Baby Doll...को सुपरहिट बनाने वाले अंजन बनने चले थे इंजीनियर और बन गए म्यूजिक डायरेक्टर
बॉलीवुड में अब अंजन भट्टाचार्य म्यूजिक इंडस्ट्री का बड़ा चेहरा बन चुके हैं।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। चिटियां कलाइयां वे... और बेबी डॉल... जैसे गीतों को संगीत देकर सुपरहिट बनाने वाले अंजन भट्टाचार्य की सफलता की कहानी औरों से एकदम अलग है। कहते हैं ना, जहां चाह वहां राह, अंजन की राह भी कुछ ऐसे ही आगे बढ़कर मंजिल तक पहुंची। उनका जन्म भले ही बंगाल में हुआ हो लेकिन परवरिश कानपुर में होने की वजह से वो पूरी तरह कनपुरिया हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक और मुंबई जाकर सपनों को उड़ान में बदलने तक कभी उन्होंने किसी बात पर बहुत सोचा नहीं। म्यूजिक इंडस्ट्री का बड़ा चेहरा बन चुके अंजन ने हेट स्टोरी, रागिनी एमएमएस-2, ओएमजी और भूतनाथ जैसी न जाने कितनी ही फिल्में के गीतों को संगीत देकर उन्हें सुपरहिट बनाने में अहम रोल अदा किया।
कॉलेज बंक किया तो हुए सस्पेंड
मीत ब्रदर्स के साथ करियर का लंबा समय बिताने वाले अंजन का जन्म बंगाल में हुआ था। उनकी कर्मभूमि कानपुर ही रही है। बचपन से उन्हें गाना गाने का शौक था लेकिन घरवाले उन्हें इंजीनियर बना देखना चाहते थे। इसलिए उनका दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में इंस्ट्रूमेंटल इंजीनियरिंग ट्रेड में करा दिया। कॉलेज में साथियों के बीच अंजन गाना गाते तो खूब तालियां बजतीं। खाली समय में क्लास के अंदर सहपाठी अक्सर उनसे गाना गवाते थे। अंजन भी अक्सर कॉलेज की क्लास बंक करके पास ही म्यूजिक सेंटर निकल जाया करते थे। इसकी जानकारी के बाद कॉलेज प्रशासन ने उन्हें दो बार सस्पेंड भी किया था।
गायकी में लंबी कतार देखकर बदली राह
अंजन ने खुद को गायकी में स्थापित करने के लिए कदम बढ़ाया और आगे भी बढ़े। लेकिन, एक शो में खुद को दूसरे पायदान पर खड़ा पाकर उन्हें गायकी में मुकाम पाने के लिए लंबी कतार नजर आई। इसपर उन्होंने अपनी राह बदली और संगीत की ओर रुख किया। एनालॉग पर शुरुआत करते हुए आगे बढ़े और मुंबई में जाने माने म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में खुद को स्थापित किया। आज बॉलीवुड में उनकी पहचान एक सफल म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में है और कई अवार्ड भी जीत चुके हैं। वह रियलिटी शो 'कल के कलाकार' के माध्यम से शहर की प्रतिभा को मंच देना चाहते हैं। प्रस्तुत है... उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश...।
- आप ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फिर संगीत की दुनिया में कैसे आए?
संगीत मेरे खून में बसा है। यह सिर्फ करियर नहीं मेरा जीवन है। स्कूल के समय से ही मेरी रुचि थी। इसीलिए गालिब के शेर पढ़े। शायरी से लेकर कव्वाली तक सीखी। कानपुर में मैनें दस साल आर्केस्ट्रा में गाना गाया है। पहले मैं गायक ही बनना चाहता था लेकिन मेरे गुरू विमल श्रीवास्तव, जो कानपुर से ही हैं, उन्होंने मुझे म्यूजिक कंपोजर बनने के लिए प्रेरित किया।
- बंगाल से कानपुर तक के सफरनामे के बारे में बताएं?
मेरा जन्म बंगाल में हुआ मगर छह माह की उम्र में ही पिता मुझे लेकर कानपुर आ गए थे। मेरी पढ़ाई-लिखाई यहीं हुई। इसीलिए मेरी हिंदी पर अच्छी पकड़ है।
- आपने मीत ब्रदर्स के साथ कई हिट गाने दिये, लेकिन बाद में यह तिकड़ी टूट गई, कोई खास वजह?
यह तिकड़ी टूटी नहीं बल्कि हमने अपनी राह अलग कर ली। हमारे व्यक्तिगत संबंध आज भी पहले जैसे हैं। जब मैंने देखा कि हमारी कार्यशैली में परिवर्तन आ रहा है तो हम तीनों ने एक साथ बैठकर तय किया कि बतौर प्रोफेशन हम अलग हो जाएंगे। हालांकि मैनें मनमीत व हरमीत सिंह के साथ हाल ही में रिलीज हुई फिल्म शिमला मिर्च के लिए काम किया है।
- बीस साल में करियर का टर्निंग प्वाइंट क्या रहा?
बेबी डॉल गाना मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट था। इसे कंपोज करने के बाद मेरी जिंदगी बदल गई। मैं स्टार बन गया। यू-ट्यूब पर गाना बहुत पसंद किया गया। इसके बाद मेरे लिए ऑफर्स की लाइन लग गई।
- पहले गानों के दम पर फिल्में हिट होती थीं लेकिन अब हिन्दी फिल्मों में गानों की हिस्सेदारी घटती जा रही है, क्यों?
देखिये पब्लिक अब अलग से गाने नहीं सुनना चाहती। एप व सोशल मीडिया के अन्य प्रारूपों के माध्यम से गाने सुनने का ट्रेंड है। बॉलीवुड अब हॉलीवुड की राह पर है, जहां गानों की अहमियत न के बराबर है। आने वाले समय में सिर्फ प्रमोशनल गाने ही बनेंगे जो फिल्मों को प्रमोट करेंगे। आज का समय ड्राइवर सांग का है।
- क्या म्यूजिक डायरेक्टर व कंपोजर के क्षेत्र में करियर बनाने वाले नए कलाकारों का भविष्य अधर में है?
बेशक हिन्दी फिल्मों में हॉलीवुड की तर्ज पर गानों की संख्या घटती जा रही है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि इनका प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाए। किसी भी फिल्म को मशहूर बनाने में गानों की प्रमुख भूमिका होती है। आशिकी इसका उदाहरण है जो एलबम बनते-बनते फिल्म में तब्दील हो गई। सबसे बड़ी बात है कि अब व्यक्तिगत गानों का जमाना आ गया है। फिल्म निर्माताओं को ऐसे फनकार चाहिए, जिनमें कुछ अलग हो।
- फिल्मों में इस बदलाव को संक्रमण काल माना जाए?
हां यह संक्रमण काल ही है। पुरातन को पीछे छोड़ नई तकनीक हावी हो चुकी है। मैने भी एनालॉग से डिजीटल तक का सफर तय किया है। यह सबके लिए ठीक भी है, लेकिन यह भी बात सही है कि अभी भी एनालॉग का महत्व कम नहीं हुआ है। मैं अपनी पत्नी को पुराने गाने सुनने के लिए प्रेरित करता हूं, जबकि खुद नए गाने सुनता हूं।