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जानें, कैसै अस्थमा और कमजोर फेफड़े के रोगियों की सेहत पर दुष्प्रभाव डालता है पटाखों के धुआं

खांसने और थूकने से आधे माइक्रॉन से तीन माइक्रॉन तक के ड्रापलेट निकलते हैं। कोरोना संक्रमित व्यक्ति के खांसने व छींकने पर ड्रापलेट धुएं व धूल के कण के साथ क्रिया करके उसमें मिल जाएंगे। काफी देर तक वातावरण में स्थित रहेंगे।

By ShaswatgEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 07:35 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 07:35 AM (IST)
जानें, कैसै अस्थमा और कमजोर फेफड़े के रोगियों की सेहत पर दुष्प्रभाव डालता है पटाखों के धुआं
निचले स्तर पर बनने वाला फोटो केमिकल स्मॉग बेहद घातक होता है।

कानपुर, जेएनएन। दीपावली पर पटाखों से निकलने वाला धुआं कमजोर फेफड़े वाले लोगों पर गहरा असर डालेगा। पारा गिरने व हवा में ड्रापलेट देर तक रहने से कोरोना का खतरा बढ़ेगा। आइआइटी में हुए शोध के मुताबिक, पांच से सात डिग्री तापमान पर खांसने व छींकने से निकलने वाले ड्रॉपलेट वातावरण में काफी देर तक स्थित रहकर रोग फैलाने में मददगार बन सकते हैं।

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विशेषज्ञों के मुताबिक, खांसने और थूकने से आधे माइक्रॉन से तीन माइक्रॉन तक के ड्रापलेट निकलते हैं। कोरोना संक्रमित व्यक्ति के खांसने व छींकने पर ड्रापलेट धुएं व धूल के कण के साथ क्रिया करके उसमें मिल जाएंगे। काफी देर तक वातावरण में स्थित रहेंगे। ऐसे में ड्रापलेट वहां से गुजरने वाले व्यक्ति की सांसों के जरिए आसानी से शरीर के अंदर पहुंच जाएंगे। 

पटाखों के धुएं में शामिल हानिकारक तत्व पहुंचाते हैं नुकसान

आइआइटी सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर और पर्यावरणविद प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी ने बताया कि पारा गिरने से कोरोना का खतरा बढऩे लगा है। पटाखे जलने पर यह खतरा कमजोर फेफड़ों व अस्थमा के मरीजों के लिए और दिक्कत का सबब बनेगा। तापमान कम होने के साथ धुंध बढ़ रही है। ऐसे में पटाखे जलाने पर उसमें शामिल पोटैशियम व एल्युमिनियम जैसे हानिकारक तत्व वातावरण में तैरने लगते हैं। इससे पांच से 10 गुना तक धातुओं के कण बढ़ जाते हैं, जो सांस के जरिए सीधे फेफड़ों पर पहुंच कर नुकसान पहुंचा सकते हैं। निचले स्तर पर बनने वाला फोटो केमिकल स्मॉग बेहद घातक होता है।

दीपावली के बाद बढ़ती है पीएम-2.5 की मात्रा

दीपावली के बाद पीएम-2.5 की मात्रा खतरे के निशान से बहुत ऊपर पहुंच जाती है। पिछले साल दीपावली के दूसरे दिन 28 अक्टूबर को पीएम-2.5 की मात्रा 250 माइक्रोग्राम प्रतिमीटर क्यूब दर्ज की गई थी।

इनका ये है कहना 

गिरते तापमान के बीच पटाखों का दुष्प्रभाव पडऩा तय है। इससे निकलने वाली गैसें हवाओं को जहरीला बना देंगी। खासकर फेफड़ों व अस्थमा के मरीजों के लिए खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। - प्रो. प्रदीप कुमार, विभागाध्यक्ष सिविल इंजीनियरिंग व पर्यावरणविद् एचबीटीयू।  

पटाखों से निकलने वाले हानिकारक रसायनों, आवाज और उससे निकलने वाले धूल के कण पशु-पक्षियों के लिए घातक होते हैं। पौधों पर भी इसका असर पड़ता है। उनकी वृद्धि रुक जाती है। - डॉ. सुनीता आर्या, एसोसिएट प्रोफेसर, प्राणि विज्ञान विभाग डीजी कॉलेज।


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