'सिसक' रहा पर्यावरण, अभियान का निकला दम
शहर के अफसर न तो पर्यावरण के प्रति सजग हैं और न ही मुख्यमंत्री के आदेश की। शायद इसीलिए अभिायन की धज्जि्यां उड़ाई जा रही हैं।
जागरण संवाददाता, कानपुर : शहर के अफसर न तो पर्यावरण के प्रति सजग हैं और न ही मुख्यमंत्री के निर्देशों को लेकर गंभीर दिख रहे हैं। यही वजह है कि शहर में पॉलीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। सीएम के पॉलीथिन पर प्रतिबंध की घोषणा के बाद अफसरों ने निगरानी को टीम तो बना दी पर कार्रवाई एक दिन भी नहीं हुई है। गंगा तट से लेकर बाजारों में खुलेआम पॉलीथिन प्रयोग हो रही है। सिर्फ कागज में ही अभियान चलाया जा रहा है, हकीकत में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां पर पॉलीथिन का प्रयोग न हो रहा हो।
पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छत्रपति शाहू जी महाराज विवि से 'प्लास्टिक मुक्त नदियां' अभियान का आगाज किया था। इसके लिए डीएम सुरेन्द्र सिंह ने जिला प्रशासन, नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों को शामिल करते हुए जोनवार टीमें गठित कीं लेकिन 15 दिन के बाद भी केवल कागजी कार्रवाई हुई। शहर तो दूर गंगा व घाट के आसपास इलाके को पॉलीथिन मुक्त नहीं किया जा सका है। घाट के किनारे फैली और ठेलों में रखी पॉलीथिन अभियान की पोल खोल रही है।
जनता भी नहीं हुई जागरूक
जनता भी जागरूक नहीं हुई है। पॉलीथिन से होने वाले नुकसानों को जानती तो है पर रोकने के खुद कोई प्रयास नहीं किए। रोक के बाद भी पॉलीथिन में ही पूजा सामग्री डालकर गंगा में फेंकी जा रही है।
बिना रजिस्ट्रेशन के पॉलीथिन में नहीं बेच सकते सामान
शासन ने पॉलीथिन के प्रयोग पर अंकुश लगाने के लिए वर्ष 2016 में आदेश जारी किया था कि दुकानदार बिना रजिस्ट्रेशन के कोई भी सामान पॉलीथिन में नहीं दे सकते हैं। प्लास्टिक मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत 50 माइक्रान पॉलीथिन के प्रयोग पर रोक लगा दी गई है। मानक के अनुरूप पॉलीथिन बेचने के लिए नगर निगम में हर माह के हिसाब से चार हजार यानी एक साल में 48 हजार रुपये का रजिस्ट्रेशन कराना होगा। बिना पंजीकरण कराए पॉलीथिन मिलने पर 48 हजार रुपये वसूले जाएंगे और पॉलीथिन भी जब्त होगी लेकिन अभी तक नगर निगम ने एक भी दुकानदार का रजिस्ट्रेशन व कार्रवाई नहीं की है। वहीं पॉलीथिन का निर्माण करने वाली कंपनियों को भी हर पन्नी में कितने माइक्रान की है और कंपनी का नाम लिखना होगा।
पॉलीथिन में बिक रहा पानी
हैंडपंप व नलों से पॉलीथिन में पानी भरकर ठंडा करने के बाद दो से तीन रुपये में बेचा जा रहा है। पॉलीथिन में पानी भरकर उसके पाउच बनाने का धंधा विकसित हो गया है।
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यहां पर बनी मुसीबत
-गंगा के घाटों से दो सौ मीटर तक सभी पॉलीथिन के प्रयोग पर रोक है लेकिन लोग पॉलीथिन में पूजा सामग्री डालकर फेंक देते हैं।
-पॉलीथिन नाला व सीवर लाइन के लिए मुसीबत है। हर साल पॉलीथिन सफाई के लिए डेढ़ करोड़ रुपये खर्च होते हैं।
-फ्रिज में पॉलीथिन में रखी वस्तुओं से फूड प्वाइजनिंग हो सकती है।
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हाईकोर्ट का आदेश भी ठंडे बस्ते में गया
हाईकोर्ट ने 22 दिसंबर 2015 में प्रदेश सरकार को पॉलीथिन पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। इसके बाद जिला प्रशासन की अगुवाई में कार्रवाई हुई लेकिन कुछ ही दिनों बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
ये हो सकती कार्रवाई
पॉलीथिन का निर्माण करना, बेचना और खरीदना या ऐसे किसी उत्पाद का प्रयोग करने पर प्रतिबंध है। पॉलीथिन का प्रयोग, बनाने या बेचने वाले व्यक्ति पर एक लाख जुर्माना और पांच साल तक कैद हो सकती है।
बाहर से आती पॉलीथिन
शहर में चोरी छिपे बन रही पॉलीथिन के अलावा लखनऊ, झांसी, हमीरपुर, उन्नाव से भी प्रतिबंधित पॉलीथिन आ रही है।
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पर्यावरण बचाने को ये करें शहरवासी
-सामग्री खरीदने के लिए घर से थैला लेकर निकलें
-पॉलीथिन का प्रयोग करने वाले ठेकेदार व दुकानदार का बहिष्कार करें।
-गंगा में पूजा सामग्री पॉलीथिन में भरकर डालने से अच्छा घाट के बगल में बालू खोदकर पूजा सामग्री दबा दें।
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एडीएम सिटी बोले, जल्द चलेगा अभियान
प्रतिबंधित पॉलीथिन की बिक्री, उत्पादन और भंडारण रोकने के लिए प्रशासन स्तर पर टीम बनी है लेकिन कोई काम नहीं हो रहा है। रोक कब लगेगी इस मुद्दे पर एडीएम सिटी सतीश पाल से दो टूक बात की गई तो उन्होंने जल्द अभियान चलाने की बात कही।
0 आखिर कहां कमी है जो रोक नहीं लग पा रही है?
--बिक्री, भंडारण करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए एक बार फिर व्यापक छापेमारी की जाएगी।
0 आखिर उत्पादन क्यों नहीं रुक पा रहा है?
-वैसे शहर में कहीं उत्पादन की सूचना नहीं है। पिछले दिनों चकेरी में एक जगह पकड़ा गया था।
0 टीमें गठित हैं लेकिन छापेमारी नहीं हो रही है।
-एसीएम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम के अफसरों की बैठक बुलाई है। अभियान इस बार कैसे चलेगा इसकी रणनीति बनेगी और निरंतर छापे मारे जाएंगे।