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करवाचौथ विशेष : बदलते दौर में नई सोच, जानें- क्यों अनूठा था रीतिका का ससुराल में पहला व्रत

सरकारी स्कूल में शिक्षिका रीतिका मिश्रा कहती हैं कि हमेशा याद रहेगा पहला व्रत यूं तो करवाचौथ के व्रत को लेकर सबकी अपनी-अपनी यादें होती हैैं लेकिन जिस प्रकार से ससुराल में मेरा पहला व्रत हुआ था वह अपने आपमें अनूठा था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 21 Oct 2021 02:49 PM (IST)Updated: Thu, 21 Oct 2021 05:34 PM (IST)
करवाचौथ विशेष : बदलते दौर में नई सोच, जानें- क्यों अनूठा था रीतिका का ससुराल में पहला व्रत
अध्यापिका रीतिका मिश्रा ने साझा की करवाचौथ व्रत की यादें।

कानपुर, दिनेश दीक्षित। भारतीय स्त्रियां अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए और पति की लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखती हैैं। बहुत से लोगों का मानना है कि वैवाहिक जीवन को सुखी रखने का सारा दायित्व पत्नी का ही होता है, लेकिन बदलते दौर में इस सोच में काफी परिवर्तन आया है और बहुत से लोग पत्नी का साथ देने के लिए स्वयं भी व्रत रखते हैैं। उनका मानना है कि वैवाहिक जीवन को सुखी रखने का उत्तरदायित्व दोनों का है। अपने पहले व्रत से जुड़ी यादें साझा कर रही हैं एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका रीतिका मिश्रा...।

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अध्यापिका रीतिका मिश्रा कहती हैैं कि मेरी शादी को दो साल हुए हैैं। हमारा संयुक्त परिवार है। कल मेरा दूसरा करवाचौथ होगा। यह बात मेरे पहले करवाचौथ के एक दिन पहले की है। मैैंने बिना किसी को बताए पापा (ससुर जी) और जेठ जी (बड़े भईया) से रिक्वेस्ट की कि हम लोगों के साथ अगर आप लोग भी व्रत रखेंगे तो हम सबको बहुत अच्छा लगेगा। रीतिका कहती हैैं कि मैैंने कहा कि इससे यह भी जाहिर होता है कि हम एक-दूसरे की कितनी कद्र करते हैैं और हमें एक-दूसरे की कितनी परवाह रहती है। मेरी रिक्वेस्ट पर ससुर जी व जेठ जी द्वारा हां कहने पर मैैंने पतिदेव से भी रिक्वेस्ट की कि पापा और बड़े भईया इस साल से हम लोगों के साथ व्रत रखेंगे। पहले तो मेरी बात सुनकर पतिदेव हंसने लगे और बोले कि ऐसा नहीं हो सकता है। इस पर मैैंने कहा कि अच्छा ठीक है। अगर पापा और बड़े भईया व्रत रखेंगे तब तो आप व्रत रखेंगे। वह बोले हां, ठीक है। यह बात हम चार लोगों के अतिरिक्त घर में किसी को नहीं पता था कि अगले दिन क्या होने वाला है।

करवाचौथ के दिन सुबह किचन में तीनों बच्चों और बड़ों के लिए नाश्ता तैयार होने लगा। मैैं चुपचाप यह सब देख भी रही थी साथ ही काम में दीदी (जेठानी) और मम्मी (सासूमां) की मदद कर रही थी। नाश्ता तैयार होने के बाद जब सभी के लिए नाश्ता लगाया गया तो पापा और बड़े भईया ने कहा कि हम लोग नाश्ता नहीं करेंगे। आज हमारा भी व्रत है। यह सुनकर मेरे पतिदेव को भी कहना पड़ा कि अगर पापा और भईया व्रत कर रहे हैैं तो मैैं भी इनके साथ व्रत कर लूंगा। पापा और बड़े भईया की बातें सुनकर घर में हर कोई तरह-तरह की चर्चा करने लगा कि आज इन लोगों को क्या हो गया है? ये लोग कैसी बातें कर रहे हैैं? पापा, बड़े भईया और पतिदेव से मैैंने पहले ही यह कह दिया था कि आप लोगों द्वारा व्रत रखे जाने की बात की चर्चा कोई नहीं करेगा कि यह सब कैसे प्लान हुआ? खैर, जब बच्चों ने नाश्ता कर लिया तो मम्मी और दीदी ने कहा कि आप लोग पूरा दिन व्रत कैसे करेंगे? कारण, आप लोगों को दुकान पर भी जाना है।

