता समर में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरीखे महान क्रांतिकारी यहीं योजना बनाते थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गांधीवादी आंदोलन को भी यहां से हवा दी गई। एक तथ्य से शायद ज्यादातर लोग नावाकिफ होंगे कि चंपारण से शुरू हुए देश के पहले अ¨हसात्मक असहयोग आंदोलन की रूपरेखा भी गांधी जी ने मेरी ही धरती पर बनाई थी।
दरअसल, यह घटनाक्रम बापू की पहली कानपुर यात्रा से ही जुड़ा है। मुझसे जुड़े तमाम अनछुए पहलुओं को अपनी किताबों में समेट चुके इतिहासकार प्रो. एसपी सिंह ने इस वाकये का भी उल्लेख किया है। हुआ यूं कि दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद मोहन दास करमचंद गांधी देश को जानने-समझने के लिए भ्रमण पर निकले थे। दिसंबर 1916 में वह लखनऊ पहुंचे तो स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी और राजकुमार शुक्ला उनसे मुलाकात करने गए। उन्होंने उन्हें आमंत्रण दिया। वहीं से गांधीजी पहली बार मेरी धरती पर आए। तब तक उन्होंने कोई आंदोलन नहीं किया था। यहां रात में वह प्रताप प्रेस में ठहरे। तब गणेश शंकर विद्यार्थी और राजकुमार शुक्ला ने ही बापू से आग्रह किया कि आप बिहार के चंपारण से शुरू हुए आंदोलन की कमान संभालें। वहां अंग्रेजी शासन के साथ ही जमींदारों के उत्पीड़न के खिलाफ विरोध शुरू हो चुका है।
बापू से कहा कि आप भी तो आजादी के साथ सामाजिक न्याय ही चाहते हैं। यदि आप चंपारण आंदोलन को अपना नेतृत्व देंगे तो उनकी ताकत बढ़ेगी और देश भर में संदेश पहुंचेगा। तब गांधीजी सहमत हुए और कहा कि आप लोग भी आंदोलन की वृहद तैयारी करें। फिर महात्मा गांधी चंपारण आंदोलन की तैयारियों में जुट गए और 1917 में 'चंपारण सत्याग्रह' के नाम से पहला राष्ट्रीय आंदोलन शुरू हुआ।