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दक्षिण भारतीय शैली से आज भी परिचय कराता है शिवाला स्थित महाराज प्रयाग नारायण मंदिर, जानें- यहां का इतिहास

वर्ष 1861 में हुई मंदिर की स्थापना 14 वर्षों में पूर्ण हुआ निर्माण कार्य। दक्षिण भारत से 11 सौ आचार्य पूजन के लिए आए थे। संस्कृति के सात्विक मेल का दर्शन करने की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं कानपुर के बैकुंठ मंदिर में पूरी होती हैं।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 04:16 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 04:16 PM (IST)
दक्षिण भारतीय शैली से आज भी परिचय कराता है शिवाला स्थित महाराज प्रयाग नारायण मंदिर, जानें- यहां का इतिहास
शिवाला स्थित महाराज प्रयाग नारायण मंदिर का चित्र।

कानपुर, [अंकुश शुक्ल]। शहर के मध्य शिवाला क्षेत्र में स्थित महाराज प्रयाग नारायण मंदिर को श्री बैकुंठ मंदिर से भी पहचाना जाता है। वर्ष 1861 में महाराजा रेवती राम तिवारी द्वारा स्थापित दक्षिण भारतीय शैली के प्रमुख मंदिरों में शुमार महाराजा प्रयाग नारायण मंदिर अपनी अद्भुत कला शैली के लिए देश विदेश में चर्चित रहता है। वर्ष 2009 में इस मंदिर की ऐतिहासिकता को देखते हुए भारतीय डाक विभाग में मंदिर पर विशेष आवरण जारी किया था।

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14 वर्षों में पूरा हुआ था निर्माण 

श्री प्रयाग नारायण मंदिर शिवाला के अध्यक्ष विजय नारायण तिवारी मुकुल ने बताया कि भारत के प्रमुख रामानुज संप्रदाय के मंदिरों में शुमार कानपुर का यह विशालकाय मंदिर का निर्माण कार्य लगभग 14 वर्ष में पूरा हुआ था। जिस की प्राण प्रतिष्ठा के समय दक्षिण भारत से 11 सौ आचार्य आए थे, जिन्होंने मंत्रोच्चारण के बीच मंदिर में पूजन अभिषेक किया था। उन्होंने बताया कि वर्ष 1847 में महाराजा रेवती राम तिवारी के बाद उनके पुत्र श्री प्रयाग नारायण तिवारी द्वारा मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया था। श्री प्रयाग नारायण तिवारी ने मंदिर के निर्माण कार्य के पूरा होने तक अन्न त्याग कर सिर्फ फलाहार लिया था। 14 वर्ष में निर्माण कार्य पूरा होने के बाद उनका संकल्प पूरा हुआ था। 

अपनी  भव्यता को को समेटे हुए है यह मंदिर 

 विजय नारायण तिवारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को हुई थी जो प्रतिवर्ष माघ मेला ब्रह्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अखंड ज्योति से विराजमान भगवान का पूजन अर्चन किया जाता है। मंदिर के निर्माण के समय हुई खुदाई में काली चतुर्भुज विग्रह की प्राप्ति हुई थी जो कुछ हद तक खंडित हो गई थी जिसके बाद मंदिर के गर्भ गृह के निकट जगमोहन मंडप के चांदी के द्वार आज भी विराजमान है। मंदिर के नगाड़ों की अहमियत प्राचीन काल से लेकर आज भी बरकरार है। प्रतिदिन आरती के समय ऊंट की खाल से बने हुए नगाड़ों को बजाया जाता है। वर्ष 1847 के स्वतंत्रता संग्राम में नाना राव पेशवा के सैनिकों द्वारा युद्ध की मुनादी के दौरान ये नगाड़े बजाए जाते थे। बाद में ब्रिटिश पुलिस द्वारा हुई नीलामी में तिवारी परिवार ने इन्हें हासिल कर लिया। दक्षिण भारतीय कला शैली में बने इस मंदिर में भक्तवत्सल नारायण जी महाराज भगवान वेंकटेश भूदेवी नीला देवी सुदर्शन भगवान गरुड़ महाराज और श्री गोदारंगमन्नार महाराज विराजमान हैं। शिवालय स्थित इस विशालकाय मंदिर में मुख्य द्वार पर लगभग 56 फुट ऊंचा बनाया गया है। जहां पर भगवान लक्ष्मी नारायण के प्रिय गरुण की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है जो उत्तर भारत की विशालतम प्रतिमाओं से में से एक है। 

इनकी भी सुनिए 

मंदिर के प्रबंधक अभिनव नारायण तिवारी ने बताया कि मंदिर में प्रतिदिन दैनिक पूजा नारद आगम विधि द्वारा तमिल और संस्कृत भाषा में की जाती है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन मंगला आरती के समय एक गाय को भगवान के सम्मुख लाए जाने की प्रथा है इसी के बाद पुजारी पट खोल कर आरती करते हैं। भगवान को प्रथम बाल भोग मध्याह्न और रात्रि भोग अर्पित किया जाता है जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन प्रभु को अर्पित किए जाते हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष एक से 30 दिनों के उत्सव की परंपरा है। जिसमें एक माह का धनुर्मास उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। उत्तर और दक्षिण भारत की संस्कृति के सात्विक मेल का दर्शन करने की इच्छा रखने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं कानपुर के बैकुंठ मंदिर में पूरी होती हैं। 


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