मम्मी और दीदी की बात में हां मिलाते हुए मैैंने भी कहा कि प्लीज, आप लोग कुछ व्रत वाली चीजें ही खा लें। इस पर यह तय हुआ कि पापा, बड़े भईया और मेरे पतिदेव व्रत वाली चीजें खा लेंगे। अब हम सब व्रत वाली चीजें बनाने में जुट गए। व्रत वाला नाश्ता तैयार करने के साथ ही लंच में ले जाने के लिए भी कूटू के आटे की पूड़ी, आलू की सब्जी, साबूदाना की खीर आदि तैयार कर दी गई। तीनों लोग नाश्ता करके और लंच वाला डिब्बा साथ में लेकर दुकान पर चले गए। उन लोगों के दुकान पर जाने के बाद भी घर में तरह-तरह की बातें होती रहीं। थोड़ी देर बाद मम्मी और दीदी ने मुझे पास बुलाकर पूछा कि छोटी व्रत को लेकर तुमसे कोई बात हुई है क्या? मैैंने कहा नहीं तो। इस पर सब लोग तरह-तरह की बातें करते हुए फिर से अपने काम में लग गए और व्रत संबंधी तैयारियां होने लगीं। दिन गुजर जाने के बाद शाम को पापा, बड़े भईया और ये (मेरे पतिदेव) दुकान बंदकर थोड़ा जल्दी ही घर आ गए। घर आने पर उन लोगों से खाने के लिए पूछा गया तो सबने कहा कि नहीं अब हम सब लोग रात में साथ में खाना खाएंगे। शाम को चांद निकलने से पहले ही हम लोग तैयार हो गए और चांद निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। बच्चों ने जैसे ही आवाज लगाई कि चांद निकल आया है।

हम सब लोग छत पर पहुंच गए। चांद की पूजा करने के बाद हम सबने पानी पिया। नीचे आने पर खाने लगाने की तैयारियां शुरू हुईं। घर में डाइनिंग टेबल होने के बावजूद हम सब लोग जमीन पर बैठकर ही खाना खाते हैैं। यह हमारे घर की पुरानी परंपरा है। हम सब लोगों ने साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाने के बाद पापा जी बोले कि कुछ मीठा भी हो जाए। मीठा खाने के बाद सबके सामने ही मम्मी ने पापा जी पूछा कि एक बात बताइए मेरी शादी को इतने साल हो गए हैैं। आज सूरज पूरब से पश्चिम में कैसे निकल आया? पापा जी तो चुप रहे, कुछ नहीं बोले, लेकिन बड़े भईया बोले कि मम्मी इस सारी योजना का श्रेय छोटी को जाता है। घर में प्यार से सब मुझे छोटी कहकर बुलाते हैैं।

बड़े भईया की बात सुनकर सब लोग अवाक रह गए। मैैं चुपचाप सबके चेहरे देख रही थी। बड़े भईया की बात सुनकर मम्मी और दीदी बोलीं कि वाकई छोटी बहुत बदमाश है। पूरा दिन बीत गया, लेकिन इसने एक बार भी चर्चा नहीं कि क्या हुआ और कैसे हुआ? अचानक से दीदी ने पास आकर मुझे गले लगा लिया और बोलीं कि सच में हमारे घर में छोटी के रूप में लक्ष्मी आई है जो काम हम लोग आज तक नहीं कर पाए थे। वह छोटी ने करके दिखा दिया और जता दिया कि वाकई सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्नी दोनों में प्रेम के साथ एक-दूसरे की कद्र होना भी बहुत जरूरी है। हम कुछ बोले पाते इसके पहले ही हमारी आंखों से आंसू गिरने लगे और जैसे ही हमारे रोने की आवाज पास में बैठी मम्मी के कानों में पड़ीं, वह पास आकर हम दोनों से लिपट गईं। अब हमारी आंखों में आंसू तो थे, लेकिन वे खुशी के आंसू थे।

हमारा प्यार देखकर पापा, बड़े भईया और पतिदेव के साथ तीनों बच्चे (दो बेटे और एक बिटिया) भी भावुक हो गए। मैैंने बड़ों के पांव छूकर आशीर्वाद लिया और अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद जब कमरे में पतिदेव आए तो मुझसे बोले कि मैैं बहुत खुशकिस्मत हूं जो तुम्हारे जैसे जीवनसंगिनी मिली। इस पर मैैंने इनसे कहा कि हमारे घर (मायके) में शुरू से यही सिखाया गया है कि आपस में सब मिलकर रहें और एक-दूसरे का सम्मान करें तो हर घर में स्वर्ग है।


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