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हिंदी दिवस विशेष : आइए जानते हैं हिंदी के हालात पर इन साहित्यकारों ने क्या कहा Kanpur News

साहित्यकार व आइआइटी कानपुर में कुलसचिव रहे पद्मश्री गिरिराज किशोर एवं मानस संगम के संस्थापक बद्रीनारायण तिवारी से बातचीत।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 01:57 PM (IST)Updated: Sat, 14 Sep 2019 01:57 PM (IST)
हिंदी दिवस विशेष : आइए जानते हैं हिंदी के हालात पर इन साहित्यकारों ने क्या कहा Kanpur News
हिंदी दिवस विशेष : आइए जानते हैं हिंदी के हालात पर इन साहित्यकारों ने क्या कहा Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। हिंदी दिवस आते ही हिंदी भाषा के उत्थान को लेकर बातें शुरू हो जाती हैं, पर मौजूदा समय हिंदी की दशा को लेकर साहित्यकार बेहद चिंतित हैं। शहर में रहने वाले दो वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर तथा मानस संगम के संस्थापक बद्रीनारायण तिवारी से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कुछ यूं अपने विचार रखे...।

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साहित्य को अंतर्मन से जानने की जरूरत

साहित्यकार व आइआइटी कानपुर में कुलसचिव रहे पद्मश्री गिरिराज किशोर कहते हैं कि आज हिंदी को लोग पसंद नहीं कर रहे, खासतौर पर अंग्र्रेजी को वरीयता देने वाला वर्ग। इसलिए आज सिर्फ हिंदी को आगे बढ़ाने की बात ना हो वरन् इसके लिए काम भी हो। उनके मुताबिक साहित्य को अंतर्मन से जानने की जरूरत होती है। एक दौर था जब बड़ी संख्या में साहित्यकार थे लेकिन आज साहित्यकारों की पीढ़ी के बीच काफी बड़ा गैप है। इसलिए नई पीढ़ी को साहित्य के क्षेत्र में आगे लाया जाए। इसके लिए हर स्कूल, कॉलेज में बच्चों में रचनात्मक लेखन की प्रतिभा को निखारने का कार्य किया जाए।

उनके मुताबिक आज जो बच्चों को टीवी और नेट के जरिए दिखाया जा रहा है, वैसा तो कभी नहीं रहा। उन्हें जब तक अच्छे हिंदी साहित्य का माध्यम नहीं मिलेगा वे यह नहीं समझेंगे कि उनकी समाज के प्रति क्या जिम्मेदारी है। इसके लिए स्कूलों में भी अच्छे शिक्षकों की जरूरत है जो बच्चों को साहित्य के प्रति जागरूक कर सकें। जब ऐसा होगा तभी हम भविष्य में अच्छे साहित्यकार निकाल सकेंगे।

हिंदी की चर्चा आते ही जवान हो जाते बद्रीनारायण

कानपुर में हिंदी का जिक्र हो और मानस संगम के संस्थापक बद्रीनारायण तिवारी का नाम न आए यह शायद हिंदी के साथ भी न्याय नहीं होगा। रामचरित मानस के माध्यम से विश्व के 80 देशों में हिंदी का प्रचार कराने वाले 85 वर्षीय बद्रीनारायण तिवारी हिंदी की चर्चा आते ही मानो जवान हो जाते हैं। 51 वर्ष पूर्व उन्होंने कानपुर में मानस संगम संस्था की स्थापना की थी। मोतीझील के तुलसी उपवन में हिंदी के 25 हजार शब्द लिखवाया, जिसे हिंदी की ओपन लाइब्रेरी भी कहा जाता है।

कहते हैं कि तुलसी के बिना हिंदी नहीं हो सकती है। इसलिए तुलसीकृत रामचरित मानस को हिंदी प्रचार का माध्यम बनाया। संस्था के वार्षिक समारोह में हर बार विदेशों से भी बड़ी संख्या में हिंदी प्रेमी आते हैं। जिन्हें देखकर स्थानीय युवा भी हिंदी पर गौरवान्वित होते हैं। वे कहते हैं कि हिंदी जितनी सरल होगी, उतनी ही लोकप्रिय होगी। विश्व के कई देशों में रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की लोकप्रियता इसका उदाहरण है।


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