चंद्रयान-2 के चांद पर उतरते ही आइआइटी कानपुर का रोवर करेगा ये सभी काम Kanpur News
चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण होने पर आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिक व प्रोफेसर भी खासा उत्साहित हैं।
By AbhishekEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 03:00 PM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 04:53 PM (IST)
कानपुर, [विक्सन सिक्रोडिय़ा]। चंद्रयान-2 के साथ उसके रोवर 'प्रज्ञान' के दिमाग संग कानपुर आइआइटी भी चांद पर होगा। रोवर के लिए मैप जनरेशन और पाथ जनरेशन की तकनीक आइआइटी ने उपलब्ध कराई है। चंद्रयान-2 जब चांद पर उतरेगा तब सेंसर युक्त रोवर पानी की तलाश शुरू कर देगा। यह रोवर करीब 20 फीट तक खोदाई कर पानी निकाल सकता है, वह यह भी देखेगा कि वहां क्या-क्या रुकावट है। करीब 15 दिन तक सॉफ्टवेयर की मदद से रोवर काम करेगा।
आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिक उत्साहित
मिशन चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण होने पर आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिक व प्रोफेसर उत्साहित हैं। इस चंद्र अन्वेषण अभियान के लिए आइआइटी ने जो सॉफ्टवेयर बनाया है वह चंद्रयान-2 के रोवर 'प्रज्ञान' के चांद पर उतरने के बाद पानी की तलाश में मदद करेगा। फिर वह चाहें बर्फ यानी ठोस अवस्था में हो अथवा द्रव अवस्था में। इसरो ने इसकी एलगोरिदम विकसित करने का जिम्मा आइआइटी को दिया था। तीन साल के शोध के बाद आइआइटी ने अपने लूनर रोवर पर सॉफ्टवेयर का सफल परीक्षण करने के बाद इसरो को सौंपा था। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. केएस वेंकटेश व मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. आशीष दत्ता ने यह सॉफ्टवेयर बनाया है।
दस साल पहले प्रोजेक्ट पर शुरू किया था काम
प्रो. आशीष दत्ता ने बताया कि अभी यह नहीं पता है कि चंद्रमा पर पानी है कि नहीं। वह बर्फ अथवा द्रव किस अवस्था में है? क्या उसे गलाकर पानी में परिवर्तित किया जा सकता है? उसकी प्रक्रिया क्या होगी? इन सभी प्रश्नों का जवाब चंद्रयान-2 के चांद पर उतरने के बाद ही मिलेगा। उन्होंने बताया कि 2009 में उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना प्रारंभ किया था। इसके बाद सॉफ्टवेयर में कई बदलाव हुए। यह दुनिया का पहला मिशन है जिसमें लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर उतरेगा। अभी यह नहीं पता है कि चंद्रमा पर पानी किस स्थान पर है। कौन-कौन सी बाधाएं हैं जिन्हें पार करके वहां पहुंचा जा सकता है। मोशन प्लानिंग व मैप जनरेशन के लिए आइआइटी में बनाया गया यह सॉफ्वेयर चंद्रमा पर रोवर की मुश्किलें खत्म कर उसे रास्ता दिखाएगा।
प्रतिवर्ष 10 से 15 प्रोजेक्ट पर काम करता है आइआइटी
इसरो ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए आइआइटी को इसलिए चुना क्योंकि संस्थान पहले भी उसके लिए अनुसंधान कर चुका है। आइआइटी प्रतिवर्ष इसरो के 10 से 15 प्रोजेक्ट पर काम करता है। प्रोजेक्ट की सफलता को देखते हुए आइआइटी कानपुर को चंद्रयान-2 के प्रोजेक्ट के लिए चयनित किया गया।
आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिक उत्साहित
मिशन चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण होने पर आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिक व प्रोफेसर उत्साहित हैं। इस चंद्र अन्वेषण अभियान के लिए आइआइटी ने जो सॉफ्टवेयर बनाया है वह चंद्रयान-2 के रोवर 'प्रज्ञान' के चांद पर उतरने के बाद पानी की तलाश में मदद करेगा। फिर वह चाहें बर्फ यानी ठोस अवस्था में हो अथवा द्रव अवस्था में। इसरो ने इसकी एलगोरिदम विकसित करने का जिम्मा आइआइटी को दिया था। तीन साल के शोध के बाद आइआइटी ने अपने लूनर रोवर पर सॉफ्टवेयर का सफल परीक्षण करने के बाद इसरो को सौंपा था। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. केएस वेंकटेश व मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. आशीष दत्ता ने यह सॉफ्टवेयर बनाया है।
दस साल पहले प्रोजेक्ट पर शुरू किया था काम
प्रो. आशीष दत्ता ने बताया कि अभी यह नहीं पता है कि चंद्रमा पर पानी है कि नहीं। वह बर्फ अथवा द्रव किस अवस्था में है? क्या उसे गलाकर पानी में परिवर्तित किया जा सकता है? उसकी प्रक्रिया क्या होगी? इन सभी प्रश्नों का जवाब चंद्रयान-2 के चांद पर उतरने के बाद ही मिलेगा। उन्होंने बताया कि 2009 में उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना प्रारंभ किया था। इसके बाद सॉफ्टवेयर में कई बदलाव हुए। यह दुनिया का पहला मिशन है जिसमें लैंडर चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर उतरेगा। अभी यह नहीं पता है कि चंद्रमा पर पानी किस स्थान पर है। कौन-कौन सी बाधाएं हैं जिन्हें पार करके वहां पहुंचा जा सकता है। मोशन प्लानिंग व मैप जनरेशन के लिए आइआइटी में बनाया गया यह सॉफ्वेयर चंद्रमा पर रोवर की मुश्किलें खत्म कर उसे रास्ता दिखाएगा।
प्रतिवर्ष 10 से 15 प्रोजेक्ट पर काम करता है आइआइटी
इसरो ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए आइआइटी को इसलिए चुना क्योंकि संस्थान पहले भी उसके लिए अनुसंधान कर चुका है। आइआइटी प्रतिवर्ष इसरो के 10 से 15 प्रोजेक्ट पर काम करता है। प्रोजेक्ट की सफलता को देखते हुए आइआइटी कानपुर को चंद्रयान-2 के प्रोजेक्ट के लिए चयनित किया गया।
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